राज्यस्वास्थ्य

देश को हेल्थ इन आल पालिसी की जरूरत: प्रोफेसर ऋतु प्रिया

‘ उत्तर प्रदेश में इंसेफेलाइटिस: बच्चों की मौत एवं स्वास्थ्य तंत्र ’ का विमाचन
पत्रकार मनोज कुमार सिंह ने लिखी है रिपोर्ट, हेल्थवाॅच फोरम ने किया है प्रकाशित
लखनऊ, 22 दिसम्बर। आज लखनऊ के एक होटल में हेल्थवाच फोरम उ0प्र0 और गोरखपुर न्यूजलाइन द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में इंसेफेलाइटिस पर रिपोर्ट ‘ उत्तर प्रदेश में इंसेफेलाइटिस: बच्चों की मौत एवं स्वास्थ्य तंत्र ’  का विमाचन किया गया। इस मौके पर उपस्थित स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों, हेल्थ एक्टिविस्ट, पत्रकारों और सामाजिक संगठनों ने जापानी इंसेफेलाइटिस और एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (जेई/एईएस)से बड़ी संख्या में बच्चों की मौत पर गहरी चिंता व्यक्त की और इसको खत्म करने के लिए प्रभावी कदमों पर चर्चा की।

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यह रिपोर्ट गोरखपुर के वरिष्ठ पत्रकार एवं वेब पोर्टल गोरखपुर न्यूजलाइन के सम्पादक मनोज कुमार सिंह ने लिखी है जिसे हेल्थवाच फोरम ने प्रकाशित किया है। इस रिपोर्ट में जापानी इंसेफेलाइटिस और एक्यूट इंसेफेलाइटिस के कारणों, इससे बड़ी संख्या हो रही बच्चों की मौत और विकलांगता का विस्तृत व्यौरा तो है ही अब तक केन्द्र व प्रदेश सरकारों द्वारा इस बीमारी के उन्मूलन के लिए किए गए प्रयासों का विश्लेषण किया गया है। साथ ही पूर्वांचल की सामाजिक-आर्थिक स्थिति, इंसेफेलाइटिस पर हो रहे रिसर्च का विस्तार से  जिक्र करते हुए इस बीमारी के उन्मूलन में पूरे तंत्र की विफलता के कारणों की पड़ताल की गई है।
रिपोर्ट का लोकार्पण जवाहर लाल नेहरू वि0वि0 नई दिल्ली की सेन्टर फार कम्यूनिटी मेडिसन एण्ड कम्यूनिटी हेल्थ में प्रोफेसर ऋतु प्रिया, परिवार कल्याण विभाग उत्तर प्रदेश की महानिदेशक डा. नीना गुप्ता, निदेशक संचारी रोग डा. मिथिलेश चतुर्वेदी और बच्चों के अधिकार पर कार्य करने वाले वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता रमाकान्त राय ने किया।
रिपोर्ट के बाद हुई चर्चा में डी जी डा नीना गुप्ता ने बताया कि इस मुद्वे पर सरकार गम्भीर है और लगातार हो रहे शोधों के परिणामों को भी ध्यान में रखते हुए कदम उठाए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि हाल के शोध में एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिन्डोम के प्रमुख कारकों में स्क्रब टाइफस भी पाया गया है जिसके बारे में चिकित्सकों को जानकारी देते हुए उन्हें इलाज का प्रोटोकाल निर्देशित किया गया है। उन्होंने जेई और एईएस से मृत्यु दर में कमी का दावा करते हुए कहा कि इलाज के बेहतर प्रबन्धन से यह परिणाम आए हैं। उन्होंने कहा कि इस बीमारी के उन्मूलन के लिए तमाम विभागों में समन्वय बनाकर कार्य किया जा रहा है।

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निदेशक संचारी रोग डा0 मिथलेश ने कहा कि हम जनवरी माह से चिकित्सकों के प्रशिक्षण का विशेष कार्यक्रम शुरू करने जा रहे हैंै। बीमारी के निरोधक उपायों में स्वैच्छिक संगठनों की भी मदद ली जा रही है।
रमाकान्त राय ने कहा कि मृत्यु दर के आंकड़ों का ब्यौरा इस बीमारी की गंभीरता कम नहीं करता। हमें सोचने की जरूरत है कि आखिर पूरी दुनिया मंे जेई और एईएस से सबसे अधिक प्रभावित लोग भारत मंे क्यों हैं और चार दशक में हम इस पर काबू क्यों नहीं पा सके। उन्होंने सवाल उठाया कि नोटिफाएबल डिजीज घोषित किए जाने के बावजूद निजी अस्पताल इंसेफेलाइटिस की रिपोर्टिंग क्यों नहीं कर रहे हैं।
प्रो0 ऋतु प्रिया ने कहा कि हेल्थ इन आल पालिसी को अपनाने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि हमें खेती, अरबन व रूरल डेवलपमेंट सहित सभी क्षेत्रों की योजनाओं को बनाते समय सेहत को केन्द्र में रखना होगा। उन्होंने गोरखपुर परिक्षेत्र में तीन दिन के भ्रमण के अनुभव को साझा किया और कहा कि इस बात की मंथन की जरूरत है कि इंसेफेलाइटिस के उन्मूलन के प्रयास क्यों नहीं सफल हो पा रहे हैं।
रिपोर्ट के लेखक वरिष्ठ पत्रकार मनोज कुमार सिंह ने कहा कि इंसेफेलाइटिस के रोकथाम व इलाज के बारे में जितने भी स्तरों पर काम करने के दावे किए जा रहे हैं, जमीनी हकीकत एकदम उलट हैं। सीएचसी और पीएचसी को इंसेफेलाइटिस के सक्षम बनाने के दावे की हकीकत यह है कि वहां पूरे वर्ष 200 भी मरीज भर्ती नहीं हुए जबकि बीआरडी मेडिकल कालेज में मरीजों की भीड़ से व्यवस्था चरमरा जा रही है। सीएचसी-पीएचसी चिकित्सकों की भारी कमी से जूझ रहे हैं। चिकित्सकर्मियों को समय से वेतन तक नहीं मिल रहा है। सुअर बाड़ों के प्रबन्धन से लेकर पेयजल की योजनाओं का क्रियान्वयन बेहत सुस्त हैं। एक ऐसी बीमारी जिससे हर वर्ष 500 से अधिक बच्चों की मौत हो रही है, उसके बारे में यह रवैया हैरतअंगेज हैं। उन्होंने स्वास्थ्य पर सरकारी खर्च को लेकर भी सवाल उठाया।
चर्चा में भागीदारी करते हुए वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता राजेश मणि ने कहा कि मानवाधिकार आयोग, बाल आयोग के निर्देशों पर प्रभावी अमल नहीं किया गया है। विकलांग बच्चों की शिक्षा, चिकित्सा व पुनर्वास पर अभी भी ठोस कार्य नहीं हो रहा है। सीएचसी-पीएचसी लोगों का विश्वास जीतने में नाकाम साबित हुए हैं। वरिष्ठ पत्रकार साहिरा नईम ने कहा कि गांवों में साफ-सफाई के लिए लोगों को जिम्मेदार ठहराना गलत है क्योंकि यह किसी के व्यक्तिगत प्रयास से नहीं होगा बल्कि व्यवस्था को ठीक करने से होगा।
डाॅ सुकेत ने कहा कि पेरीफेरल स्वास्थ्य ढांचे को मजबूत कर मेडिकल कालेज व उच्चतर स्वास्थ्य सेवाओं पर बोझ को कम करने की बात की। साथ ही सभी सम्बन्धित विभागों में समन्वय बनाकर कार्य करने पर बल दिया।
चर्चा में स्वास्थ्य सेवाओं के निजीकरण और विभिन्न कारणों से शिशुओं की बढ़ती मौतों का भी सवाल उठा। चर्चा में अवधेश, पत्रकार अनिल राय सहित तमाम लोगों ने अपनी बात रखी। इस मौके पर नेशनल एलायंस फाॅर मैटरनल हेल्थ एण्ड ह्यूमन राइट्स की सदस्य डाॅ. वाई.के.संध्या भी मौजूद थीं। कार्यक्रम का संचालन हेल्थवाॅच संगीता व प्रवेश वर्मा ने किया। कार्यक्रम के प्रारम्भ में राजदेव ने हेल्थवाॅच फोरम के कार्यों के बारे में जानकारी दी।

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