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‘ नोटबंदी के फैसले से हमारा घर उजड़ गया ’

नोटबंदी के एक वर्ष बाद: बैंक में भगदड़ से मरे रिटायर रेलकर्मी शब्बीर अली के परिवार की व्यथा

मनोज कुमार सिंह

गोरखपुर से 60 किलोमीटर दूर महराजगंज जिले के लेहरा रेलवे स्टेशन के पास बचगंगपुर गांव है। करीब छह हजार की आबादी वाल याह गांव 22 टोलों में बंटा है। इसी का एक छोटा टोला नरायनजोत है जिसमें करीब 700 लोग रहते हैं। यह टोला अल्पसंख्यक बहुल है।
इसी टोले में शब्बीर अली रहते थे। वह रेलवे में टैकमैन थे। वर्ष 2010 में रिटायर होने के बाद उन्होंने अपने तीनों बेटों के लिए घर बनवाया। उनका बड़ा बेटा रईस उनके साथ रहकर खेतीबारी में सहयोग करता था जबकि उससे छोटे रफीक और अलीमुहम्मद पंजाब में लुधियाना के होजरी कारखाने में मजदूरी करते हैं। शब्बीर अली ने तीनों बेटों और बेटी का विवाह कर दिया था और पत्नी सायरा के साथ जिंदगी गुजर-बसर कर रहे थे। उन्हें करीब 12 हजार रूपए पेंशन मिलती थी। पूरे परिवार के पास दो एकड़ खेत भी था। पेंशन और खेती से होने वाली आय उनके अर्थ का सबसे बड़ा स्रोत था।

शब्बीर अली (फाइल फोटो)
शब्बीर अली (फाइल फोटो)

सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था लेकिन आठ नवम्बर की रात आठ बजे नोटबंदी की घोषणा और इसके बाद मची अफरा-तफरी ने इस परिवार में भूचाल ला दिया। शब्बीर के पास ज्यादा नगदी नहीं होते थे, इसलिए उसे बैक में जमा करने की कोई बात नहीं थी। नवम्बर माह की पेंशन जब उनके खाते में आयी तो उसे निकालने के लिए बैंक गए तो उन्हें भारी भीड़ का सामना करना पड़ा। उनका खाता गांव से तीन किलोमीटर दूर बृजमनगंज स्थित स्टेट बैंक आफ इंडिया में था। यहां पर पंजाब नेशनल बैंक और पूर्वांचल ग्रामीण बैंक की भी शाखा थी लेकिर सबसे अधिक खाते स्टेट बैंक में ही थे।

बैंक में भगदड़ में कुचल कर मरे शब्बीर अली (फाइल फोटो)
बैंक में भगदड़ में कुचल कर मरे शब्बीर अली (फाइल फोटो)

खाते में पेंशन आने के बाद वह दिसम्बर माह के पहले सप्ताह से रोज बैंक जाने लगे क्योंकि बच्चों की फीस व घरेलू कार्यों के लिए नगदी की जरूरत थी। बेटा रईस उन्हें बाइक से बैंक ले जाता। दोनों 15 दिसम्बर को बैंक पहुंचे लेकिन पूरे दिन बैंक पर गुजारने के बावजूद उन्हें पैसा नहीं मिला। इसके बाद वे दो दिन और गए लेकिन उन्हें पैसा नहीं मिल पाया। बैंककर्मियों ने करेंसी की कमी बतायी। इसके बाद वे 20 दिसम्बर को सुबह आठ बजे ही बैंक पहुंच गए और लाइन में लग गए। पिता को किनारे बिठाकर रईस लाइन में लग गया। बैंक खुला तो करीब 100 लोगों को चैनल गेट के अंदर आने दिया गया। रईस अंदर आने में सफल हो गया लेकिन शब्बीर बाहर ही रह गए। बाउचर पर दस्तखत व कैशियर के सामने मौजूदगी की अनिवार्यता के चलते शब्बीर चैनल गेट के अंदर आने का प्रयास करने लगे जबकि वहां मौजूद पुलिस कर्मी लोगों को अंदर आने से रोकने लगा। इसी आपधापी में अचानक भीड़ बेकाबू हो गई और भगदड़ मच गई। भगदड़ में घिर शब्बीर गिर पड़े और कुचल गए। उन्हें पेट में चोट लगी।

बचगंगपुर गांव के प्रधान सोहित साहनी और जवाहिर
बचगंगपुर गांव के प्रधान सोहित साहनी, जवाहिर व अन्य ग्रामीण

रईस ने पिता को घायल होते देखा लेकिन कोई मदद नहीं कर सका क्योंकि वह चैनल गेट के अंदर था और गार्ड उसे बाहर आने नहीं दे रहा था। बड़ी मिन्नत के बाद उसे किसी तरह दो हजार रूपए मिले और और वह बाहर आ पाया।
शब्बीर अली के साथ उनके गांव के जवाहिर भी बैंक से पैसा निकालने गए थे। वह बताते हैं कि ‘ सैकड़ों लोग लाइन में लगे थे। 100 मीटर दूर तक लाइन लगी थी। भगदड़ में शब्बीर बुरी तरह कुचल गए। उनका बेटा रईस चैनल गेट के अंदर था जबकि शब्बीर चैनल गेट के पास। रईस के पुलिस वालों ने एक घंटा बाद बाहर आने दिया। ’
रईस मोटरसाइकिल पर पिता को बिठाकर अस्पताल ले जाने की कोशिश करने लगा लेकिन उसके पिता बार-बार बेहोश हो जा रहे थे। यह देख उसने 108 नम्बर की एम्बुलेंस को फोन किया। एम्बुलेंस आने के बाद वह पिता को लेकर सीएचसी पहुंचा। चिकित्सकों के इलाज शुरू किया लेकिन करीब आधे घंटे बाद रईस के नजरों के सामने शब्बीर ने दम तोड़ दिया।
शब्बीर की मौत से उनका परिवार अभी भी सदमे में हैं। कुछ भी पूछने पर पत्नी सायरा रोने लगती हैं। बेटे रईस ने ग्राम प्रधान सोहित साहनी की मदद से उसने सभी औपचारिकताएं पूरी कर जिलाधिकारी, मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री को आर्थिक मदद के लिए पत्र भेजा लेकिन उसे कोई मदद नहीं मिली। डीएम कार्यालय से स्पष्ट रूप कुछ नहीं बताया गया।

शब्बीर अली पर 40 हजार का फसल कर्ज है जो अभी तक माफ़ नहीं हुआ है
शब्बीर अली पर 40 हजार का फसल कर्ज है जो अभी तक माफ़ नहीं हुआ है

वह पिता की मौत के लिए हुकूमत और बंैक को जिम्मेदार बताता है। शब्बीर कहते हैं-हमारे पिता की मौत के लिए हुकूमत जिम्मेदार है क्योंकि उसके फैसले के कारण ही पिता की जान गई। इसके बावजूद उसे कोई मदद नहीं की गई। उसने मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री को फैक्स व ईमेल किया लेकिन उसका कोई जवाब नहीं दिया गया। आखिर सरकार किसके लिए है ? सरकार का काम है कि पब्लिक की सुनवाई करे। अफसर सुनवाई करे लेकिन हमारी तो एक वर्ष से कोई सुनवाई ही नहीं हो रही। न यूपी सरकार सुन रही न केन्द्र सरकार। ’
शब्बीर कहते हैं कि सरकार के नोटबंदी के फैसले से हमारा घर उजड़ गया। और भी कई लोगों का घर उजड़ गया। नोटबंदी मोदी सरकार का गलत फैसला था। मेरे पिता की तरह कई लोग मरे। पता नहीं उन परिवारों को कोई मदद मिली कि नहीं मिली। जब मुझे नहीं मिली तो उन्हें भी नहीं मिली होगी।
शब्बीर बताते हैं कि पिता की पेंशन की उनके परिवार का सहारा था। अब मां को आधी पेंशन मिलती है। इस वर्ष बाढ़ ने धान की फसल को भी बर्बाद कर दिया। इससे उसकी आर्थिक स्थिति बहुत खराब हो गई है। उसके पिता के उपर 40 हजार का फसल कर्ज था। उसे उम्मीद थी कि योगी सरकार उस कर्ज को माफ कर देगी लेकिन यह उसका कर्जा माफ नहीं हुआ है।
वह रोषपूर्ण शब्दों में कहता है कि जहरीली शराब पीकर मरने वाले लोगों को सरकार तो मुआवजा देती है। बाढ़ में डूबने से मरने वाले लोगों के घर वालों को सहायता दी जाती है लेकिन सरकार की गलत नीतियों के कारण जिनकी जान गई, उसे सरकार मदद देना तो दूर उनका दुख-दर्द भी जानने की कोशिश नहीं कर रही। ’

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