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नोटबंदी ने गरीब पत्थरकटों का छीना निवाला

प्रमाणपत्रों व बैंक खाता के आभाव में नही बदल पा रहे बड़े नोट

सिसवा बाजार (महराजगंज), 16 नवम्बर। गरीबी से जूझ रहे पत्थर के सिलबट्टे बेचने वाले सात परिवारों को नोटबंदी ने भूखे पेट सोने को विवश कर दिया है। वे  एक ही जगह 30 वर्षों से झोपङी में जीवन यापन कर रहे हैं परंतु आज तक उस ग्राम सभा ने उन्हें गांव के नागरिक मान कर प्रमाण पत्र जारी नही किया जिसके आभाव में अपने बड़े नोट न बदल पाने के कारण भुखमरी के कगार पर पहुँच गए हैं।
विकास खण्ड के ग्रामसभा सबयां दक्षिण टोला के चिरैयाकोट मन्दिर के पास विगत 30 वर्षों से रह रहे आधा दर्जन से ऊपर पथरकट समुदाय के कुनबों पर नोट बन्दी के बाद भुखमरी की नौबत आ गयी है। यहाँ अनिल, नरेश, महेश, रमेश, संजय, मीकू, दुर्गेश, राकेश का कुनबा मन्दिर के पास छप्पर में निवास करता है।इस कुनबे में 25 से 30 सदस्य हैं। इनका पेशा पत्थर के सील और लोढ़ा बेचना है। जो प्रतिदिन सौ से दो सौ रूपये की कमाई में अपने परिवार का गुज़ारा करते हैं। कभी-कभी स्थिति तो यह भी आती है कि किसी परिवार को भूखे पेट ही सोना पड़ता है। इन परिवारों की महिलाओं ने मेहनत की कमाई से बचाकर एक हज़ार और पांच सौ के नोटों को बचत के रूप में रखा है। इनके परिवार में आज तक किसी का भी मतदाता पहचान-पत्र, राशन-कार्ड या आधार कार्ड नहीं बना है। जिसके चलते आज तक न तो इनको आवास मिला और ना ही किसी बैंक में खाता खुला है। अब इनके सामने यह सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि दुर्दिन में काम आने वाले पैसों को कहाँ लेकर जाएँ।

नरेश, दुर्गेश और मीकू ने बताया कि शनिवार को वे बड़े नोट लेकर सिसवा कस्बे के एक बैंक में गये थे। बैंक में यह कहा गया कि रूपये बदलने के लिये पहचान-पत्र लेकर आओ। इसलिए वे निराश होकर वापस चले आये।
नरेश का कहना है कि गोरखपुर का एक व्यापारी हम लोगों के पास पत्थर भेजवाता था जिसे बेचने के बाद हम लोग भुगतान करते थे। पर व्यापारी ने भी बड़ा नोट लेने से मना कर दिया है। घर का जरुरी राशन लाने के लिए बाजार में बनिये की दुकान पर जाते हैं तो वहां भी दूकानदार बड़ा नोट नहीं ले रहा है। प्रत्येक शुक्रवार को यहाँ लगने वाले पशु बाजार उनकी बिक्री का एक माध्यम था। परन्तु नोट बन्द होने के बाद यहाँ व्यापारी नहीं आ रहे हैं। गाँवों में सील ले जाकर बेचने पर वहां भी लोग बड़े नोटों को लेकर परेशान हैं। जिसके चलते उनकी बिक्री नहीं हो पा रही है। इस परिस्थिति में हम परिवार के सदस्यों का पेट भरने के लिये छोटे नोट कहाँ से लायें ?

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