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पुलिस को मिलिट्राइज़ करने के बजाए डेमोक्रेटाइज़ करने की ज़रूरतः विकास नारायण राय

बटला हाउस की नौवीं बरसी पर गौरी लंकेश को याद करते हुए रिहाई मंच ने किया ’लोकतंत्र पर बढ़ते सरकारी हमले’ विषय पर किया सेमिनार
लखनऊ, 19 सितम्बर। बटला हाउस फर्जी मुठभेड़ की नौवीं बरसी पर यूपी प्रेस क्लब लखनऊ में रिहाई मंच ने ’लोकतंत्र पर बढ़ते हमले’ विषय पर सेमिनार का आयोजन किया। इस मौके पर बाटला हाउस के बाद आज़मगढ़ की स्थिति पर ’तारीखों में गुज़रे नौ साल’ रिपोर्ट जारी की गई।
समझौता एक्सप्रेस बम विस्फोट की जांच करने वाली एसआईटी के प्रमुख रहे हरियाणा कैडर के पूर्व आईपीएस अधिकारी विकास नारायण राय ने कहा कि जब समझौता बम विस्फोट हुआ था तो पहले अलकायदा और सिमी को लेकर शक किया गया लेकिन जब हम जांच के दौरान सबूतों को खंगालने लगे तो दो महीने के भीतर ही इंदौर से इसके कनेक्शन जुड़ने लगे। इस घटना में चाहे कर्नल पुरोहित हों, असीमानंद हों या प्रज्ञा सिंह ठाकुर हों इस पूरे गिरोह की भूमिका अजमेर, मक्का मस्जिद जैसी घटनाओं में भी थी। जबकि मक्का मस्जिद मामले में पहले मुस्लिम लड़के पकड़ लिए गए थे।
सुरक्षा एजेंसियों की भूमिका पर बोलते हुए उन्हें कहा कि एनआईए की भूमिका के चलते जहां प्रज्ञा ठाकुर बरी हुयीं तो वहीं इसका लाभ कर्नल पुरोहित को भी मिला। भाजपा सांसदों द्वारा समझौता कांड के फिर से जांच कराने के मामले पर उन्होंने कहा कि सबूत सबूत होते हैं और उसके आधार पर किसी भी जांच का निष्कर्ष वही निकलना है। बाटला हाउस मामले पर काफी सवाल उठेे जिसे बहुत पारदर्शी तरीके से सरकार जांच करा कर जवाब दे सकती थी। लेकिन सरकार ने ऐसा नहीं करके लोकतांत्रिक मूल्यों के साथ मजाक किया। ऐसे रवैए से लोकतांत्रिक संस्थाओं के प्रति लोगों में निराशा फैलती है जो लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है।
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बाटला हाउस की बरसी पर पुलिस की भूमिका पर प्रेस क्लब में बोलते हुए श्री राय ने कहा पुलिस को मिलिट्राइज़ नहीं बल्कि डेमोक्रेटाइज़ करने की ज़रूरत है। लोकतंत्र के कमज़ोर होने के चलते राज्य शक्ति उससे खेल रही है। शासन की जो राजनीतिक भाषा है वह पुलिस की भाषा बनती जा रही है। हमारे देश की पुलिस पीपीपी माॅडल जैसी ट्रेनिंग पाई है। रूल आफ लाॅ में हम किसी से पीछे नहीं हैं लेकिन रोल आफ लाॅ न होने की वजह से लोकतंत्र कमज़ोर होता है। उन्होंने कहा कि पुलिस की ट्रेनिंग ही इस तरह हो रही है कि उनका राजनीतिक और आपराधिक इस्तेमाल बहुत आसानी से हो जाता है। ऐसी पुलिस लोकतंत्र के लिए खतरनाक है। भारत में शराणर्थियों पर लगने वाले आतंक के आरोप को भी उन्होंन सवाल किया। लोकतंत्र जनता की भागीदारी से मज़बूत होता है, रिहाई मंच जैसे संगठनों से मज़बूत होता है।
अधिवक्ता और मानवाधिकार कार्यकर्ता असद हयात ने कहा कि बटला हाउस फर्जी इनकाउंटर केस में दिल्ली राज्य और केंद्र की सरकारें सच को सामने लाना नहीं चाहती थीं। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने पत्र लिख कर दिल्ली सरकार को कहा कि हर इनकाउंटर केस की मजिस्ट्रेट जांच होना आवश्यक होता है परंतु दिल्ली के लेफ्टीनेंट गवर्नर ने इस आधार पर जांच कराने से इनकार कर दिया कि मृतक आतिफ और साजिद दोनों इंडियन मुजाहिदीन से सम्बंध रखने वाले आतंकी थे और जांच कराने से पुलिस का मनोबल गिर जाएगा। जिस तरह से इनकांउटर पर सवाल उठे यह सरकार का दायित्व था कि वह इसकी निष्पक्ष जांच कराए परंतु सरकार दोषी पुलिसकर्मियों के पक्ष में आ खड़ी हुई। दिल्ली राज्य और केंद्र सरकारों का यह अमल लोकतंत्र पर हमला था। सर्वोच्च्च न्यायालय ने पीड़ितों के लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा करते हुए मणिपुर के 1528 फर्जी इनकांउटर मामले में जो निर्णय दिया है वह मील का पत्थर है जिसमें कोर्ट ने कहा कि पुलिस अगर आवश्यकता से अधिक बल प्रयोग करती है तो उसे दोषी माना जाएगा। बटला इनकाउंटर केस में पुलिस ने प्रतिशोध और सीमा से अधिक बल प्रयोग किया जो आतिफ और साजिद की पोस्टमाॅर्टम रिर्पोटों से साबित है। लोकतंत्र पर सरकारी हमले का दूसरा उदाहरण मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का मुकदमा है जिन पर धारा 153 ए, 295 ए आईपीसी के अंतर्गत आरोप है। इन धाराओं के अंतर्गत मुकदमा चलाने के लिए यह आवश्यक है कि राज्य सरकार से इसकी अनुमति प्राप्त की जाए। इस मामले में केंद्रिय वित्त राज्यमंत्री श्री शिव प्रताप शुक्ला, गोरखपुर की पूर्व मेयर अंजू चैधरी, गोरखपुर सदर विधायक राधा मोहन दास अग्रवाल और पूर्व एमएलसी डाॅ वाईडी सिंह अभियुक्त हैं। सीबीसीआईडी ने इन सभी के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए राज्य सरकार से अनुमति मांगी थी परंतु योगी सरकार ने इनकार कर दिया और मामले में फाइनल रिपोर्ट लगवा दी। प्रश्न यह है कि क्या कोई व्यक्ति अपने ही मामले का जज हो सकता है ?
सेवानिवृत डिप्टी एसपी शंकर दत्त शुक्ला ने कहा कि पुलिस के अंदर काफी सुधार की जरूरत है। पुलिस में संवैधानिक और लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति सम्मान की कमी के कारण पुलिस का अपराधीकरण और राजनीतिकरण काफी बढ़ा है जिससे लोकतंत्र ही खतरे में पड़ गया है।
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सामाजिक कार्यकर्ता परवेज परवाज ने कहा कि गौरी लंकेश की हत्या उन आवाजों को दबाने की कोशिश है जो लोकतंत्र के गुंडातंत्र में तब्दील किए जाने का विरोध कर रहे है। आज दुर्भाग्य से ऐसी शक्तियां सत्ता पर काबिज हैं जो लोकतंत्र को ही खत्म करने पर तुली हैं।
इस दौरान ‘तारीखों में गुजरे 9 साल’ रिपोर्ट भी जारी हुई जिसमें विभिन्न राज्यों में इंडियन मुजाहिदीन के नाम पर गिरफ्तार आजमगढ़ के लड़कों के मुकदमों की प्रगति, जेलों में उत्पीड़न और इन सबसे उपजी परिस्थितियों के कारण परिजनों की सदमों से मौत से लेकर व्यक्तिगत, सामाजिक और आर्थिक पीड़ाओं को समझने का प्रयास किया गया है। रिपोर्ट बताती है कि कैसेे करीब 9 साल बीत जाने के बाद भी इन मुकदमों में आधे से कम गवाह ही पेश किए गए हैं। मसलन, अहमदाबाद में जहां कुल गवाहों की संख्या 3500 है वहां सिर्फ 950 गवाहों की ही गवाही अब तक हो पायी है।
अध्यक्षीय सम्बोधन में रिहाई मंच के अध्यक्ष एडवोकेट मो0 शुऐब ने कहा कि आज बटला हाउस की नौवीं बरसी पर जब हम यह आयोजन कर रहे हैं तब 9 साल पहले पकड़े गए कर्नल पुरोहित और प्रज्ञा ठाकुर को ज़मानत मिल चुकी है वहीं इतने सालों बाद यह भी तय नहीं हो पाया है कि योगी आदित्यनाथ पर मुकदमा चलेगा कि नहीं और आज वह यूूपी के सीएम बन चुके हैं। आतंक के साम्राज्यवादी कुचक्र में मुसलमान आज़ादी के बाद साम्प्रदायिक दंगों में मारा गया। बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद आतंकवाद के झूठे आरोपों में जेलों में ठूंस दिया गया। वहीं मौजूदा दौर में आज राह चलते हुए उसे डर रहता है कि वह माॅब लिंचिंग का शिकार न हो जाए। जो मल्टीनेशनल लाॅबी यह खेल खेल रही है उसी का शिकार देश का दलित, आदिवासी ही नहीं बल्कि इन सवालों को उठाने वाले गौरी लंकेश जैसे पत्रकार भी हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह विचारों का टकराव है इसीलिए रूढ़िवाद के खिलाफ लड़ने वाले किसी दाभोलकर, किसी कलबुर्गी व पांसरे की हत्या की जा रही है। ऐसे दौर इन शहादतों पर हमें शोक व्यक्त करने के बजाए लोकतंत्र के लिए संकल्पित होना चाहिए।
कार्यक्रम का संचालन रिहाई मंच प्रवक्ता शाहनवाज़ आलम ने किया। इस दौरान आदियोग, राकेश, नीति सक्सेना, आशा मिश्रा, कल्पना पांडेे, शिवा जी राय, सिद्धार्थ कलहंस, के के शुक्ला, इंद्र प्रकाश बौध, शाहरूख अहमद, वर्तिका शिवहरे, जैद अहमद, पीसी कुरील, मो0 सुलेमान, तारिक शमीम, आमिक जामई, नाहिद अकील, सदफ जफर, खालिद अनीस, मो0 खालिद, रफत फातिमा, सैफ बाबर, मो0 शाद, हादी खान, लक्ष्मण प्रसाद, रोबिन वर्मा, अमन सोनकर, दीपक कबीर, अंकित चैधरी, शरद पटेल, रामकृष्ण, अजय शर्मा, शाह आलम, हरे राम मिश्रा, हाजी फहीम, फरीद खान, भगत सिंह यादव, अबू अशरफ, इरफान अली, अब्दुल हन्नान, फैजान मुसन्ना, अजय यादव, फिरदौस सिद्दीकी, अजीजुल हसन, मो0 नसीम, तारिक शफीक, राजीव यादव अनिल यादव आदि मौजूद रहे।

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