साहित्य - संस्कृति

प्रो कृष्णा की हत्या देश की ऐतिहासिक विरासत की हत्या है- जसम

नई दिल्ली, 4 मार्च । जन संस्कृति मंच ने मराठी दलित चिन्तक प्रो. कृष्णा किरवले की हत्या बौद्धिक और नागरिक समाज के लिए गहरी चिंता का विषय बताते हुए कहा है कि प्रो कृष्णा की हत्या देश के ऐतिहासिक विरासत की हत्या है।

जन संस्कृति मंच की ओर से रामनरेश राम द्वारा जारी विज्ञप्ति में कहा प्रो कृष्णा 3 मार्च 2017 को पश्चिमी महाराष्ट्र के कोल्हापुर शहर में स्थित अपने आवास में शुक्रवार को मृत पाए गए। पुलिस ने बताया है कि राजेंद्र नगर स्थित उनके आवास से मिले उनके शव पर चाकू से कई बार मारे जाने के निशान हैं। उनकी उम्र 62 वर्ष की थी। वे कोल्हापुर के शिवाजी विश्वविद्यालय के मराठी विभाग के प्रमुख के पद से सेवानिवृत्त हुए थे। प्रो किरवाले ने साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान किया है।

उन्होंने बाबूराव बागुल की जीवनी के साथ साथ अन्य महत्वपूर्ण किताबें भी लिखी हैं। उनका सबसे मत्वपूर्ण काम दलित एवं ग्रामीण साहित्य का शब्दकोष माना जाता है। यह कितना दुखद है कि हमारा समाज अपने लेखकों को इस तरह से खो रहा है। अभी पिछले वर्षों हमने प्रो कलबुर्गी, गोविन्द पानसरे और दाभोलकर को भी इसी तरह से खोया है। ये किस तरह के संकेत हैं ? हम कैसे समाज में बदलते जा रहे हैं। अपने लेखकों और बुद्धिजीवियों और कलाकारों की सृजनात्मक अभिव्यक्ति को बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं। क्या हम एक ऐसा समाज बनने जा रहे हैं जहाँ पर अब साहित्य, कला और संस्कृति की अभिव्यक्ति या तो गुजरे ज़माने की चीज हो जायेगी या राजकीय चारण की परंपरा का अनुसरण करते हुए अपने अस्तित्व की रक्षा करेगी ? देखने यह आया है कि तार्किक, वैज्ञानिक और सामाजिक न्याय पसंद तथा धर्मनिरपेक्ष प्रकृति के साहित्यकारों और कलाकारों के प्रति एक खास तरह की घृणा का राजकीय प्रचार किया जा रहा है। बहुत जिम्मेदार पदों पर बैठे हुए लोग अभिव्यक्ति की सीमाएं खीचते हुए और कई बार उसको बंद कर देने की मांग करते हुए दिखाई देते हैं। इधर के वर्षों में तो यह भावना और भी प्रायोजित ढंग से पैदा की जा रही है। समाज की अधोगति के कारणों के बतौर इनको प्रमुखता से उद्दृत किया जा रहा है। हम देख रहे हैं कि उच्च शिक्षा के अध्यापकों का चरित्र चित्रण करते हुए उनको देश विरोधी और समाज विरोधी की तरह प्रस्तुत किया जा रहा है। जगह जगह अध्यापकों को सार्वजनिक सेमिनारों में बोलने से रोका जा रहा है. इसके लिए हिंसात्मक तरीके का इस्तेमाल किया जा रहा है। जोधपुर से लेकर रामजस तक की घटनाएँ इसकी पुष्टि करती हैं। ऐसे में सरकार बुद्धिजीवियों और अमन पसंद नागरिकों के लोकतान्त्रिक अधिकारों की रक्षा को सुनिश्चित करने के बजाय सहाय छोड़ दे रही है। ऐसा क्यों है कि उच्च शिक्षा के अध्यापक और छात्र ही अभिव्यक्ति की हिंसात्मक सेंसरशिप से गुजर रहे हैं। हमें लगता है कि वरिष्ठ और वृद्ध लेखकों की हत्या जहाँ अपने ऐतिहासिक विरासत की हत्या है वहीँ छात्रों और कलाकारों पर हिंसा देश के भविष्य पर हमला है। जन संस्कृति मंच इस घटना के खिलाफ अपना प्रतिरोध जाहिर करता है और प्रो कृष्णा को हार्दिक श्रद्धांजलि व्यक्त करता है।

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