साहित्य - संस्कृति

‘ फिजाँ में उड़ रहे है जहरीले जुगनू क्यों नहीं दिखते, किसी भी हादसे के सारे पहलू क्यों नहीं दिखते ‘

एमएसआई का ग्राउंड बना बेहतरीन मुशायरे का गवाह
गोरखपुर, 4 मई। मंगलवार की रात मियां साहब इस्लामियां इण्टर कालेज बक्शीपुर बेहतरीन मुशायरे का गवाह बना। लोग बेहतरीन शायरों को अपने रूबरू पाकर भावविभोर हो गये। भीड़ से पूरा ग्राउंड भरा रहा।

जश्न-ए-मौलाना मोहम्मद अली जौहर यूनिवर्सिटी, कायदे मिल्लत व बानी-ए-जौहर कैबिनेट मंत्री मोहम्मद आजम खां के स्वागत में आल इण्डिया मुशायर का आयोजन कौमी सलामती काउन्सिल ने किया था।
मेहमाने खुसूसी मोहम्मद आजम खां  व राज्यसभा सांसद चैधरी मुनव्वर सलीम ने शमां को रोशन कर महफिल का आगाज किया। संचालन को बाखूबी अंजाम देने के लिए नदीम फर्रूख जैसे ही स्टेज पर आये तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा ग्राउंड गूंज उठा।
इसके बाद इकबाल अशहर  ने  अपना कलाम पेश कर दाद पायी-

सितम तो ये कि हमारी सफों में शमिल हैं।
चिराग बुझते ही खेमा बदलने वाले लोग।
हमारे दौर का फिरऔन डूबता ही नहीं।
कहां चले गए पानी पे चलने वाले लोग।
हरदिल अजीज शायर इमरान प्रतापगढ़ी  ने जैसे ही माइक अपने हाथ में लिए फिजा में रौनक बढ़ गयी। कलाम पेश किया
तुम्हारे पहले बोला है, तुम्हारे बाद बोला है।
भगत अशफाक बन करके कभी आजाद बोलेंगे।
तुम्हें जय बोलना है भारत मां की शौक से बोलो।
मगर हम जय नहीं बोलेंगे, जिंदाबाद बोलेंगे।
इसके बाद उन्होने कहा-

जो नफरत के सबब उठी थी, वो ललकार किसकी थी।
हमारे खून को प्यासी वो तलवार किसकी थी।
हमारी गर्दनें मत काटिए बस ये बता दीजिए।
जिसे तुम पहनकर भागे थे वो सलवार किसकी थी।
पढ़ बाबा रामदेव पर तंज कसा।  इसके बाद उन्होंने कन्हैया प्रकरण पर पढ़ा-
था शहंशाह को गुरूर बहुत, रब ने उसका गुरूर तोड़ दिया।
कल थी जो छप्पन इंच की छाती, एक कन्हैया ने सब सिकौड़ दिया।
इसके बाद दादरी घटना पर पढ़ा-
फिजा में उड़ रहे है जहरीले जुगनू क्यों नहीं दिखते,
किसी भी हादसे के सारे पहलू क्यों नहीं दिखते,
जो मां को याद कर परदेश में आंसू बहाता है।
उसे अख्लाक की अम्मी के आंसू क्यों नहीं दिखते।।

 

 

mushayra

इसके बाद पढ़ा- मैं अमनों प्यार का परचम उठा के लाया हूं/मोहब्बतों भरा मौसम उठा के लाया हूं/इलाहाबाद की जमीं से यारों, मैं अपने साथ में संगम उठा के लाया हूं।’
खुर्शीद हैदर ने शानदार लहजे में अपना कलाम सुनाया- गैर परों पर उड़ सकते है हद से हद दीवारों तक/ अम्बर पर तो वहीं उड़ेगे जिनके अपने पर होंगे।

असद महताब ने कलाम पेश किया-तमाम रात यहीं कारोबार करता हूं/मैं एक दिया हूं अंधेरों पर वार करता हूं।
अख्तर हुसैन ने पढ़ा-मेरी तकदीर काली हो गई है/मुसीबत आखं वाली हो गई है/ यहाँ जो कुछ भी है सब तयशुदा है/ हमीं से बे ख्याली हो गई है/ बदन पर चिथड़े बस रह गए है/जरूरत मिसाली हो गयी है।’
अजीजी रब्बानी ने -सख्त मेहनत की बदौलत मिलता है रिज्क हलाल/सूखी रोटी भी मिली तो तर निवाला हो गया/मां के चेहरे खिल उठे बच्चें मचायें शोरोगुल/बाप की आमद हुई घर में उजाला हो गया ‘ पढ़ दाद पायी।
मुशायरे में राजेश रेड्डी, रेहान हाशमी, हाशिम फिरोजाबादी, आदि ने अपनी रचनाएँ पढ़ीं। अध्यक्षता टीएन श्रीवास्तव वफा गोरखपुरी ने की।
इस दौरान विशिष्ट अतिथि के तौर पर मौजूद राज्यसभा सदस्य चैधरी मुनव्वर सलीम, हाजी शकील अहमद (अध्यक्ष, अल्पसंख्यक आयोग/राज्यमंत्री) सपा के वरिष्ठ नेता  व कौमी सलामती कौंसिल के अध्यक्ष जफर अमीन डक्कू, सचिव हाजी मोहम्मद अलकमा, डा. मिर्जा कैसर बेग, डा. विनय वर्मा, डा. शहबाज, डा. हयातुल्लाह, संजय कुमार सिंह , कपीस श्रीवास्तव, अजयानन्द सिंह मुन्ना, संतोष कुमार यादव, कमर महमूद, अनुज अस्थाना, अफजल खान, धर्मेन्द्र पाण्डेय, वसीक अहमद, सरोज यादव, सुरेश कुमार अग्रहरी, ओम प्रकाश अग्रवाल, विनोद अग्रहरी, विजेन्द्र अग्रहरी, अनुराग गोयल, लाल साहब सिंह, नीरज पाठक, राजेश सिंह, फरहान अंसारी, बदरूलहक खालिदी, राजेश पाण्डेय, शम्से आलम, मुहम्मद कैस, मुहम्मद अली, रामकुमार कुशवाहा, अब्दुल्लाह, सैफुर्रहमान ’प्रिन्स’, इमरान सौदागर, शकील शाही, कमरे आलम, मंजूर आलम, बशीर अली, आशीष वर्मा, जफर खान, वजीउल्लाह अंसारी, हाजी फरजंन्द, रवीन्द्र अग्रहरी, हाफि़ज बदरूद्दीन, राजेश सिंह, रामजनम यादव, ताजुद्दीन अंसारी, अरशद हुसैन शब्बू आदि मौजूद रहे।

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