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बिजली के निजीकरण से फायदा और सुधार का दावा गलत : विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति

 

बिजली के निजीकरण के विरोध में बिजली कर्मचारियों व अभियन्ताओं का विरोध प्रदर्शन जारी

लखनऊ, 23 मार्च. विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति, उप्र के आह्वान पर गुरुवार को चौथे दिन भी प्रदेश भर में परियोजना व जिला मुख्यालयों पर बिजली कर्मचारियों व अभियन्ताओं के विरोध प्रदर्शन जारी रहे। लखनऊ में मध्यांचल विद्युत वितरण निगम के मुख्यालय व रेजीडेन्सी में हुई विरोध सभा में भारी संख्या में कर्मचारी व अभियन्ता उपस्थित थे।

संघर्ष समिति ने आगरा की बिजली व्यवस्था निजी फ्रेन्चाइजी टोरेंट को सौंपने के बाद हुए सुधारों के सरकार व प्रबन्धन के दावों को खारिज करते हुए कहा कि जिन 05 शहरों का विद्युत वितरण का निजीकरण किया जा रहा है उन पांचों शहरों की बिजली व्यवस्था व राजस्व वसूली आगरा की तुलना में कहीं बेहतर हैं। आकड़े देते हुए संघर्ष समिति के पदाधिकारियों ने बताया कि जनवरी 2018 तक चालू वित्तीय वर्ष में वाराणसी की राजस्व वसूली 6.50 रू प्रति यूनिट, लखनऊ की राजस्व वसूली 6.08 रू प्रति यूनिट, मुरादाबाद की राजस्व वसूली 5.25 रू प्रति यूनिट, गोरखपुर की राजस्व वसूली 5.15 रू प्रति यूनिट और मेरठ की राजस्व वसूली 5.10 रू प्रति यूनिट है जबकि आगरा में निजी कम्पनी कारपोरेशन को 3.91 रू प्रति यूनिट दे रही है। आकड़ों से स्पष्ट है कि आगरा जैसे बड़े औद्योगिक एवं वाणिज्यिक शहर के निजीकरण से पावर कारपोरेशन को प्रति वर्ष अरबों की क्षति उठानी पड़ रही है।
समिति ने कहा कि पावर कारपोरेशन निजी घरानों विशेषतया रिलायंस और बजाज से काफी महंगी दरों पर बिजली खरीद रही है जिसके चलते उप्र में बिजली की लागत 6.74 रू प्रति यूनिट आ रही है। आगरा से पावर कारपोरेशन को 6.74 रू की लागत के सापेक्ष मात्र 3.91 रू मिल रहा है, जिसका सीधा अर्थ यह है कि आगरा में निजीकरण के चलते चालू-वित्तीय वर्ष में पावर कारपोरेशन को 2.83 रू प्रति यूनिट का नुकसान उठाना पड़ रहा है। विगत आठ वर्षों में इस प्रकार आगरा के निजीकरण से पावर कारपोरेशन को 4000 करोड़ रूपये से अधिक की क्षति हो चुकी है।
सरकार व प्रबन्धन द्वारा आगरा, दिल्ली, मुम्बई, अहमदाबाद और सूरत की बिजली व्यवस्था में सुधार के आकड़ों को फर्जी बताते हुए संघर्ष समिति ने कहा कि इन सभी स्थानों पर निजी कम्पनियाँ काम कर रही है और निजी कम्पनियों का सीएजी आडिट खुद सरकार नहीं होने दे रही है। ऐसे में बिना आडिट किये इन शहरों में सुधार की तरफदारी करना हास्यापद है। पांच शहरों की राजस्व वसूली में आगरा की तुलना में हो रहे भारी सुधार के बावजूद इन शहरों के निजीकरण के पक्ष में दलील देने से प्रमाणित हो जाता है कि प्रबन्धन के आला-अधिकारी निजी घरानों से मिले हुए हैं और प्रदेश के ऊर्जा क्षेत्र को तबाह करने पर अमादा है।
संघर्ष समिति ने पुनः दोहराया कि ऊर्जा विभाग व शासन के उच्च अधिकारियों के दमनात्मक रवैये के विरोध में 23 मार्च को पावर कारपोरेशन के अध्यक्ष की वीडियो कान्फ्रेसिंग का बहिष्कार किया जायेगा।
संघर्ष समिति की आज हुई बैठक में शैलेन्द्र दुबे, राजीव सिंह, गिरीश पाण्डेय, सदरूदद्ीन राना, विपिन प्रकाश वर्मा, सुहैल आबिद, राजेन्द्र घिल्डियाल, परशुराम, पी एन राय, पूसे लाल, ए के श्रीवास्तव, महेन्द्र राय, शशिकान्त श्रीवास्तव, करतार प्रसाद, के एस रावत, पी एन तिवारी, आर एस वर्मा, रामनाथ यादव, पवन श्रीवास्तव, शम्भू रत्न दीक्षित, कुलेन्द्र प्रताप सिंह, मो इलियास उपिस्थत थें।

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