राज्य

बुनकारों की बदहाली नहीं बनी चुनावी मुद्दा

सैयद फरहान अहमद

गोरखपुर, 11 फरवरी। उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव के लिए सभी प्रमुख दलों ने घोषणा पत्र जारी कर दिया है  लेकिन इन घोषणा पत्रों में बुनकरों के लिए कुछ नहीं हैं। हर बार की तरह इस बार भी बुनकरों की समस्या चुनावी मुद्दा नहीं है। बुनकरों की हालत तो पहले से खराब थी , नोटबंदी ने तो बुनकरों की कमर ही तोड़ दी हैं।  बुनकरों का कोई पुरसाहाल न था और न कोई हैं। बुनकर का पेट व मुट्ठी खाली।कृषि के बाद सबसे अधिक रोजगार देने वाले हथकरघा उद्योग आज अंतिम सांस ले रहा है। बुनकर का ताना बाना शो पीस बनकर रह गया है।

यह बात सही हैं कि दस्तकारी में अस्सी प्रतिशत योगदान मुसलमानों का है। लेकिन इस पसमांदा मुस्लिम समाज की आर्थिक, सामाजिक बदहाली तकदीर बन चुकी है। हालात इस बात के गवाह है कि सरकारों ने इन्हें वोट बैंक के तौर पर इस्तेमाल किया और आज भी कर रहे है। बुनकरों ने अपने हुनर के बदौलत देश में नहीं विदेशों में भी अलग पहचान बनायी। गोरखपुर की बनी चादर, तकिया, धोती, लुंगी, नेपाली टोपी का कपड़ा, गमछा सहित तमाम कपड़ों की काफी डिमांड थी। आज भी है। इसकी शोहरत दूर-दूर तक है। इन्हें बनाने वाले पहले मालिक थे, लेकिन अब मजदूरी करने पर मजबूर है। इनके भलाई के लिए योजनाएं है। लेकिन कागजों पर। बुनकर कार्ड शो पीस की शक्ल में। हेल्थ कार्ड है लेकिन उसके फायदे नहीं मालूम।

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बुनकर बहबूद सोसाईटी भी नाम की। सरकारें आयी और चली गयी। वादे किये। दावे किये। अमल नहीं किया। बुनकरों को हमेशा वोट बैंक समझा। गोररखपुर की विश्व धरोहर कला खत्म होने के कागार पर है। हथकरघाा की जगह पावरलूमों ने ले ली लेकिन वह भी कारगर साबित नहीं हुई। आजादी के बाद से ही इनकी बदहाली शुरू हुई जो अब तक जारी है। बुनकरों की समस्याएं इतनी कि दो जून की रोटी चलाना मुश्किल। पहले जहां जमुनिहया, रसूलपुर, दशहरी बाग, जाहिदाबाद, पुराना गोरखपुर, गोरखनाथ, अजय नगर, कामरेड नगर, नौरंगाबाद, बख्तियार, हुमायुंपूर, पिपरापुर, इलाहीबाग, तिवारीपुर, बनुकर बाहुल्य क्षेत्रों में चौबीस घंटे खटर-पटर की आवाज खामोश होेने के कागार पर है। अब हथकरघों की  खटर-पटर कम सुनायी पड़ती है। मुश्किल से दर्जनभर से कम हथकरघों बचे है। शासन द्वारा चलायी गयी योजनाएं लगातार बंद हो रही है।

वर्ष 1975-76 में सूती धागा उपलब्ध कराने के लिए प्रदेश में 23 कताई मिल लगायी गई। कपड़ों की बिक्री की समस्या के समाधान के लिए हथकरघा विकास निगम की स्थापना हुई। यह निगम करीब 17 सालों से बंद है। कताई मिले बंद हैं। ऐसे में हथकरघा पर काम करने वाले बुनकर लोगों को रोजगार देने वाले आज मजदूर बन गये। बुनकर बाहुल्य क्षेत्रों का जायजा लिया जाये तो पता चलेगा बड़ी संख्या में बुनकरों ने हथकरघे को किसी कोने में रख अन्य पेशा अपना लिया। जिसके पास पूँजी थी उसने पावरलूम लगवा लिया। फिर भी काफी संख्या में बुनकर मजदूरी कर रहे है। मारवाड़ी द्वार दिये गये धागे के एवज चंद पैसे मिल जाते है। सारा दिन काम करने के बाद कभी डेढ़ सौ तो कभी दौ सौ रूपया मिलता है। ऐसे में घर चलाना मुश्किल होता है। बच्चों के तालीम की बात तो दूर की कौड़ी है। जो योजनाएं चल रही है। उनके बारे में जानकारी नहीं है। इनके बदहाली की बड़ी वजह कच्चे माल का न मिलना भी है। धागों के बढ़ते रेट ने रोजी रोटी पर संकट खड़ा कर दिया है।
मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में जब गोरखपुर न्यूज़ लाइन उनकी समस्या से रूबरू हुआ तो  कई तथ्य सामने आये जिनसे हर खासों आम वाकिफ है। बुनकरों की रोजी रोटी के  लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ रही है। योजनाओं की जानकारी नहीं है। बुनकर कार्ड बना हैलेकिन उसके फायदे नहीं जानते। स्मार्ट कार्ड है उसके फायदों से अंजान। रहनुमाओं ने बुनकरों की अनदेखी कर उन्हें विकास से कोसों दूर कर दिया है।
रईस ने बताया कि सरकार ने हमारे तरफ ध्यान नहीं दिया। धागा मिलें बंद हो गयी। इससे बुनकरों की कमर टूट गयी। पहले हम मालिक थे अब मजदूरी करने को विवश। धागों के मूल्य में इजाफा ने जले में नमक का काम किया। योजनाओं के बारे में कोई जानकारी नहीं हे। बुनकर फंड, समय से सूत न मिलना सहित तमाम समस्याओं की वजह से बदहाल हो चुके है। पहले हजारों हथकरघे थे अब चंद बचे है। जो लोग इस पेशे से जुड़े थे। अन्य रोजगार में जा रहे है।
इरफान ने कहा कि बुनकरों की स्थिति बेहद खराब है। लड़कों को  बाहर भेज दिया है कमाने के लिए। घर चलाना मुश्किल होता है।
ऐहतेशाम ने कहा कि मजदूरी, धागा, बिजली सहित तमाम सारी समस्याओं से हालात बद से बदतर हो चुके है।
अमीन ने कहा कि हथकरघा बंद कर पावरलूम शुरू किया। छह लूम हैं लेकिन अपने लूम पर मजदूरी कर रहे है। मारवाड़ी के दिये धागे से कपड़ा तैयार कर रहे है। इसके एवज में मिलते है चंद पैसे। गीता प्रेस की चादर, तकिया, तौलिया, सब यहीं से तैयार होता है।
इस्तेफा ने कहा कि महंगाई ज्यादा हो गयी। सूत महंगा हुआ। बुनकर की कमर टूट गयी। सगीर ने कहा कि सरकार अगर तवज्जों देती तो स्थिति कुछ बेहत होती। शमीम अहमद ने सरकार को बदहाली के लिए जिम्मेदार माना।
नईम ने कहा हथकरघा आखिरी सांसें ले चुका है। अब इसके जिंदा होने की कोई उम्मीद नहीं है।
मसीउज्जमा व शाहिद बोले धागा के महंगे होने से काफी दुश्वारी होती है। पहले अस्सी लोगों को हमारे यहां से रोजगार मिलता था। अब यह संख्या  घट गयी है। तीस-चालीस लोग काम करते है। यहां से तैयार चादरें एवं अन्य  कपड़े जयपुर, आगरा, कानपुर, इलाहाबाद, मुरादाबाद, फैजाबाद, कोलकाता, सप्लाई किया जाता है। अहमद बोले जितनी योजनाएं है वह दलालों के हाथों में रहती है। ⁠⁠⁠⁠

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