जनपद

बैंकों से नहीं मिल पा रहा पैसा, किसान कैसे करें बुआई और नेवता-हकारी

रमाशंकर चौधरी, कुशीनगर

नोटबन्दी का सबसे अधिक असर गांवों में और किसानों में दिख रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकों की संख्या कम है। ग्रामीणों को बैंकों तक जाने के लिए पांच से दस किलोमीटर की यात्रा करनी पड़ती है। इतनी दूर आने के बाद भी बैंक से पैसे न मिलने पर उनका पूरा दिन बेकार चला जाता है।
ग्रामीण क्षेत्र मेें अधिकतर स्थानों पर पूर्वांचल बैंक की शाखाए हैं लेकिन इन शाखाओं पर बहुत कम नई करेंसी उपलब्ध करायी गयी है जिससे वे चाह कर भी ग्रामीणों व किसानों को भुगतान नहीं कर पा रहे हैं।

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किसानों ने धान, केला, हल्दी आदि बेच कर घर में गृहस्थी चलाने के लिए पैसे रखे थे। नोटबंदी की घोषणा होने के बाद उन्होंने 1000 व 500 के नोट बैंकों में जमा कर दिया लेकिन इसके बदले उन्हें बैंकों से भुगतान में नए नोट नहीं मिल पाए। अब उनके पास नगदी नहीं है जिससे रबी की बुआई के लिए खाद, बीज, कीटनाशक खरीद सकें और पानी, जुताई का पैसा दे सके। घर खर्च और रिश्तेदारों के यहाॅ शादी-ब्याह में जाना और नेवता हकारी करना भी उनके लिए मुश्किल हो गया है।

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धान की फसल कट कर मडाई के बाद घर रखी है। धान क्रय केन्द्रों पर नकदी खरीद नही हो रही है। व्यापारी औने पौने दाम में पुराने नोट दे रहे है। धान को बेच कर खाद व बीज की व्यवस्था करना चाहता है जो नही हो पा रहा है। खेत में खडे गन्ना की हालत यह है कि अभी चीनी मिलों का पेराई सत्र शुरु हुआ है। जाने कब तब समिति द्वारा सप्लाई टिकट मिलेगा और उसका भुगतान कब मिलेगा। इसके भरोसे रवि, दलहन की बोआई नही हो पायेगी।

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बैंक में सभी किसानों को केसीसी नही हुआ है। जिनका हुआ है उनमें से ज्यादे बकायेदार है। अधिकतर बैंक दो हजार से अधिक रूपए नहीं दे रहे हैं।
छितौनी निवासी राजेन्द्र कुशवाहा और महेन्द्र प्रसाद के पास दो से चार एकड खेत है। उन्होंने 1000 और 500 के नोट जमा कर दिए और अब पैसा निकालने के लिए रोज बैंक जा रहे हैं लेकिन उन्हें भुगतान पाने में सफलता नहीं मिल सकी है। जंगली यादव , रामकुपाल गुप्ता, श्री शर्मा नोटबन्दी की मार झेल रहे है। प्रशासन की ओर से किसानों को राहत कैसे पहुंचाई जाय इसकी अभी तक कोई व्यवस्था नही दिखाई दे रही है।

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