साहित्य - संस्कृति

भौगोलिक संप्रभुता नहीं, बल्कि हर इंसान की सर्वांगीण समृद्धि देशभक्ति- लाल्टू

हम प्यार करते हैं, इसीलिए प्रतिरोध करते हैं- लाल्टू
अंधे युग की वापसी के खिलाफ, अभिव्यक्ति की आजादी और लोकतन्त्र के लिए
साथी रोहित वेमुला की याद में 11वां गोरखपुर फिल्मोत्सव

गोरखपुर, 14 मई। गोरखपुर फिल्म सोसाईटी और जन संस्कृति मंच की तरफ से आज गोकुल अतिथि भवन, सिविल लाइंस में दो दिवसीय फिमोत्सव का आरम्भ हुआ। बगैर कॉर्पोरेट और बड़ी पूंजी के सहयोग से सामान्य दर्शकों के सक्रिय सहयोग से आयोजित होने वाले इस फिल्मोत्सव ने न सिर्फ 11 सालों की अपनी गतिशील परंपरा बनाई है, बल्कि समूचे देश में फिल्म प्रदर्शन की एक नई प्रेरणा भी दी है।
समारोह के उदघाटन सत्र में बोलते हुए मुख्य अतिथि कवि-विचारक लाल्टू ने कहा कि इस अंधेरे वक्त में हम सब एकजुट होकर लड़ रहे हैं, इकट्ठा हो रहे हैं, यह बेहद मानीखेज बात है। फिल्मोत्सव आयोजन समिति के अध्यक्ष वरिष्ठ कथाकार मदनमोहन ने कहा कि यह खतरनाक समय है। आजादी के बाद के किसी भी समय से ज्यादा हमारा लोकतन्त्र खतरे में है। ऐसे में अंधे युग की वापसी के खिलाफ अभिव्यक्ति की आजादी और लोकतन्त्र के लिए हमें एकजुट होकर संघर्ष को आगे बढ़ाना पड़ेगा। मंच पर ‘फैक्ट्री’ के निर्देशक राहुल रॉय और ‘जनमत’ फिल्म के निर्देशक तरुण मिश्र भी मौजूद थे। सभी अतिथियों ने फिल्मोत्सव की स्मारिका का विमोचन किया। इस सत्र का संचालन उत्सव के संयोजक चन्द्र भूषण अंकुर ने किया। सत्र के आखिर में वरिष्ठ पत्रकार अशोक चौधरी ने एक संकल्प पत्र पढ़ा जिसमें सिवान, बिहार के हिंदुस्तान से जुड़े प्रखर पत्रकार राजदेव रंजन और झारखंड के ताजा न्यूज चैनल के वीडियो पत्रकार अखिलेश प्रताप सिंह की हालिया हत्याओं की कड़ी भर्त्सना की गई थी। अशोक चौधरी ने इन हत्याओं को लोकतन्त्र के सामने चुनौती बताते हुए कहा कि ऐसी घटनाएँ जहां एक तरफ हमें दुख से भर देती हैं, वहीं दूसरी तरफ हमें इस अन्यायी व्यवस्था से लड़ने को प्रेरित भी करती हैं। सत्र के अंत में सभी लोगों ने दिवंगत पत्रकारों के प्रति एक मिनट का मौन रखकर अपनी श्रद्धांजलि व्यक्त की।
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सांगीतिक वीडियो ‘ये हिटलर के साथी’ से हुआ फिल्म फेस्टिवल का आगाज
समारोह के अगले हिस्से में सांगीतिक वीडियोज की प्रस्तुति हुई। सब्स पहले दिल्ली से आमिर ने गीत ‘ ……….. सिडीशन लग जाएगा ‘ की प्रस्तुति की। महाराष्ट्र के प्रसिद्ध लोकगायक शंभाजी भगत ने एफटीआईआई के छात्रों के साथ एकजुटता प्रदर्शित करते हुए ‘ये हिटलर के साथी’ नाम से एक गीत गाया था। इस गीत के साथ ही दिल्ली के ‘मजमा’ ग्रुप के साथियों का म्यूजिक वीडियो ‘चल चलिये’ दिखाया गया जिसमें असहिष्णुता के इस दौर में कबीर और प्रेम के प्रतीक अन्य कवियों को याद किया गया था। साथी रोहित वेमुला की याद में पटना ‘हिरावल’ द्वारा लिखा और फिल्माया गया गीत समारोह की अगली प्रस्तुति थी, जिसमें रोहित को याद करते हुए अन्याय से संघर्ष करने को बेहतरीन तरीके से संगीतबद्ध किया गया था।
चैतन्य तम्हाणे निर्देशित समारोह की अगली फिल्म ‘कोर्ट’ महाराष्ट्र के एक दलित लोकगायक को अपना हीरो बनाती है। कोर्ट में उनपर यह मुकदमा है कि एक सफाई मजदूर, जिनकी मौत गटर में उतारने के नाते हो गई थी, उन्हें लोकगायक ने ख़ुदकुशी के लिए भड़काया था। यह फिल्म अंग्रेजों के जमाने के क़ानूनों, गरीबों का न्याय व्यवस्था में उपहास और कभी भ्यी न्याय न मिल पाने को अपना विषय बनाती है। फिल्म बहुत बारीकी से हमारी न्याय व्यवस्था की खामियों को उभारती है जिसमें गरीबों के लिए लगभग कोई जगह नहीं।
अगली फिल्म ‘आई एम नागेश्वर राव स्टार’ हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय के छात्रों द्वारा बनाई गई है। फिल्म में उच्च शिक्षा केन्द्रों में दलित छात्रों के साथ होने वाले भेदभाव को बखूबी दिखाया गया है। यही विश्वविद्यालय था, जिसमें दलित छात्र रोहित वेमुला की सांस्थानिक हत्या की गई थी। इस लिहाज से भी यह फिल्म बेहद महत्त्वपूर्ण है। फिल्म के निर्देशकों में से एक नागेश्वर कहते हैं कि ‘मैं असहमति में उठा हाथ हूँ… मैं वही नागेश्वर हूँ जो अभी भी मानवीय है।’
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अगकी फिल्म राहुल रॉय निर्देशित ‘फैक्ट्री’ थी, को मारुति सुजुकी कंपनी के मजदूरों के संघर्ष पर आधारित है। 2011 से इस कंपनी के मजदूर अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे हैं, जिसमें कंपनी प्रबंधन और सरकार, दोनों उनके खिलाफ खड़े हैं। अभी भी इस संघर्ष के 68 मजदूर साथी जेल में हैं। पूरे देश में श्रम क़ानूनों में सुधार के नाम पर कानून लादे जा रहे हैं, उनके मूलभूत अधिकार छीने जा रहे हैं। लगातार इस प्रक्रिया में तेजी आई है। जो सरकार और निजी कंपनियों के इस गठबंधन के खिलाफ आवाज उठाता है, उसे लाठी-गोली-जेल नसीब होती है। ऐसे में मजदूरों के संघर्ष के साथ खड़ी ऐसी फिल्मों की प्रासंगिकता बढ़ जाती है।
गोरखपुर के प्रख्यात चिंतक-विचारक दिवंगत प्रो. रामकृष्ण मणि त्रिपाठी की स्मृति में आयोजित व्याख्यानमाला का दूसरा व्याख्यान प्रोफेसर लाल्टू ने दिया। प्रोफेसर लाल्टू हिन्दी के प्रतिष्ठित कवि होने के साथ विज्ञान, तकनीक और सामाजिक सम्बन्धों पर अपने क्रांतिकारी विचारों के लिए जाने जाते हैं। व्याख्यान देते हुए प्रोफेसर लाल्टू ने कहा कि प्रोफेसर रामकृष्ण मणि के बराबरी पर आधारित समाज के सपने को हम नहीं भूले हैं, वे हमारे लिए प्रेरणा श्रोत रहेंगे। उन्होंने कहा कि फिल्म तर्कशील सोच को दुरुस्त करने का माध्यम है, इसीलिए यहाँ आना मुझे भी ताकत देता है। उन्होंने कहा कि चूंकि हम इंसान से, सारी कुदरत से प्यार करते हैं, इसीलिए हम प्रतिरोध करते हैं, संघर्ष करते हैं। हम नफरत के खिलाफ आवाज बुलंद करते हैं, प्यार के लिए।
‘राष्ट्रवाद’ पर व्याख्यान
‘राष्ट्रवाद’ पर अपना व्याख्यान देते हुए प्रोफेसर लाल्टू ने कहा कि हालांकि इस देश के तकरीबन एक चौथाई लोग निरक्षर हैं, आधे से अधिक लोग भयानक गरीबी में जिंदगी बसर करते हैं, तालीम और सेहत की व्यवस्थाएं बदहाल हैं फिर भी मुल्क के खजाने का एक चौथाई से अधिक फौज और बाकी दमन तंत्र बकनाए रखने में लगाया जाता है, यह सब राष्ट्र के नाम पर होता है। उन्होंने कहा कि आधुनिक समय में राष्ट्र का एक व्यापक अर्थ बना जहां राष्ट्र की सार्वभौमिकता पर कोई समझौता नहीं होगा पर राष्ट्र की भौगोलिक सीमाओं में रहने वाले हर किसी को पूरी आजादी मिलेगी, हर कोई अपनी जिंदगी राष्ट्र के दायरे में आजादी से जी सकेगा। हुकूमतों ने संकट के समयों में राष्ट्र की एकांगी व्याख्या की और राष्ट्र में मुख्यधारा से अलग रहने वालों को दुश्मन करार दे दिया। अपने भीतर से ही दुश्मन ढूँढने की इस प्रवृत्ति से एक नया आक्रामक राष्ट्रवाद उभरा।
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उन्होंने कहा कि जिसे हम आज भारत कहते हैं औपचारिक रूप से उसका बनना 1858 से शुरू हुआ। तब जब सम्पन्न वर्गों को यह एहसास हुआ कि वे अपनी सत्ता खो रहे हैं। पर यह साम्राज्यवाद के विरोध में सबको साथ में लेकर चलाने वाला राष्ट्रवाद था। दूसरी तरह का एकांगी राष्ट्रवाद हमारे यहाँ हिन्दुत्व की शक्ल में आया।
उन्होंने कहा कि आजादी के बाद जिस मुक्तिकामी राष्ट्रवाद की कल्पना की गई थी उसे सबसे बड़ा खतरा जातिवाद से आया और दूसरा खतरा देसी सरमायेदारों की तरफ से। अब हालात यह हैं कि पिछली सदी के आखिरी दशक से आलमी सरमायेदारों के साथ सम्झौता कर भारतीय पूंजीपति हाकिमों की मदद से देश के संसाधनों की खुली लूट कर रहे हैं। इसके खिलाफ आज दलित- वाम- अल्पसंखयक- स्त्री की सामूहिक एकजुटता दिख रही है। इसी को तोड़ने की की कोशिश संघ परिवार जेएनयू जैसे कैम्पसों में कर रहा है। संघ परिवार के आक्रामक राष्ट्रवाद की विडम्बना है कि एक तरफ तो उसकी ब्राह्मणवादी संस्कृत भाषा आधारित नीति है, दूसरी तरफ शिक्षा का निजीकरण उसका एजेंडा है।

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उन्होंने कहा कि आज दो विकल्प साफ हैं- या तो हुकूमत के साथ का संस्कृत-अंग्रेजीपरस्त छोटा तबका अपना दमन बढ़ाएगा या विभिन्न राष्ट्रीयताएं अपने सामाजिक अनुबंधों को मजबूत करती हुई एक नए बहुभाषी, बहुसांस्कृतिक राष्ट्र का सपना पेश करेंगी। ऐसा राष्ट्र जहां भौगोलिक संप्रभुता नहीं, बल्कि हर इंसान की सर्वांगीण समृद्धि देशभक्ति कहलाएगी।