साहित्य - संस्कृति

मुक्तिबोध की कविताओं में नये भारत की खोज है-रामजी राय

त्रिलोचन की कविताओं से नया लोकभाषा कोश बन सकता है-चौथीराम यादव 

                           दुर्गा सिंह 

आजमगढ़ , 9 जनवरी। जनसंस्कृति मंच द्वारा मुक्तिबोध व त्रिलोचन के जन्म शताब्दी वर्ष  के मौके पर 8 जनवरी को आज़मगढ़ में कार्यक्रम आयोजित किया गया। शहर स्थित शिब्ली एकेडमी के हाल में  ‘ स्मरणः कवि त्रिलोचन एवं मुक्तिबोध ‘ नाम से आयोजित यह कार्यक्रम दो सत्रों में सम्पन्न हुआ।

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पहले सत्र में दोनों कवियों के जीवन और कविता पर बात हुई। इसमें बोलते हुए समकालीन जनमत के प्रधान सम्पादक रामजी राय ने कहा कि मुक्तिबोध को जटिल कवि माना जाता है, लेकिन यह जटिलता उनकी कविता की भाषा में नहीं है, बल्कि यह जटिलता विचारों और अनुभवों की जटिलता है क्योंकि मुक्तिबोध के विचार और अनुभव परिवर्तन की छटपटाहट लिए हैं। इसलिए मुक्तिबोध की कविताएं धीरज की मांग करती हैं। मुक्तिबोध की कविताओं में नये भारत की खोज है। यह खोज नेहरू के डिस्कवरी ऑफ इण्डिया की तरह नहीं है बल्कि अम्बेडकर ने जिसे एक बनता हुआ राष्ट्र कहा, उस भारत की खोज है। उनकी कविताओं में समय का सर्वेक्षण है। सर्वेक्षण इसलिए कि नया भारत बनाना है।

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उन्होंने आगे कहा कि मुक्तिबोध नक्सलबाड़ी के आवागार्द कवि हैं। वे परिवर्तन की छटपटाहट व उसकी अनिवार्यता के कवि हैं। इसी में वे नये मानव गुणों की पहचान करते हैं।वे सत्ता के बुनियादी चरित्र को समझते हैं। सत्ता के इस चरित्र में भगवा और खद्दर दोनों शुमार है। इस चरित्र को ले कर उनमें कोई संशय नहीं मिलता।उनके यहां संशय से पार जा कर कविताएं मिलती हैं। इसीलिए उनकी कविताएं परिवर्तनकामी लोगों के लिए मित्र कविताएं हैं।

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रामजी राय ने मुक्तिबोध और रामविलास के बीच के मत संघर्ष को मार्क्सवाद को समृद्ध करने वाला संघर्ष कहा।उन्होंने कहा कि मुक्तिबोध मार्क्सवाद को अद्यतन करते हैं। रामविलाश शर्मा के सन्दर्भ से उन्होंने कहा कि मुक्तिबोध का व्यक्तित्व संगठित है, विभाजित नहीं।

रामजी राय ने कहा कि मुक्तिबोध ने कविता का सौन्दर्यबोध बदल दिया।जो चांद कविता में सौन्दर्यबोध का प्रतीक है, वह मुक्तिबोध के यहां टेढ़ा मुंह लिए है। यही नहीं मुक्तिबोध ने सत चित आनन्द की जगह सत चित वेदना से दर्शन कराया। अपने वक्तव्य की शुरुआत में उन्होंने त्रिलोचन के संस्मरण रखते हुए कहा कि त्रिलोचन बाखबर रहने वाले कवि हैं।

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प्रगतिशील आलोचक व चिन्तक चौथीराम यादव ने अपने वक्तव्य में कहा कि मुक्तिबोध का सपना वह है जो उन्हें सोने नहीं देता। वह सपना है बदलाव का।बिना सपने के बदलाव नहीं हो सकता।यह सपना कबीर में है, जो उन्हें सोने नहीं देता। यह सपना अम्बेडकर में है, जो उन्हें सोने नहीं देता। उन्होंने कहा कि बड़ा स्वप्न रखने वाले बड़े कवि हैं। वे अपने चिन्तन में बुद्ध और कबीर की परम्परा से जुड़ते हैं। चौथीराम यादव ने कहा कि मुक्तिबोध ने आधुनिक हिन्दी कविता का सौन्दर्यशास्त्र गढ़ा। उन्होंने त्रिलोचन के बारे में कहा कि बनारस में कहा जाता है कि त्रिलोचन तीन जगह मिलते हैं। गांव में, दन्तकथाओं में और विश्वविद्यालय की एकेडमिक बहसों में। त्रिलोचन की कविताओं में ठेठ देशीपन है। उनकी कविताओं से नया लोकभाषा कोश बन सकता है। उन्होंने कहा कि जनता जिस भाषा में बोलती-बतियाती है, त्रिलोचन उस भाषा के कवि हैं। त्रिलोचन की कविता के शब्द जनता के यहां मिलेंगे, लोक में मिलेंगे। भाषा का यह रूप उनके अलावा सिर्फ तुलसीराम की ‘ मुर्दहिया ‘ में मिलता है। त्रिलोचन की कविताएं कलात्मकता और बनावटीपन से दूर हैं।

इसके पहले कहानीकार व स्तम्भकार सुभाषचन्द्र कुशवाहा ने त्रिलोचन के साथ अपने संस्मरणों को साझा करते हुए कहा कि भाषा पर त्रिलोचन की गहरी पकड़ थी। उर्दू-हिन्दी शब्दकोश बनाने में त्रिलोचन का बड़ा योगदान है।  कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए डा. उदयभान यादव ने कहा कि त्रिलोचन की कविता समाज की विषमता को सरल शब्दों में व्यक्त करती है। युवा आलोचक कल्पनाथ यादव ने कहा कि मुक्तिबोध और त्रिलोचन जीवन और समाज की विविधा के कवि हैं।शिब्ली एकेडमी के सीनियर फेलो उमैर सिद्दिक ने भी अपनी बात रखी। इस सत्र की अध्यक्षता डा. बद्रीनाथ तथा संचालन जसम के संयोजक डा. रमेश मौर्य ने किया।

दूसरे सत्र में काव्यपाठ का आयोजन किया गया। काव्यपाठ की अध्यक्षता वरिष्ठ कवि अजय कुमार ने किया। काव्यपाठ का संचालन जसम के राष्ट्रीय पार्षद कल्पनाथ यादव ने किया।  कविता सुनाने की शुरुआत बनारस से आये गीतकार प्रकाश उदय ने की। इस सत्र को शबाब पर जौनपुर से आये शायर अहमद निसार अहमद ने पहुंचाया। इनके अलावा ओमप्रकाश मिश्र, जयप्रकाश धूमकेतु, राजाराम सिंह, सुरेन्द्र सिंह चांस, प्रग्या सिंह, सोनी पाण्डेय, राणा, मोतीराम यादव ने भी अपनी कविताएं पढ़ीं। आभार आज़मगढ़ फिल्मोत्सव के संयोजक डा. विनय सिंह यादव ने व्यक्त किया।

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