विचार

मैं फिर से हार की जीत कहानी नही पढ़ना चाहता ….

                           पंकज मिश्र pankaj mishra

( पहलवान नरसिंह यादव अब रियो ओलिंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व करेंगे। डोपिंग मामले में नेशनल एंटी डोपिंग एजेंसी (नाडा) ने अपना फैसला उनके पक्ष में दिया है। जब वह डोप टेस्ट में फेल हुए थे और इसके लिए उन्होने साजिश की आशंका जताई थी तब यह लेख सोशल मीडिया पर यक्ष -युधिष्ठिर संवाद के लिए चर्चित पंकज मिश्र ने लेख लिखा था जिसे बहुत पसंद किया गया था) 

वो लन्दन ओलम्पिक का सेमीफाइनल था | जब तीसरे और अंतिम राउंड के अंतिम क्षणों में सुशील तुम 3-0 से पीछे थे , हाँ यही स्कोर था शायद कोई तीसेक सेकेण्ड का समय बचा था | सबने उम्मीद छोड़ दी थी , यहां तक कि मैंने भी लेकिन ऐन वक़्त पे तुमने उस कजाक पहलवान को जो उठा कर पटका और फिर 6-3 से राउंड और मैच जीता वह एक असम्भव सा काम था | आज भी मैं उस वीडियो को देखता और सबको दिखाता रहता हूँ  कि, देखो ये है सुशील कुमार | असम्भव को सम्भव करने का माद्दा रखने वाला | यह शायद मेरा अँधा देशप्रेम ही रहा होगा , जो मैंने देख कर भी इस सच की अनदेखी की कि अपनी जीत मुकम्मल करने के दौरान तुमने उसी गुत्थमगुथगी के दौरान बड़ी सफाई से उस कजाक का कान काट खाया था | वह जरा विचलित हुआ और पलक झपकते तुम्हारा दांव लग गया | वह रोया , उसने प्रोटेस्ट किया लेकिन चूँकि यह काम तुमने बड़ी सफाई से किया था सो कैमरा पकड़ न पाया | कुछ काम सचमुच इतनी ही सफाई से ही किये जाने चाहिए | माइक टाइसन ने भी यही किया था होलीफील्ड के साथ लेकिन उसके कान काटने में उतनी सफाई न थी | वह पकड़ा गया | अगले दिन Times Of India ने हेडलाइन लगाई ” if you cant beat them eat them ” ….

खैर ! जो हुआ सो हुआ , तुम ओलम्पिक सिल्वर मेडलिस्ट बने | लोगो की आँखों के और मेरी भी आँखों में एक सितारे की तरह टँक गए | लेकिन आज एक और आदमी को मैंने रोते हुए देखा तो बेसाख्ता मुझे उस कजाक पहलवान की याद आ गयी , जिसका तुमने कान काट खाया था | लेकिन यह कोई विदेशी न था कि देशप्रेम में मेरी ऑंखें बन्द हो जाती | ये आदमी है जगमाल सिंह , नरसिंह यादव का कोच | यह उतना ही देशी है जितने तुम जितना नरसिंह जितना हम सब | तो आँखें सब देख भी रहीं है कान सब सुन रहे है और सहज बुद्धि भी सक्रिय है |

सहज बुद्धि तो सक्रिय उस आरोप से भी नही हुई थी जो नरसिंह ने लगाया था , उस वक़्त तो सच बताऊँ तो गुस्सा आया कि अबे , नरसिंह क्या चूतियापा कर दिया तुमने | कौन बेवकूफ होगा जो आज के डिज़ाइनर ड्रग्स के ज़माने में 70 और 80 के दशक के आउटडेटेड स्टेरॉयड्स का सेवन करेगा | विज्ञान के ऐसे आधुनिक समय में जब कोई भी चाहे जितना बड़ा तुर्रम खां हो डोप टेस्ट को डॉज नही दे सकता तो यह बेवकूफी तुमसे कैसे हो गयी | तुम्हे तो एक्स्ट्रा काशस होना चाहिए | यह तो तुम भी जानते हो के तुम सुशील कुमार जितने बड़े पहलवान नही हो , कोई जरूरी नही कि , तुम अगले ओलम्पिक में क्वालीफाई भी कर पाओ | जब यह तुम्हारे जीवन मरण का ओलम्पिक है , तो तुमसे ऐसा कैसे हो गया | यह दिल कतई नही मानता कि , तुमने जान बूझ कर ऐसा किया होगा | इतने बेवकूफ तो नही ही होंगे , बनारसी फक्कड़ तो होते है लेकिन बेवकूफ नही | तो कहीं यह तुम्हारी लापरवाही का नतीजा तो नही | कुछ इस तरह से समझाईश चल रही थी जेहन में कि , सुशील कुमार तुम्हारा ट्वीट आ गया …..
” इज्जत कमाई जाती है , माँगी नही जाती ” |
ये कौन सा गीता का ज्ञान दे रहे थे सुशील , जिसे कोई नही जानता और किसे दे रहे थे | सब जानते हैं।  तंज़ और व्यंग्य की भाषा मैं खूब समझता हूँ | बोल भी सकता हूँ और पहचान भी सकता हूँ | यह नमक किसके जले पे छिड़क रहे थे | फिर तुम्हारे ससुर कम कोच पद्मश्री महाबली सतपाल का स्टेटमेंट जिसमे रवायती अफ़सोस तक कम था और तुम्हारी ओलम्पिक की तैयारियों और उसमे भाग लेने की छिपी वकालत का जोश ज्यादा | यह सब अन्यथा क्यों लगे भला | नही लगना चाहिए था| लेकिन भाई टाइमिंग … टाइमिंग मैटर्स ….. मैंने घड़ी देखी ज्यादा ववत न हुआ था | क्या परफेक्ट टाइमिंग …. दांव लगाने की | एक अच्छा पहलवान वही है जो मौका ताड़ना जानता हो | कब कौन सा दांव लगाना है , कब किस तेवर से किसी का हौसला पस्त करना है , कब रॉन्ग फुट पे पकड़ना है यह सब अच्छे पहलवान की विशेषताएं है | और तुम अच्छे पहलवान हो यह एक साबितशुदा तथ्य है | लेकिन कुछ सच आँख में किरकिरी की तरह गड़ते हैं | आज मेरी आँख में भी कुछ गड रहा है |

अब जाकर तुम अचानक नज़र से उतरने लगे। किरकिरी जो गड रही थी उसका असर कम हो रहा था | अब थोडा साफ़ दिखना शुरू हुआ और सहज बुद्धि तब जा के सक्रिय हुई | महानता का कवच जितना कठोर होता है उतना ही कमज़ोर भी | यह एक झटके से टूटता है | वह झटका लग चुका था | जानते हो न , जुबान झूठ बोल सकती है लेकिन देह नही | अब मैं देहभाषा पढ़ रहा था | दो पंक्तियों के बीच , जो लिखा नही जाता कभी -कभी वो ज्यादा अर्थगर्भित होता है | अब मैं वो पढ़ रहा था |

सोनीपत , यही जगह है न , जहां कैम्प लगा था | जहां कुश्ती से जुडी एक एक चीज़ और लगभग हर एक आदमी से तुम्हारा बरसों बरस का नाता है | इसीलिये टाइम्स नाउ के ऐंकर ने इसे Tigers Den की संज्ञा दी | कुछ सोचा तो होगा ही बोलने से पहले | हमने लोगों  की तमाम ऐसी ओछी हरकतें देखी है जो उन्होंने नाम और यश और धन कमाने के बाद किया | शायद किया ही इसीलिये , क्योंकि यह सब चीज़ें पाँव डगमग करने के लिए काफी होती है | हैंसी क्रोनिए , शेन वार्न , हर्शेल गिब्स , अज़हर आमिर आसिफ ये सब नाम छोटे नही है | जब ये सब सोचता हूँ तो दिमाग तनाव से भर जा रहा है | एक अजीब सी खलिश जेहन में | कोई कितनी सफाई से कान काट सकता है , कोई इतनी सफाई से कान काट सकता है …… मगर दिल है कि मानता नही …… मैं आज इसे मनाना भी नही चाहता क्योंकि अगर यह फिर वही बोलेगा जो मैं सुनना नही चाहता तो यह एक नरसिंह नही एक सुशील नही , एक सतपाल नही , एक फेडरेशन नही , एक स्पोर्ट्स अथॉरिटी नही एक कुश्ती नही , या फिर खेल की समूची दुनिया नही .. यह इंसानियत पर भारी पड़ने वाली बात होगी | अब मैं फिर से हार की जीत कहानी नही पढ़ना चाहता ….