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अखिलेश जी ! अब भी ना समझे तो गुमनाम होने से कोई नहीं बचा सकता है

सपा के पूर्व जिला सचिव मोहम्मद आसिम खान ने अखिलेश यादव को पत्र लिख बसपा, कांग्रेस के साथ महागठबंधन बनाने का सुझाव दिया

चुनाव में हार का कारण पारिवारिक झगड़ा और परम्परागत वोटरों की अनदेखी बताया
गोरखपुर, 4 मई। समाजवादी पार्टी के पूर्व जिला सचिव मोहम्मद आसिम खान ने सपा के राष्टीय अध्यक्ष अखिलेश यादव को खुला पत्र लिखकर विधानसभा चुनाव में पार्टी की हार के लिए पारिवारिक झगड़े और परम्परागत वोटरों को छोड़कर ’ विकास की राजनीति में फंसने ’ को बताया है। उन्होंने राष्टीय नेतृत्व को बसपा, कांग्रेस के साथ महा गठबंधन करने की सलाह देते हुए कहा है कि यदि ऐसा नहीं हुआ तो भविष्य की राजनीति से हम गायब हो जाएंगें।
उन्होंने फेसबुक पर लिखे अपने पत्र में कहा है कि भाजपा ने जिस तरह सुश्री मायावती को भ्रमित कर मुख्यमंत्री पद की लालसा में दलितों, पिछड़ों, और अल्पसंख्यकों की एकता को खण्डित किया उसी प्रकार का प्रयोग अखिलेश यादव पर भी किया। भाजपा की दाल कभी भी नेताजी के सामने नहीं गली लेकिन भाजपा अखिलेश यादव को खिलौने की तरह खेलाती रही और वह इतने भ्रमित हुए कि उन्होंने पार्टी के परम्परागत वोटरों को लावारिस छोड़ दिया।
उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री को चाटुकारों की बात में न आने की भी सलाह दी है।
श्री खान ने चुनाव के पहले भी एक पत्र लिखा था और अखिलेश यादव को विकास की राजनीति के फरेब में न पड़ पार्टी के परम्परागत वोटरों को सहेजने का सुझाव दिया था।
उनका पूरा पत्र यह है  –

प्रतिष्ठा में ,

राष्ट्रीय अध्यक्ष जी

समाजवादी पार्टी

लखनऊ

विषय :-माननीय अखिलेश जी अगर अब भी ना समझे तो , गुमनाम होने से कोई नहीं बचा सकता है !

महोदय ,

31 अक्टूबर 1990 को नेताजी के बाबरी मस्जिद गोली काण्ड के बाद जब नेताजी विधान सभा चुनाव लड़े थे तब नेताजी के मात्र 34 विधायक जीते थे और जनता दल 92 के विधायक जीते थे इसका मतलब ये हुआ कि अल्पसंख्यकों ने नेताजी के गोली चलाने पर उन्हे समर्थन नहीं दिया , बल्कि जनता दल को दिया । अतः यह बात सिद्ध करती है कि मुसलमानों ने नेताजी को गोली चलाने के कारण उन्हें नेता नहीं माना था ।उस चुनाव में कल्याण सिंह जी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने । 6 दिसम्बर 1992 को बाबरी मस्जिद शहीद होने के बाद जब नेताजी और कांशीराम जी ने गठबंधन किया तब उत्तर प्रदेश में सपा बसपा को दलितों ने पिछड़ो ने और अल्पसंख्यकों ने एक जुट होकर जीता कर सरकार बनवाया था । अतः ये बात भी सिद्ध होती है कि नेताजी को अल्पसंख्यकों ने तब अपना नेता स्वीकार किया जब दलित , पिछड़े एक साथ मिले थे , तब उन्हे नेता माना था । उस समय मायावती जी एकदम युवा नेत्री थीं जिनपर संघ परिवार और भाजपा ने बहुत आसानी से युवा होने के कारण उन्हें भ्रमित कर मुख्यमंत्री पद की लालसा में दलितो पिछड़ोऔरअल्पसंख्यकों की एकता को खण्डित कर दिया इसी प्रयोग को संघ और भाजपा ने दुबारा युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव जी आप पर भी किया , जिस भाजपा की दाल कभी भी नेताजी के सामने नहीं गली वो भाजपा आपको खिलौने की तरह खेलाती रही और आप इतने भ्रमित हुए कि आपने पार्टी के परम्परागत वोटरों को लावारिस छोड़ दिया ? और आपने एक नया प्रयोग ” विकास ” नाम पर शुरू कर दिया और आपको दिगभ्रमित करने के लिये संघ ने और भाजपा ने आपको दलालों से घिरवा दिया , जो जय जय जय अखिलेश और जवानी क़ुर्बान का नारा लगवा कर ऐसी हालत में आपको ला दिये जिससे आपका मुख्यमंत्री पद और पार्टी को बचना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन हो गया । देखिये 226 से मात्र 47 पर पहुंच गए कि नहीं ?
मान्यवर ,
समाजवादी पार्टी जब बनी थी तब जनेश्वर मिश्रा ,ब्रिजभूषण तिवारी , समाजवादी चिन्तक मोहन सिंह ,मोहम्मद आज़म खान , बेनीप्रसाद वर्मा ,रामजीलाल सुमन जैसे लोग आदरणीय मुलायम सिंह यादव जी के कन्धे से कन्धा मिलाकर खड़े थे तब प्रदेश की जनता ने इन नेताओं पर भरोसा करके और नेताजी की विश्वसनीयता के कारण नेताजी को प्रदेश का पुनः मुख्यमंत्री बनाया समाजवादी पार्टी को सत्ता सौपी थी ।
मान्यवर,
1 जनवरी 2017 को जब अखिलेश जी आप राष्ट्रीय अध्यक्ष चुनें गये तब क्या आपके साथ ऐसे उपरोक्त नेता थे ? जैसे नेता नेताजी के साथ कन्धे से कन्धा मिला कर चलनेवाले थे ? क्या ऐसे आचरण का एक भी नेता आपके
साथ दिख रहा था जिन पर प्रदेश की जनता में कोई स्वीकारिता रही हो ? ऐसा कौन नेता था अखिलेश जी आप के साथ जिस पर उत्तर प्रदेश की जनता भरोसा करके पुनः आपको को मुख्यमंत्री बना देती ? मेरा ऐसा मानना है कि मायावती जी का पुर्व में भाजपा से गठबन्धन करने से उतना नुकसान नहीं हुआ जितना धर्मनिरपेक्ष राजनीति करने वाले लोगों को समाजवादी पार्टी के पारीवारिक झगड़े के कारण हुआ और “विकास”रूपी दानव के कारण हुआ है । वर्तमान समय में अब तो एक ही रास्ता बचा है पार्टी को बचाने का और वो रास्ता है महा गठबंधन का अब अकेले सत्ता की मलाई का स्वाद ना तो आप भोग पाएंगे , ना ही मायावती जी और कांग्रेस का तो सवाल ही नहीं उठता है । इस लिए अब आप सभी लोग अपनी पूरी उर्जा गठबन्धन बनाने पर लगाएं अन्यथा भविष्य की राजनीति में और इतिहास में ढूंढे नहीं मिलने वाले हैं आप लोग । हाँ दलाल और चाटूकार आपको जनेश्वर मिश्रा ट्रस्ट में बैठ कर जरूर 2019 में और 2022 में आपको हवा मे शपथ अवश्य दिलवा देंगे । इसमे कोई दो राय नहीं है ।मैने विधानसभा चुनाव के पहले भी पत्र लिखा था और जो भविष्य वांणी मैने की थी उसकी एक एक बात सच साबित हुई । अब पुनः बिना किसी चाटूकारिता के लिख रहा हूँ पाँच साल आप मुख्यमनत्री थे कभी आपसे कुछ मागने नहीं आया और आगे भी कुछ मागने नहीं आउगाँ ।देखना बाकी है जो फार्च्यूनर से चलने लगे हैं वो कै साल तक आपके साथ रहते हैं ?

भवदीय

मोहम्मद आसिम खान

पूर्व जिला सचिव

समाजवादी पार्टी

गोरखपर

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