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‘ हमारी जिंदगी कैसे चल रही हैं, हम ही जान सकते हैं, सुबह खाते हैं तो शाम के लिए सोचना पड़ता है ’  

-घर –घर शाल और सूट का कपड़ा बेचने वाले दो सौ कश्मीरियों के लिए मुसीबत बनी नोटबंदी

सैयद फरहान अहमद , गोरखपुर

सरकार की नोटबंदी के फैसले से मुसाफिरों और परदेशियों की दिक्कतों का तो अमत ही नहीं। शहर में शाल और कपड़े घूम –घूम कर बेचने वाले 200 कश्मीरियों  को न कोई दुकानदार मिल रहा है और न खरीददार। इनका बैंक में खाता है न एटीएम । न हीं लाइन में लगने का हौसला। वजह अगर लाइन में लगे तो व्यापार चौपट हो जायेगा। एक दो शाल और सूट का कपड़ा बिक जाए तो एक-दो दिन किसी तरह कट जाते हैं।  जम्मू कश्मीर के पहलगाम से व्यापार करने आये मुजफ्फर से तुर्कमानपुर में मुलाकात हुई तो उनका दर्द छलक गया। उन्होंने बताया कि हम आठ दस लोग 31 अक्टूबर को गोरखपुर आये हैं लेकिन बिक्री न के बराबर हैं। नोटबंदी ने तो हमारी कमर तोड़ दी। उन्होंने बताया कि तीन महीने के लिए कश्मीरी 400 की संख्या में गोरखपुर में आते है। इस समय शहर में दो सौ कश्मीरी हैं। कई मोहल्लों में किराये पर रह कर गली मोहल्लों में शाल और सूट के कपड़े बेच रहे हैं लेकिन उन्हें खरीददार नहीं मिल रहे। सभी की हालात खराब हैं।

मुजफ्फर जमाने से गोरखपुर आ रहे हैं। इस बार जो परेशानी आयी ऐसी कभी नहीं आयी। एक माह तो पूरा खराब हो गया। अब एक माह और देख कर कश्मीर वापस जाने की इच्छा जता रहे हैं। रहने के लिए किराये पर मकान लिया है जिसका किराया कश्मीर वापस लौटने के समय देना हैं। यही एक राहत हैं। मुजफ्फर ने बताया कि कभी 40-50 हजार का माल बिक जाता था। आज एक दो शाल व शूट बेचने में बड़ी मशक्कत करनी पड़ रही है। न खरीददार के पास पैसा है और न ही दुकानदार के पास। जाहिर उसका असर हम पर ही पड़ रहा हैं। सरकार ने सही किया या गलत किया यह तो वक्त के बताएगा लेकिन दुश्वारी जल्द खत्म होने की उम्मीद न के बराबर हैं।

बारामूला के फैय्याज ने बताया कि दिसम्बर माह में कश्मीर में तेज बर्फ पड़ती है तो घर से निकलना मुश्किल होता है। इसलिए इन महीनों में वह गोरखपुर की तरफ रुख करते है। उनके पास 200-5000 रुपए तक का शाल और 250-2000 रुपए तक के सूट के कपड़े हैं। कश्मीर के हर घर में शाल व सूट के कपड़े का काम होता हैं। पश्मीना की शाल महंगी होती हैं। यहां उसके खरीददार नहीं मिलते, इसलिए नहीं लाते। नोटबंदी ने हमारी दुश्वारी बढ़ा दी हैं। किस तरह से हमारी जिंदगी चल रही हैं, इसे हम ही जान सकते हैं। सुबह खाते हैं तो शाम के लिए सोचना पड़ता हैं।

मोहम्मद सफी ने बताया कि देश के किसी जगह पर जाने में कश्मीरियों को किसी तरह की तकलीफ नहीं होती हैं। हर जगह इज्जत मिलती हैं। उन्होंने बताया कि नोटबंदी से कारोबार चौपट हैं। खाने तक के लाले पड़ गए हैं। सरकार को मुसाफिरो की सहूलियत के लिए कुछ करना चाहिए। यहीं हाल रहा तो हमें घर वापस लौटना पड़ेगा ।

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