साहित्य - संस्कृति

हिन्दी की वरिष्ठ कथाकार कृष्णा सोबती को ज्ञानपीठ पुरस्कार

 गीतेश

नई दिल्ली, 3 नवम्बर. हिंदी की वरिष्ठ कथाकार कृष्णा सोबती को वर्ष 2017 का ज्ञानपीठ पुरस्कार दिया जाएगा | वरिष्ठ साहित्यालोचक नामवर सिंह की अध्यक्षता वाली समिति ने कृष्णा सोबती के हिंदी साहित्य में महान योगदान के लिए यह पुरस्कार देने का निर्णय लिया |

इससे पहले कृष्णा सोबती को साहित्य अकादमी सम्मान, साहित्य शिरोमणि सम्मान, श्लाका सम्मान, मैथिलीशरण गुप्त सम्मान, साहित्य कला परिषद पुरस्कार, कथा चूड़ामणि पुरस्कार तथा साहित्य अकादमी की महत्तर सदस्यता से सम्मानित किया जा चुका है |

उनकी महत्वपूर्ण रचनाएँ हैं- मित्रो मरजानी, डार से बिछुड़ी, जिंदगीनामा, ऐ! लड़की, हम हशमत, बादलों के घेरे, यारों के यार, सूरजमुखी अँधेरे के, समय सरगम, जैनी मेहरबान सिंह आदि |

92 वर्ष की अवस्था में भी कृष्णा सोबती साहित्य की दुनिया में सक्रिय हैं तथा अनेक महत्वपूर्ण अवसरों पर उनकी उपस्थिति तथा हस्तक्षेप को देखा जा सकता है | हाल ही में उनका आत्मकथात्मक उपन्यास ‘गुजरात पाकिस्तान से गुजरात हिंदुस्तान ’ राजकमल से प्रकाशित हुआ है | यह उपन्यास विभाजन के अँधेरे और आज़ादी के रौशन सपनों की संघर्ष गाथा है |

‘ मित्रो ‘ जैसी बोल्ड चरित्र के माध्यम से कृष्णा सोबती ने हिंदी दुनिया को एक ऐसे चरित्र से रूबरू कराया जो समाज की रूढ़ियों से हार नहीं जाती, बल्कि समाज की आँख में आँख डालकर जलते हुए सवाल करने का साहस रखती है |

जहाँ ‘जिंदगीनामा’ पंजाब के एक गाँव के जिंदादिल लोगों की यथार्थपरक कहानी है वहीँ ‘हम हशमत’ को एक ईमानदार और सृजनात्मक संस्मरण के रूप में याद किया जाएगा | हिंदी, उर्दू के मिले जुले रूप को लिए उनके उपन्यास सच्चे भारत की तस्वीर पेश करते हैं | ‘हजारों हजार मसीहों के धूम धड़क्के के बीच’ कृष्णा सोबती को देश के सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान से नवाज़ा जाना सुखद है |