विचार

नदियों का व्यवहार जाने बिना बाढ़ को नहीं समझ सकते

      डा. विमल सिंह

बाढ़ एक ऐेसा शब्द है जिसे शायद ही कोई न समझता हो। इस शब्द से पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोगों का बहुत पुराना नाता है. दो नदियां जो इस क्षेत्र के लोगों को सबसे अधिक प्रभावित करती है, वह है घाघरा और राप्ती. इन दोनों नदियों का स्रोत हिमालय में है और यही कारण है कि जब कभी इन नदियों में बाढ़ आती है तो उसका दोषी नेपाल को ठहराया जाता है। यह तथ्य कितना सही है,  इसके लिए यह जानना जरूरी है कि बाढ़ क्या है और यह क्यों आती है ?

राप्ती नदी की बाढ़ में डूबा गोरखपुर का कछार
राप्ती नदी की बाढ़ में डूबा गोरखपुर का कछार

किसी से भी यदि यह पूछा जाए कि बाढ़ क्या है तो वह तुरन्त बता देगा कि पानी की अधिकता होने के कारण पानी का नदी से बाहर निकल आना। यह आशिंक रूप से ही सही है. यदि हम वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तब हमें यह पता चलेगा कि नदी का क्षेत्र केवल उतना ही नहीं होता जहां वह बहती है, उसके साथ सटा हुआ क्षेत्र भी उसी का हिस्सा है जो कि नदी के डिस्चार्ज (नदी के किसी भी स्थान पर प्रति सेकेंड बहने वाले पानी की मात्रा) बढ़ने पर उससे जुड़ जाता है. यह हिस्सा कितना होगा यह इस पर निर्भर करता है कि बाढ कितनी बड़ी है.

आमी नदी की बाढ़ से गोरखपुर -वाराणसी राज मार्ग को बंद करना पड़ा था
आमी नदी की बाढ़ से गोरखपुर -वाराणसी राज मार्ग को बंद करना पड़ा था

नदी के आस-पास का हिस्सा जो बाढ़ आने पर उससे जुड़ जाता है, उसे इसे फ्लड प्लेन कहते हैं. चूंकि यह हिस्सा बहुत कम समय के लिए पानी से ढका होता है (अथवा यूं कहें कि नदी से जुड़ा होता है ) , इसलिए प्राय: इन क्षेत्रों में आबादी पाई जाती है. बढ़ती जनसंख्या के दबाव में कई जगह इन क्षेत्रों में घनी आबादी देखी जा सकती है. इसके अलावा यह क्षेत्र काफी उपजाऊ भी होता है जिसके कारण यहां पर आम तौर पर खेती होती है. हकीकत यह है कि यह नदी का क्षेत्र है या यू कहें कि नदी का घर है और बरसात में इन क्षेत्रों में पानी भर जाए और वहां बसे लोगों को नुकसान पहुंचाए तो उसे बाढ़ नहीं कृत्रिम बाढ़ कहना चाहिए. ऐसा अक्सर नदी की किनारे बसे शहरों में देखने को मिलता है. कुछ क्षेत्रों में फ्लड प्लेन बहुत पतले और दूसरे हिस्सों से काफी अलग होते हैं किंतु पूर्वी उत्तर प्रदेश और हिमालय श्रृंखला से लगे मैदानी इलाकों में ये बहुत चौड़े होते हैं और मुश्किल से ही दूसरे क्षेत्रों से अलग किए जा सकते हैं.

राप्ती नदी का पानी गोरखपुर के सहजनवा में रेल लाइन तक पहुँच गया था
राप्ती नदी का पानी गोरखपुर के सहजनवा में रेल लाइन तक पहुँच गया था

एक बहुत महत्वपूर्ण सवाल जिसे अब भी पूरी तरह से नहीं समझा जा सका है, वह है हिमलाय से निकलने वाली नदियों में बाढ़ का कारण. अब तक के शोध से जो पता चला है वह यह है कि नदी की काम करने की शक्ति जिसे हम स्ट्रीम पावर कहते हैं प्राय: दो पैमानों पर निर्भर करती है -ढलान और डिस्चार्ज . बरसात के समय डिस्चार्ज बढने और ढलान का पहले से ही अधिक होने की वजह से नदियां अपने साथ काफी मात्रा में अवसाद लेकर नीचे मैदानी इलाकों में आती हैं किन्तु मैदान में ढलान बहुत कम हो जाता है जिसकी वजह से नदियां अपने साथ लाया अवसाद अपनी तलहटी एवं आस-पास के इलाके में जमा कर देती हैं. यही कारण है कि पूर्वांचल में नदियां अपने तलहटी (रिवर बेस ) को काटती नहीं। यह अवसाद नदी का मार्ग अवरूद्ध कर देता है और मैदानी इलाकों में नदी के किनारे कमजोर होते हैं जिससे नदी आसानी से उसे काट कर अपना मार्ग बदल लेती है. इसी कारण मैदानी इलाकों में फ्लड प्लेन बहुत चौड़े होते हैं और बरसात के समय नदी से जुड़ जाते हैं और बाढ़ आती है। इसके अलावा नदी का जो पुराना मार्ग होता है वह आस-पास के इलाकों के मुकाबले नीचे होते हैं (वैज्ञानिक इन्हें पैलियो-चैनेल कहते हैं) जिसकी वजह से इनमें पानी भर जाता है.

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सिद्दार्थनगर जिले में बांसी, नौगढ़, उसका आदि कस्बों में बाढ़ से दो-दो हफ्ते तक यह स्थिति रही

यह प्रक्रिया घाघरा और राप्ती दोनों में देखी जा सकती है। घाघरा का स्रोत तिब्बत में है तो  राप्ती नदी नेपाल की ऊँची पहाडिय़ों से निकलती है. दोनों नदियों में एक समानता यह है कि दोनों नदियों का डिस्चार्ज बहुत अस्थिर है. जहां राप्ती नदी में बरसात से पहले 18 क्यूसेक पानी बहता है तो वहीं बरसात के समय 450 क्यूसेक पानी रहता है लेकिन अब तक का जो सर्वाधिक डिस्चार्ज नापा गया है, वह है 7380 क्यूसेक जो कि बहुत अधिक है. बाढ़ से बचने के उपायों में तटबंध  बनाने को अब तक सर्वाधिक प्राथमिकता मिलती रही है किन्तु पिछले कुछ समय में बांध बनाने के दुष्परिणाम भी सामने आए हैं. पहला नुकसान यह है कि कई जलीय प्रजातियों के अस्तित्व को खतरा हो जाता है क्योंकि ये स्वतंत्रतापूर्वक नदियों में ऊपर और नीचे नहीं आ या जा पाते , जो कई जलीय प्राणियों के लिए जरूरी है. बांध बनने से नदी के अंदर की कनेक्टिविटी टूट जाती है. यही कारण है कि गंगा नदी में पाई जाने वाली डाल्फिन विलुप्त होने के कगार पर है. इसके अलावा पानी को उपर ही रोक दिए जाने के कारण नदी के निचले हिस्सों में शहरों द्वारा छोड़ा गया प्रदूषित गंदा पानी नदी और उसके आस-पास जमा हो जाता है और यह भू जल को भी दूषित करता है.

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नहर बनाकर नदी के पानी को दूसरे क्षेत्रों में कृषि के लिए इस्तेमाल करना भी एक उपाय है लेकिन नदी में बहुत रेता होने की वजह से यह नहर बहुत जल्द गाद से भर सकते हैं. गौर से देखा जाए तो बाढ़ से बचने के उपाय मुख्यत: इंजीनियरों द्वारा सुझाए गए हैं जिसमें सबसे बड़ी कमी यह है कि इन उपायों का लम्बे समय में क्या प्रभाव पड़ेगा, इसका पता नहीं है.

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एक असरदार बचाव के रास्ते के लिए यह जरूरी है कि हम यह जानें कि पहले, नदियां जलवायु में परिवर्तन के साथ कैसे प्रतिक्रिया देती थीं. यह कोई 100 या 200 साल के लिए नहीं बल्कि कम से कम 20000 साल के लिए देखना होगा क्योंकि पिछले 20000 सालों में पृथ्वी के जलवायु में काफी परिवर्तन हुए हैं. इसके लिए भू वैज्ञानिकों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है हालांकि राप्ती और घाघरा नदी पर पिछले कुछ दशकों में कुछ शोध कार्य हुए हैं लेकिन बाढ़ जैसे आपदा से निपटने के लिए यह जरूरी है कि एक बहुत ही विस्तृत अध्ययन हो जिसमें बहुत से पहलुओं को जांचा जाए.

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बहुत कम लोगों को यह पता होगा कि एक ही नदी एक ही परिस्थति में अपने अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग तरीके से बर्ताव कर सकती है और उसके कुछ हिस्से दूसरे हिस्से से काफी ज्यादा संवेदनशील होते हैं. इसलिए जरूरत है कि ऐसे हिस्से को पहचानने की और यदि यह किसी भी तरह से बाढ़ में योगदान देते हैं तो उसके निदान के लिए उचित उपाय करने की. बाढ़ से बचाव के लिए जरूरी है कि मौसम विज्ञानी,  इंजीनियर, भू-वैज्ञानिक ,पर्यावरणविद और प्रशासन कंधे से कंधा मिलाकर काम करें. इसमें से यदि एक को भी छोड़ा गया तो वह जनता के लिए हानिकारक होगा.

बाढ़ एक प्राकृतिक प्रक्रिया है. इसलिए हमारे लिए यह जरूरी है कि हम इसके साथ रहना सीखें न कि इसे रोकने की कोशिश करें. समझदारी इसी में है कि हम बचाव पर ज्याद जोर दें. बचाव के लिए ज्यादा जरूरी है कि बाढ का पूर्वानुमान किया जाए और उससे होने वाले नुकसान को कम से कम करने के लिए सभी उपाय किए जाएं.

 dr Vimal Singh

( मूल रूप से गोरखपुर के रहने वाले डॉ विमल सिंह  दिल्ली विश्वविद्यालय में  भूगर्भ विज्ञान विभाग  में  सहायक प्रोफेसर हैं )

 

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