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शिक्षक नियुक्तियों में आरक्षण पर सवाल उठाने वालों को कुलपति ने आरक्षण विरोधी कहा

गोरखपुर. दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो विजय कृष्ण सिंह ने विश्वविद्यालय में  शिक्षकों के विभिन्न पदों पर जारी नियुक्ति प्रक्रिया के विषय में लगाये गए आरोपों को गलत बताया है और कहा है कि विश्वविद्यालय में शिक्षकों के विभिन्न पदों पर नियुक्ति के लिए लिए विज्ञापन तथा नियुक्ति प्रक्रिया पूरी तरह विधिसम्मत तथा माननीय न्यायालय एवं यूजीसी के निर्देशों के अनुरुप पूरी की गई है।

उन्होंने चयन प्रक्रिया पर सवाल उठाने वाले और विरोध करने वालों को आरक्षण विरोधी बताया है.

ओबीसी और दलित शिक्षकों के संगठन पिछड़ा वर्ग कल्याण परिषद ने ज्ञापन देकर और धरना-प्रदर्शन कर विश्वविद्यालय के बजाय विभाग की आरक्षण की इकाई मान की जा रही चयन प्रक्रिया का विरोध किया था और इसे रोकने की मांग की थी.

इन आरोपों के बारे में कुलपति प्रो विजय कृष्ण सिंह ने 28 अप्रैल की शाम विज्ञप्ति जारी कर सफाई दी.

उनके द्वारा जारी विज्ञप्ति यह है.

[box type=”shadow” ]पिछले कुछ दिनों से कतिपय संगठनों द्वारा यह भ्रम स्थापित करने की चेष्टा की जा रही है कि यह नियुक्ति प्रक्रिया आरक्षण के विधिसम्मत प्रावधानों के प्रतिकूल संपादित की जा रही है और इसे रोक दिया जाना चाहिए। विश्वविद्यालय इस नितांत असत्य और भ्रामक कथन का दृढ़तापूर्वक खंडन करता है तथा इस संबंध में वास्तविक तथ्य स्पष्ट करना चाहता है ताकि आम जन एवं विश्वविद्यालय से सरोकार रखने वाले लोगों को इस विषय में सही तथ्यों की जानकारी हो सके।

1. माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद ने रिट पिटीशन संख्या 45260 (2016) पर दिनांक 7 अप्रैल 2017 को दिए गए अपने फैसले में कहा था कि शैक्षणिक पदों पर नियुक्ति के मामले में आरक्षण संबंधी रोस्टर बनाते समय विश्वविद्यालय को इकाई मानने की बजाय विषय अथवा विभाग को इकाई माना जाए ।

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2. माननीय उच्च न्यायालय ने इस प्रकरण में अपने फैसले में माननीय सर्वोच्च न्यायालय के विभिन्न निर्णयों का भी उद्धरण दिया था।

3. विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने दिनांक 5 मार्च 2018 को सभी विश्वविद्यालयों को भेजे एक पत्र में सूचित किया था की माननीय उच्च न्यायालय के इस फैसले फैसले तथा माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इसकी पुष्टि किए जाने के उपरांत यह निर्णय लिया गया है की यूजीसी गाइडलाइन 2016 के क्लाज 6(सी) में संशोधन करते हुए यह व्यवस्था दी जाती है की सभी विश्वविद्यालयों में शिक्षकों के सभी पदों की नियुक्ति प्रक्रिया में विभाग या विषय को इकाई मानकर ही रोस्टर बनाया जाए।

4. दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय द्वारा माननीय उच्च न्यायालय के इस निर्णय निर्णय तथा इस संबंध में यूजीसी एवं शासन के स्पष्ट निर्देशों के अनुरुप ही विभाग अथवा विषय को इकाई मानकर दिनांक 19 सितंबर 2017 को शिक्षकों के नियुक्ति संबंधी विज्ञापन प्रकाशित किए गए।

5. इस विज्ञापन के विरुद्ध माननीय उच्च न्यायालय में एक याचिका संख्या 49251 (2017) दायर की गई थी जिसमें विज्ञापन में लागू की गई रोस्टर प्रक्रिया को गलत बताते हुए कहां गया था की इसके चलते वाणिज्य विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर के सभी 6 विज्ञापित पद आरक्षित श्रेणी में चले गए हैं और सामान्य श्रेणी के आवेदकों के लिए कोई अवसर नहीं बचा है। माननीय उच्च न्यायालय ने याचिका को परीक्षण के उपरांत यह कहते हुए खारिज कर दिया था की विज्ञापन में वर्णित रोस्टर प्रक्रिया नियम एवं विधिसम्मत है ।

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6. दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय द्वारा इसी विधिसम्मत प्रक्रिया के अनुरूप विभिन्न पदों पर नियुक्तियों हेतु चयन समितियों का आयोजन किया गया जिसके परिणाम दिनांक 29 अप्रैल 2018 को विश्वविद्यालय कार्यपरिषद के सम्मुख प्रस्तुत किए जाएंगे।

7. इस प्रक्रिया के संबंध में भ्रामक तथ्य प्रस्तुत करने वाले संगठनों द्वारा विश्वविद्यालय अनुदान आयोग आयोग के संयुक्त सचिव द्वारा दिनांक 20 अप्रैल 2018 को प्रेषित जिस पत्र का उल्लेख किया जा रहा है उसमें मात्र यह ‘सूचित’ किया गया है की माननीय उच्च न्यायालय के संदर्भित निर्णय पर पुनर्विचार के लिए याचिकाएं योजित की गई है । यह पत्र किसी भी रुप में में रुप में में यह ध्वनित नहीं करता की इन पुनर्विचार याचिकाओं के निर्णय आने तक सभी चयन प्रक्रिया और उसके परिणाम स्थगित कर दिये जाएं।

8. इस संबंध में विधिक परामर्श के आधार पर विश्वविद्यालय का स्पष्ट मानना है की जब तक माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इस संबंध में कोई नया आदेश पारित नहीं किया जाता अथवा यूजीसी द्वारा कोई स्पष्ट प्रतिबंधात्मक निर्देश नहीं दिया जाता तब तक कोई कारण नहीं है की माननीय उच्च न्यायालय के निर्णय तथा यूजीसी के वर्तमान में प्रवृत्त निर्देशों का अनुपालन न किया जाए।

9. विश्वविद्यालय माननीय न्यायालयों तथा UGC सहित सभी नियामक संस्थाओं के निर्णय के सम्मान तथा उसके सम्यक अनुपालन हेतु प्रतिबद्ध है और यह स्पष्ट करना चाहता है की भविष्य में निर्गत होने वाले सभी आदेशों तथा निर्देशों का तत्काल प्रभाव से अनुपालन किया जाएगा। यह एक विधिसम्मत स्थिति है कि जब तक कोई नया आदेश निर्गत नहीं होता तब तक वर्तमान में प्रवृत्त आदेश का अनुपालन किया जाना ही न्याय संगत है।

विश्वविद्यालय में बहुत लंबे समय के उपरांत शिक्षकों के पदों पर नियुक्ति प्रक्रिया पूरी की गई है जो विश्वविद्यालय में पठन पाठन की व्यवस्था को ठीक रखने के लिए अब बहुत जरूरी हो गई थी। विश्वविद्यालय हित में तथा नियमों के सम्मान में इस चयन प्रक्रिया का स्वागत होना चाहिए न कि विरोध। ”

विश्वविद्यालय में शिक्षकों के विभिन्न पदों पर नियुक्ति के लिए लिए विज्ञापन तथा नियुक्ति प्रक्रिया पूरी तरह विधिसम्मत तथा माननीय न्यायालय एवं यूजीसी के निर्देशों के अनुरुप पूरी की गई है । जिन 53 पदों के परिणाम कल कार्य परिषद के सम्मुख के सम्मुख प्रस्तुत किए जाने हैं उसमें 30 पद आरक्षित संवर्ग के हैं । इससे स्पष्ट है की विश्वविद्यालय आरक्षण के प्रावधानों और न्यायालय के निर्देशों के प्रति कितना प्रतिबद्ध है । विरोध करने वाले स्वयं आरक्षण विरोधी हैं अन्यथा वह इतनी बड़ी संख्या में आरक्षित संवर्ग की भर्ती का विरोध नहीं करते।” [/box]

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