साहित्य - संस्कृति

‘जश्न-ए-ईद मिलादुन्नबी व ‘जलसा-ए-दस्तारबंदी’ के साथ हजरत मुबारक खां शहीद का उर्स-ए-पाक शुरू

गोरखपुर, 12 जुलाई। नार्मल स्थित दरगाह पर हजरत मुबारक खां शहीद अलैहिर्रहमां का सालाना तीन दिवसीय उर्स-ए-पाक बुधवार को ‘जश्न-ए-ईद मिलादुन्नबी व ‘जलसा-ए-दस्तारबंदी’ के साथ शुरू हुअा।

इस मौके पर मुख्य अतिथि फैजाबाद के पीरे तरीकत अल्लामा सैयद अब्दुर्रब उर्फ चांद बाबू ने कहा कि पैगंबर-ए-इस्लाम हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहौ अलैहि वसल्लम की शिक्षाओं के सही प्रचारक औलिया हैं. शांति की शिक्षा उनके जीवन का मकसद होती है, सृष्टि को निर्माता से मिलाना और मनुष्य को मानवता के बारे में पता कराना उनका विशेष कार्य होता है. औलिया का दरवाजा हर आने वाले  के लिए खुला रहता है.

मेंहदावल के मुफ्ती अलाउद्दीन मिस्बाही ने कहा कि हजरत आदम अलैहिस्सलाम से लेकर आखिर पैगंबर हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहौ अलैहि वसल्लम तक जितने भी पैगंबर इस दुनिया में आये, वह सब इंसानों को एकता और इंसानियत की दावत देने के लिए आए। पैगम्बर-ए-इस्लाम ने अपने अंतिम धर्मोपदेश (खुत्बा–ए-हज्जतुल विदा) में स्पष्ट शब्दों में फ़रमाया है कि कोई इंसान किसी दूसरे इंसान पर कोई श्रेष्ठता नहीं रखता, किसी गोरे को काले, किसी अरबी का अजमी पर कोई बड़ाई नहीं है, लेकिन केवल अपनी अच्छाईयों, अल्लाह का खौफ, इंसानों में जिसका रिश्ता अल्लाह से मजबूत होगा और बंदों को जिससे अधिक लाभ होगा, वह ही बेहतर इंसान है।

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इस्लामिक स्कॉलर मुफ्ती मोहम्मद अजहर शम्सी ने कहा कि पैगंबर-ए-इस्लाम हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहौ अलैहि वसल्लम ने फरमाया है कि मुसलमान वह है जिस के हाथ और ज़बान से सभी इंसानों को सलामती पहुंचे। सही मुसलमान वो है जो दुनिया को शांति से भर दे, जो ज़ुल्म  करे उस पर रहम करे, जो रिश्ता तोड़े उस से रिश्ता जोड़े.

देवरिया के कारी अजहरूल कादरी ने कहा कि अल्लाह के पैगंबर हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहौ अलैहि वसल्लम के अंतिम हज का उपदेश इस्लाम के व्यक्तिगत और सामूहिक नैतिकता और इस्लामी शरीयत के नियम का एक व्यापक संविधान है। आज से चौदह सौ साल पहले दयालुता के प्रतीक पैगंबर हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहौ अलैहि वसल्लम ने मानव अधिकार का ह्यूमन चार्टर लागू किया था।

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नात-ए-पाक सादिक रजा नेपाली, रौशन वैशालवी, रईस अनवर व एजाज अहमद ने पेश की। इस दौरान कारी शराफत हुसैन कादरी, हाफिज नजरे आलम कादरी, मौलाना मकसूद आलम, अब्दुल कादीर, नूर मोहम्मद दानिश, इकरार अहमद, मारूफ, हाफिज रहमत अली, शादाब रजा, मौलाना नूरुज्जमा मिस्बाही, मो. अतहर, कारी अफजल बरकाती, मनौव्वर अहमद, रमजान अली, हाजी सेराज अहमद, फिरोज अहमद नेहाली सहित तमाम लोग मौजूद रहे।

हिफ्ज के आठ छात्रों की हुई दस्तारबंदी

‘जलसा-ए-ईद मिलादुन्नबी’ के बाद मदरसा दारुल उलूम अहले सुन्नत फैजान-ए-मुबारक खां शहीद के आठ हिफ्ज के विद्यार्थियों मो. शहाबुद्दीन, मो. आतिफ रजा, मो. मेराज, मो. शाकिब रजा, मो. आमिर रजा, रिजवान आलम, मो. सैफ रजा, नूर आलम की दस्तारबंदी (सनद देने की रस्म) मुख्य अतिथियों द्वारा अदा की गयी। छात्रों के सरों पर दस्तार बांधी गयी। लोगों ने नजरानों से नवाजा।

मजार की हुई संदल पोशी

नार्मल स्थित हजरत बाबा मुबारक खां शहीद अलैहिर्रहमां के सालाना उर्स-ए-पाक में मुस्लिम समुदाय के अलावा अन्य धर्मो के लोगों ने शिरकत कर अमन चैन व खुशहाली की दुआएं मांगी। भोर में गुस्ल एवं संदल पोशी हुई।

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