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गोरखपुर शहर की सफाई अब मुम्बई और मुरादाबाद की फर्मो पर, मजदूरों को देंगे 259.04 रुपये दिहाड़ी

सफाई कराने वाली फर्मे गृहस्वामियों से सफाई शुल्क भी वसूलेगी

गोरखपुर. महंगाई के इस जमाने में गरीबों के वोट के जरिये चुनी गयी सरकार ने सफाई मजदूरों की मजदूरी 259.04 रुपये तय की है. यह मजदूरी शहर की गंदगी साफ करने वाले श्रमिकों के लिये तय की गयी है  जो जानलेवा रसायनों और गंदगी से बजबजाते नालों में उतरते हैं. संडाध मारते कूड़े के ढेर का निस्तारण करते हैं और हमारे घरों की गंदगी बटोरते हैं.

सफाई श्रमिकों की यह मजदूरी ठेकेदारों के मजदूरों के लिये तय की गयी है. उस पर नगर निगम प्रशासन का तुर्रा यह है कि पहले के ठेकेदारों से मिलने वाली मजदूरी की तुलना में हैंडसम मजदूरी है. दिहाड़ी की इस रकम में 13.75 प्रतिशत पीएफ और ईएसआई की कटौती की रकम भी शामिल है.

वैसे ठेकेदार फर्म को प्रति श्रमिक के हिसाब से कुल 307.99 रुपये का भुगतान तय किया गया है. श्रमिक की दिहाड़ी उसके खाते में जायेगी.

सफाई का धंधा अब चोखा है. कुछ वर्षों पहले तक धंधे के लिहाज से अलाभकारी था. लिहाजा नगर निकायों को सफाईकर्मियों की खुद भर्ती करनी पड़ती थी. उन्हें अपने अन्य कर्मचारियों की तरह ही वेतन और सुविधायें देनी पड़ती थी. वर्ष 1985 के बाद से संसाधन और आय की कमी का हवाला देकर भर्तियां बंद कर दी गयी थी. पर शहर फैलने लगे थे और साथ ही हर जगह सफाईकर्मी तैनात करने की मजबूरी भी थी लिहाजा 90 के दशक में ही दैनिक सफाईकर्मियों की भर्ती की जाने लगी. पद नहीं बढे अलबत्ता सुविधा यह रही कि सीनियारिटी लिस्ट के आधार पर दैनिक सफाईकर्मियों को रिटायर होने वाले कर्मियों की जगह नियमित किया जाता था.

पिछली सदी के अंतिम दशक में जब कार्पोरेट इंडिया बनने लगा तो जोर शोर से संविदा पर श्रमिकों की भर्ती की हवा चल पड़ी. अजीब बात थी कि इनका वेतन भी अलग से तय हो गया जो नियमित श्रमिकों की तुलना में आधा भी नहीं थी. इसके अलावा ये नौकरी की सुरक्षा से वंचित थे. इनके अनुबंध में सहमति ले ली जाती थी कि वे कभी नियमित होने के लिए दावा नहीं करेंगे.

इस सदी में सेवा क्षेत्र में बड़ी कंपनियों के उदय ने श्रम क्षेत्र का पूरा परिदृश्य ही बदल दिया. कल्पनातीत ढंग से निजी सुरक्षा एजेंसियों से ठेका श्रमिकों की आपूर्ति करने वाली हजारों करोड़ की पूंजी वाली कंपनियां सामने आ गयी. नीति निर्माताओं को भी इस नयी इजाद में बड़ा सुकून मिला. सिर्फ पेट के लिये खटने वाले श्रमिक मिलना इस देश में आसान था जहां बेरोजगारी का दानव सुरसा के मुख की तरह बढ़ रहा था. यह बंधुआ श्रम का नया अवतार था. जहां कम मजदूरी, खतरनाक कार्य स्थितियों और सांस चलने तक हाड़तोड़ श्रम की अमानवीय परिस्थितियों के खिलाफ कोई आवाज नहीं उठनी थी.

सेवा क्षेत्र भारी मुनाफे का सर्वाधिक सुरक्षित क्षेत्र था लिहाजा इसमे उतरने वाली कंपनियों ने दिन दूना, राज चौगुना विकास किया. इसमें कारपोरेट तक उतर गये. अब जबकि सरकारें अपनी है और नीतियां बनाने में भागीदारी तो बजाय भर्ती बोर्ड और कानूनों के झमेले में पड़े आउटसोर्सिंग के खेल में अपनी कल्याणकारी सरकारें सबसे मुखर भागीदार हो गयी हैं.

नगर निगम के सफाई कर्मचारी

गोरखपुर नगर निगम क्षेत्र के 70 वार्डों में निवास करने वाली लगभग 11 लाख की आबादी के लिए नये युग की शुरूआत हो गयी है. इस आबादी को अब गृहकर, जलकर, कारोबार के लाइसेंस शुल्क के अलावा सफाई के लिये भी शुल्क देना होगा. जिसकी दरें तय कर दी गयी है. जो सफाई करेगा वही शुल्क भी वसूलेगा. कोई सवाल करना मना होगा. मसलन कि अरे भाई केन्द्र सरकार तो कई साल से स्वच्छ मिशन के नाम पर नागरिकों से हर उपभोक्ता सामानों और सेवाओं पर 2 प्रतिशत सेस वसूल रही है.

जिन दो फर्मो को गोरखपुर की सफाई का ठेका मिला है. उनमे पहली विशाल प्रोटेक्शन फोर्स है जो मुम्बई में स्थापित है. इस फर्म के नार्थ जोन आपरेशनल हेड जय प्रकाश सिंह ने बताया कि उनकी कंपनी की शुरूआत एक रिटायर कर्नल साहब ने 80 के दशक में निजी सुरक्षा एजेंसी के रूप में की थी. यह कंपनी मार्शल और बाउंसर आदि की सेवायें भी देती है. पिछले बीस साल से साफ सफाई के क्षेत्र में है. उनकी सेवायें विेदेशों में भी है. उनके मुताबिक वे अपने कर्मचारियों को सरकार के मानक के अनुसार सभी सुविधायें दे रहे हैं. स्वास्थ्य के लिये मामूली प्रीमियम पर स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध रहेगी. साथ ही उन्हें साप्ताहिक अवकाश भी मिलेगा.

उन्होंने कहा कि उन्हें गर्व है कि वे अपने कर्मचारियों को हैंडसम सेलेरी दे रहे हैं. उन्होंने कहा कि अकुशल श्रमिकों को आधुनिक स्वास्थ्य मानकों के अनुसार ट्रेंड किया जा रहा है. उन्हें गृहस्वामियों को स्वच्छता के प्रति जागरूक करने व सफाई शुल्क की वसूली के लिए भी दक्ष बनाया जा रहा है. दूसरी फर्म मुरादाबाद की हिंदुस्तान सिक्यूरिटी एजेंसी है. पता चला कि इस फर्म के लिये सत्ता के शीर्ष प्रतिष्ठापित किसी बड़े शख्स की जबरदस्त पैरवी थी. ठेके के लिए कुल 26 फर्मो ने टेंडर डाला था जिसमें 21 काबिल पाई गयी. प्रतिस्पर्धा में दो फर्में सफल हुईं और उन्हें फिलहाल शहर की आबो हवा दुरुस्त रखने का ठेका मिल गया.
अब कुछ कुछ समझ में आ रहा होगा कि नागरिक सुविधाओं की ठेकेदारी किसकी होने जा रही है. मात्र 260 रुपये की दिहाड़ी के मजदूरों से कर वसूली भी करा ली जायेगी. ठीक उसी तरह जिस तरह पावर कारपोरेशन में हुआ या फिर बैंकों की बकाया वसूली में लगे युवा जो इसी तरह की अल्प मजदूरी के लिये दरवाजे दरवाजे भटककर अपनी जवानी खपा रहे हैं.

नगर निगम के नियमित सफाईकर्मियों पर लटकी तलवार
सवाल उठता है कि नगर निगम, गोरखपुर में फिलहाल तैनात 810 सफाई विभाग के कर्मियों का क्या होगा. इनमे से 530 कर्मचारी इस समय वार्डों में सफाई के लिये तैनात हैं. अधिकारियों का कहना है कि उनके लिये काम तय कर लिया गया है. उन्हें शहर की 50 चिह्नित मुख्य सड़कों पर सफाई के काम में लगाया जायेगा. 280 कर्मचारी कार्यालय के विभिन्न कामों में अटैच हैं.

वैसे नगर निगम के ही एक जानकार का कहना है सुपरवाइजर स्तर से नीचे कोई कर्मचारी इस विभाग में अब बचना मुश्किल है. जब इस विभाग के मुख्य काम सफाई का काम पूरी तरह आउटसोर्स हो गया तो इनका औचित्य प्रमाणित कर पाना निगम प्रशासन के लिये मुश्किल होगा. जब आउटसोर्सिंग फर्मे पूरी तरह जम जायेंगी तब बीआरएस, कार्यक्षमता मूल्यांकन के नाम पर 50 वर्ष से ऊपर के कर्मियों की स्क्रीनिंग का खेल शुरू होगा.

नगर निगम में पथ प्रकाश का पूरा काम आउटसोर्स हो ही चुका है. अब इस विभाग की भी निगरानी और सफाई की फर्मों के बिल पास करने के अलावा और कोई भूमिका नहीं रह जायेगी. वैसे भी अगले पांच वर्षों में ज्यादातर कर्मी रिटायर हो जायेंगे.

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