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भाई मिसवाहुद्दीन वारसी : पुराने लोग, पुरानी यादें

रवि राय

पुराने लोग कभी कभी काफी अरसे के बाद जब कहीं मिल जाते हैं, तबियत प्रसन्न हो जाती है . तमाम पुरानी बातें याद आ जाती हैं. अभी दस दिन पहले भाई मिसवाहुद्दीन वारसी मिले. अपने समय में वे गोरखपुर विश्वविद्यालय के धाकड़ समाजवादी छात्र नेता रहे हैं. इमरजेंसी में मीसाबंदी थे . जुझारू तेवर और मिलनसार मिजाज़ के लिए जाने जाते हैं. मुझे देखते ही हहाकर उठे और बड़ी गर्मजोशी से गले लग कर मिले . हालचाल पूछा और देर तक पुरानी बातें करते रहे. इनसे सम्बंधित एक वाकया याद आ रहा है.

उन दिनों मैं दैनिक जागरण में लोकल डेस्क देखता था .विश्वविद्यालय छात्रसंघ के चुनाव होने वाले थे. छात्रनेताओं के बयानों और उनकी गतिविधियों के कई समाचार आ रहे थे . भाई वारसी जी का एक बयान आया. मैनें सभी ख़बरों के साथ इसे संपादित करके कम्पोजिंग में भेज दिया. हैण्ड कम्पोजिंग का ज़माना था. गोरख दादा प्रूफरीडर हुआ करते थे. रात 12 बजे के बाद पेज लेट हो रहा है…जल्दी करिए…जल्दी करिए, बोल बोल कर मशीन विभाग गोरख दादा को पोंकियाता रहता था . मगर गोरख दादा पूरे इत्मीनान से रहते . हर मैटर का पूरा पोस्टमार्टम किये बगैर पेज छोड़ने नहीं देते थे. मीन मेख इतनी कि क्या मजाल एक भी त्रुटि छूटे. विद्वता इतनी कि हर शब्द पर शास्त्रार्थ करते. कभी कभी इसी चक्कर में ऐसा भयंकर काण्ड कर बैठते कि गजब हो जाता.

मिसाल के तौर पर देखिये, जागरण में पहले पेज पर एक खबर छपी “ गोरखपुर में 60 किमी वर्षा  ”. चीफ सब एडिटर थे तड़ित दादा. रोज़ अखबार की एक एक हेडिंग और खबरों की एक एक लाइन पढ़ते थे . शाम को सम्पादकीय में सबकी जुटान होते ही तड़ित दादा बमके, किसने ये खबर लिखी ? बेचारे उपसंपादक पेश हुए . मूल कॉपी निकाली गई .उसमें मिमी लिखा था ,प्रूफ कापी में भी मिमी ! तब आखिर ये ‘ किमी ’ छपा कैसे ? अब फाइनल पेज निकलवाया गया , उसमें मिमी को ‘ सुधार ‘ कर किमी बनाया गया था और यह महान कार्य किया था गोरख दादा ने . उन्हें बुलाया गया. बोले ,
“ साठ मिलीमीटर माने छै सेंटीमीटर . कल दिनभर बस छवे सेंटीमीटर में पानी बरसा था ? एतना बड़ा जिला है. शहरिये लीजिये तो नौसढ़ से गोरखनाथ छै किलोमीटर से उप्पर होगा .”

“ दादा , बरसात की नाप ऊंचाई में होती है एरिया में नहीं .” किसी ने टोका .

“ आप लोग भी गजब करते हैं ! सम्पादकीय में बईठ गए हैं तो सारा ज्ञान आप ही के पास बिटुर गया है का ? अरे विजय चऊराहा से अलीनगर रोड पर कई जगह तो कल घुटना घुटना पानी लग गया था !”

“ आँए !” समवेत स्वर में लोग चौंके .

“ अऊर का , हमारा घर ओंही न है , कल हम खुदे पैजामा बटोर के आए थे . आप लोग लिख दिए सिरिफ साठ मिलीमीटर पानी बरसा !” फिर ऊँगली का पोर दिखाते हुए मुस्कियाए, “ हेत्ती सी बारिस की खबर ऊहो मेनपेज पर छपती त लोग का कहते, आँए ?”

हम सभी सन्नाटे में आ गए . तड़ित दादा माथा पकड कर बैठ गए.

हाँ तो , बात कर रहा था मैं मिसवाहुद्दीन वारसी भाई की. उनकी खबर जो मैनें लिखी थी अगले दिन के अखबार में छपी तो मगर खबर में उनका नाम छपा कु.वाहुद्दीन वारसी ! शाम को प्रेस पहुंचा तो भाई मौजूद, पूरे तेवर में .

“ ई का रवि भाई ? इससे तो अच्छा था कि न छापे होते !”
उन्हीं के सामने कापी निकाली गई , मेरे लिखे हुए मिसवाहुद्दीन को सुधार कर गोरख दादा ने कु.वाहुद्दीन कर दिया था . बुला कर पूछा तो बोले,

” हिंदी के अखबार में नाम के आगे मिस मिसेज़ थोड़े न छपेगा !”

“ अरे भाई ये ही मेरा नाम है.” वारसी भाई बोले .

“आपका नाम है ?”

“जी , यही मेरा नाम है .”

“ अरे…रे…रे…, तब तो ये मुझसे मिस्टेक हो गया ! हम त समझे थे कि ई कउनों लड़की ओड़की का नाम है.”

वारसी भाई खुद हंस पड़े. मुझसे बोले,

“ इसका भूल सुधार छाप दीजिये.”

“ छोडिये, आज दूसरा कोई बयान दे दीजिये, लग जाएगा.” मैनें पिंड छुडाने की कोशिश की.दूसरा बयान भी अगले दिन छपा ,नाम छपा था– श्री वाहुद्दीन वारसी ?

वारसी भाई अगले दिन फिर टकराए,

“ अमां रवि भाई,ये आपका अखबार है कि क्या है, तमाशा बना डाला मेरा !”

अब गोरख दादा का तर्क था,

“ आप ही तो बोले थे कि ये आपका नाम है, पुरुषों के नाम के आगे श्री नहीं तो क्या श्रीमती लगेगा ? श्री पुल्लिंग होता है, श्रीमती शादीशुदा स्त्री लिंग वाले नाम के आगे लगता है और अगर कुंवारी लड़की होती है तो कुमारी या कु लिख के उसके आगे सुन्ना लगाते हैं….”

“ मगर….!” वारसी भाई टोके.

“ सुनिए सुनिए , अगर ठीक से कन्फर्म न हो कि लड़की शादीशुदा है कि नहीं , तो सुश्री लगाते हैं. ये है हिंदी, यहाँ सब चीज़ का इंतज़ाम है, समझे कि नहीं !”

इस बार तो भाई के साथ आए लोग भी हंसने लगे. भाई का चेहरा कान तक लाल. मुड़ कर जाने लगे. गोरख दादा ने तो मेरी बैण्ड बजा डाली थी. मैंने रोक कर मनाया . अगले दिन वारसी भाई का तीसरा बयान छपा. लगातार तीन दिन में तीन खबर तो बड़े से बड़े नेता की नहीं लगती. हाँ तीसरे दिन भाई का नाम छपा था – वाहुद्दीन वारसी.
इस बार गोरख दादा ने आदरसूचक संबोधन के चक्कर में न पड़ना ही मुनासिब समझा ? वारसी भाई पलट कर न आए और फिर न कोई बयान ही भेजा. बहुत दिनों तक नाराज़ रहे. माफ़ कर दीजिएगा भाई.

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