लोकसभा चुनाव 2019

उत्तर प्रदेश और बिहार में नई राजनीतिक ताकत के रूप में उभर रहा है निषाद समाज

उत्तर प्रदेश और बिहार में निषाद समाज एक नई राजनीतिक ताकत के रूप में उभर कर सामने आ रहा है. इस समाज की राजनीतिक ताकत उसी तरह बनती जा रही है जैसे इन दोनों राज्यों में यादव, जाट, जाटव या कुर्मी-पटेल की बन गई है जिन्हें अपने साथ लेने के लिए हर राजनीतिक दल लालायित रहता है. यूपी में निषाद पार्टी और बिहार में विकासशील इंसान पार्टी के उदय ने निषादों की राजनीति को मुख्य केन्द्र में ला दिया है.

दोनों राज्यों में निषादों की आबादी 14 से 17 फीसदी के बीच मानी जाती है. बिहार में निषाद 14 फीसदी है. यूपी में इनकी आबादी 17 फीसदी तक मानी जा रही है. बिहार में गंगा नदी व नारायणी के दोनों तटों और यूपी में गंगा, घाघरा, राप्ती, गंडक और यमुना नदी के किनारों पर इनकी सघन आबादी है.
बिहार में निषाद वंशीय जातियां ओबीसी में थी जिन्हें नीतिश कुमार ने अति पिछड़ा वर्ग में शामिल कर लिया. अब नीतिश कुमार ने निषाद वंशीय जातियों को अनुसूचित जन जाति में शामिल करने की संस्तुति की है.  बिहार में निषादों की 20 उपाजतियां मानी जाती हैं जिनमें विंद, केवट, वनपर, गोधी, सुरहिया, खुलबद, तीयर, बेलदार आदि प्रमुख हैं.

पिछले कुछ वर्षों तक निषाद और उनकी उपजातियां एकजुट नहीं थीं. उनकी उपजातियों के बीच भी उंच-नीच और शादी-व्याह के भेदभाव हैं. हाल के दौरान में कुछ सामाजिक संगठनों ने उन्हें निषाद, मल्लाह, मछुआरा पहचान के अन्तर्गत एकजुट करने के अभियान चलाए. राजनीतिक दलों द्वारा निषादों का वोट पाने के लिए उनके बीच के नेताओं को आगे बढ़ाने से कई नेता प्रदेश स्तरीय व कुछ राष्ट्रीय स्तर पर चमके. बिहार में कैप्टन जयनारायण निषाद तो यूपी में फूलन देवी, विश्वम्भर निषाद का नाम इसमें प्रमुखता से लिया जा सकता है.

निषादों का राजनीतिक व्यवहार बिहार और यूपी में एक जैसा नहीं रहा है. वे अपने-अपने इलाकों में निषाद नेताओं को तवज्जों देते रहे हैं चाहे वह भाजपा, राजद, जदयू, सपा, बसपा, कांग्रेस के क्यों न हो.  यूपी में सपा द्वारा फूलन देवी व कई अन्य निषाद नेताओं को आगे किए जाने से निषाद सबसे अधिक सपा से जुड़े. इसकी काट के लिए दूसरे दल भी निषाद नेताओं को एमपी-एमएलए को अधिक संख्या में टिकट देने लगे. इस प्रक्रिया ने निषादों में राजनीतिक चेतना का विस्तार किया और वे अपनी राजनीतिक ताकत के महत्व को समझने लगे. यूपी में निषाद पार्टी और बिहार में विकासशील इंसान पार्टी का गठन निषादों की बढ़ती राजनीतिक महत्वाकांक्षा का विस्तार है. अब वे एमपी-एमएलए बन कर ही संतुष्ट नहीं है बल्कि वह इन राज्यों के सत्ता की चाभी अपने पास रखने का ख्वाब देखने लगे हैं.

मुकेश साहनी

सन आफ मल्लाह मुकेश साहनी का यह कहना कि तीन फीसदी वाले मुख्यमंत्री बन सकते हैं तो 14 फीसदी मल्लाह बिहार में राज क्यों नहीं कर सकते, निषादों की महत्वाकांक्षा को उत्प्रेरित करने वाली ही अभिव्यक्ति है. इसी तरह यूपी में निषाद पार्टी कार्यकर्ताओं का ’ जय निषाद राज ’ नारा निषादों की बढ़ती राजनीतिक ताकत का प्रतीक है.

इसमें कोई संदेह नहीं है कि दोनों राज्यों में निषाद वंशीय जातियां बेहद गरीब हैं और सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक स्तर पर काफी पीछे हैं। आधुनिक विकास ने नदी-घाटों पर उनकी आजीविका पर गहरा प्रभाव डाला है. तालाबों के पट्टे और नीलामी होने के कारण उनकी इस पर भी दावेदारी छूटती गई. इस तरह मछली पकड़ने, बालू घाटों के कार्यों में वह बड़े ठेकेदारों के मजदूर बन कर रह गए. आजीविका पर हमले के कारण निषादों का बड़े पैमाने पर पलायन हुआ. देश के किसी भी शहर में प्रवासी मजदूरों में बड़ी संख्या में बिहार और यूपी के निषाद मिलेंगे. इनमें अधिकतर पेंट-पालिश, फर्नीचर, निर्माण कार्यों में जुड़े हैं. इनमें से कुछ लम्बे समय तक मुम्बई, दिल्ली आदि शहरों में कार्य करने हुए बड़े ठेकेदार भी हो गए हैं लेकिन अधिकतर की स्थिति बेहद खराब है.

आरक्षण की विसंगतियों के कारण संख्या में अधिक होने के बावजूद उन्हें आरक्षण का उतना लाभ नहीं मिला जितना जाटव, यादव, कुर्मी-पटेल आदि जातियों को मिला. मंडल आयोग लागू होने के बाद दोनों राज्यों में निषादों की अधिकतर उपजातियों को ओबीसी की सूची में रख दिया गया. कुछ जातियां एससी सूची में भी रहीं. निषादों की उपजातियों, पर्यायवाची व जेनरिक जातियों को ठीक से व्याख्यायित न किया जाना आरक्षण विसंगति का प्रमुख कारण रहा.

डॉ संजय कुमार निषाद

निषाद पार्टी के डाॅ. संजय कुमार निषाद और वीआईपी के मुकेश साहनी ने इसी मुद्दे को ठीक से पकड़ा और इसे उठाना शुरू किया. आरक्षण के मुद्दे पर निषादों की लामबंदी ने असर दिखया और बिहार में उन्हें अति पिछड़ी जाति में रखा गया तो यूपी में मुलायम और बाद में अखिलेश सरकार ने इन्हें ओबीसी की सूची से बाहर कर अनुसूचित जाति में शमिल किया. नीतिश कुमार अब बिहार में निषादों को एसटी में शामिल करने की संस्तुति कर उनका वोट चाहते हैं.

मुकेश साहनी बिहार के दरभंगा के रहने वाले हैं और मुम्बई में फिल्मों के सेट डिजाइनिंग के कारोबार से जुडे हैं. उन्होंने राजनीतिक पार्टी बनाने के पहले निषाद विकास संघ बनाया. वह अपने नाम के आगे ‘ सन आॅफ मल्लाह ’ लिखते हैं. उन्होंने 2015 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के समर्थन की घोषणा की. भाजपा ने उन्हें स्टार प्रचारक का दर्जा दिया और उनके नाम से अखबारों में खूब विज्ञापन दिए गए जिसमें कहा गया था कि ‘ आगे बड़ी लड़ाई है, एनडीए में भलाई है ’. भाजपा के साथ जुड़ने के पहले वह नीतिश कुमार के साथ थे. उनके द्वारा कैम्पेन करने के बावजूद भाजपा बिहार में बुरी तरह हारी हालांकि उनका कहना था कि उनकी वजह से बिहार के 7 फीसदी निषाद वंशीय समाज ने भाजपा को वोट दिया था लेकिन नीतिश और लालू की एकता के कारण यादव, मुस्लिम और कोइरी-कुर्मी एकजुट हो गए और 41 फीसदी वोट लेकर सरकार में आ गए.

2017 के विधानसभा चुनाव के पहले वह यूपी में भी सक्रिय हुए। उन्होंने राष्ट्रीय मछुआरा आयोग गठित करने और मांझी, मल्लाह, केवट और उसकी पर्ययवाची जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने की मांग को लेकर रथ यात्राएं निकालनी शुरू की. उन्होंने निषाद समाज में पैठ बनाने के लिए गोरखपुर में डेरा डाला था लेकिन निषाद पार्टी के जनाधार के आगे वह यहां ज्यादा कुछ नहीं कर पाए और वापस बिहार लौट गए.

नवम्बर 2018 में उन्होंने विकासशील इंसान पार्टी का गठन किया और बिहार मेें भाजपा-जद यू के खिलाफ महागठबंधन में शामिल हो गए. मुकेश साहनी को सभी दलों ने बहुत तवज्जो दी है हालांकि वह अपनी राजनीतिक ताकत अभी तक ठीक से साबित नहीं कर पाए हैं. अखबारों और सोशल मीडिया में विज्ञापनों के जरिए वह जितना दिखते हैं, उतना वोट वह अपने लिए या सहयोगी दलों के लिए जुटा पाने की ताकत अभी उन्हें दिखानी है. बार-बार निष्ठा बदलना से भी उनकी विश्वसनीयता काफी प्रभावित हुई है.

इसके ठीक उलट यूपी में निषाद पार्टी कैडर आधारित संगठन है। इसने यूपी के हर जिले में अपना संगठन बना लिया है और उसका बाकायदा ढांचा है. निषाद पार्टी ने वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में 72 सीटों पर चुनाव लड़कर निषादों की राजनीतिक ताकत का अच्छा प्रदर्शन किया . मार्च 2017 में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सीट गोरखपुर लोकसभा के उपचुनाव में सपा के सहयोग से जीत हासिल कर उसने अपनी ताकत दुबारा साबित किया है.

वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में निषादों की बढ़ती राजनीतिक ताकत बेशक असर डालेगी। निषाद की संख्या दोनों राज्यों में हर लोकसभा क्षेत्र में है। उनकी स्वतंत्र ताकत उतना असर नहीं दिखा सकती लेकिन यदि निषाद किसी खास दल के साथ आते हैं तो उसका प्रदर्शन काफी बेहतर हो सकता है. बिहार में आधा दर्जन लोकसभा सीटों-मुजफफरपुर, पूर्वी चम्पारण, दरभंगा, बेगुसराय और यूपी में 20 लोकसभा सीटों-गोरखपुर, महराजगंज, मिर्जापुर, भदोही, जौनपुर, इलाहाबाद, अम्बेडकरनगर, संतकबीरनगर, मुजफफरनगर, बदायूं, लखीमपुर खीरी, फतेहपुर आदि को निषाद प्रभावित करने की स्थिति में हैं।

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