लोकसभा चुनाव 2019

गोरखपुर-बस्ती मंडल : दो सीटें मुस्लिम बहुल फिर दो चुनाव से नहीं जीत पा रहे हैं मुसलमान उम्मीदवार

गोरखपुर। दोनों मंडलों में लाखों बुनकर, हजारों मीट कारोबारी व उससे जुड़े कारोबारी, कई हजार मदरसा आधुनिकीकरण शिक्षक कई सालों से रोजी रोटी के संकट से जुझ रहे हैं। उनका मानना है कि वर्तमान केंद्र व राज्य सरकार ने मुसलमानों में सिर्फ निराशा व भय का वातावरण दिया है। उप्र की सियासत में मुसलमानों की अहम भूमिका रही है। ज्यादातर सीटों पर सपा, बसपा, कांग्रेस अन्य वोटरों के साथ मुस्लिम वोटों पर ही निर्भर रहते हैं जबकि भाजपा की कोशिश रहती है कि मुस्लिम वोट बंटे।

फिलहाल बसपा ने डुमरियागंज सीट से आफताब अहमद को प्रभारी बनाया है। वहीं कांग्रेस ने संतकबीरनगर सीट से परवेज खान को टिकट दिया है। डुमरियागंज से कांग्रेस मुस्लिम उम्मीदवार ही उतारेगी, ऐसी संभावना है। देवरिया सीट से नियाज अहमद को कांग्रेस टिकट दे सकती है। ‘ सबका साथ सबका विकास ‘ जैसे जुमला नारा देने वाली भाजपा से टिकट हासिल करना मुसलमानों के लिए नामुमकिन है। सपा के खाते में तीन सीटें आयीं है और वह गोरखपुर व महराजगंज सीट पर निषाद प्रत्याशी पर ही दांव आजमायेगी। सपा का कुशीनगर सीट पर रुख साफ नहीं है। बसपा के पूरे उम्मीदवार करीब-करीब तय हो चुके हैं।

पीस पार्टी को सपा-बसपा गठबंधन में सीट नहीं मिली। कांग्रेस से भी बात हुई लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। तब जाकर पीस पार्टी ने छोटे दलों का गठबंधन बनाकर चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। पीस पार्टी चुनाव जीतने की हैसियत में नजर तो नहीं आ रही है लेकिन संतकबीरनगर व डुमरियागंज में वोट कटवा के तौर पर उभर सकती है।

दोनों जगह मुस्लिम वोटर बीस प्रतिशत से अधिक हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में करारी शिकस्त झेलने वाले पीस पार्टी के मुखिया दोनों में से किसी एक सीट पर ताल ठोकने की फिराक में हैं।

गोरखपुर-बस्ती मंडल की 9 लोकसभा सीटों पर आजादी के बाद से सिर्फ तीन मुस्लिम उम्मीदवार (डुमरियागंज व महराजगंज लोकसभा सीट) सांसद बनने में कामयाब हुए हैं। दोनों मंडल की 7 सीट (गोरखपुर, संतकबीरनगर, बस्ती, सलेमपुर, कुशीनगर, देवरिया, बांसगांव) पर आजादी के बाद से मुस्लिम उम्मीदवारों का खाता तक नहीं खुला है। बांसगांव सुरक्षित सीट को छोड़कर तकरीबन हर लोकसभा में मुस्लिम उम्मीदवार खड़े तो जरुर होते हैं लेकिन जनता का वोट पाने में नाकाम रहते हैं।

 महराजगंज लोकसभा सीट पर वर्ष 1980 में अशफाक हुसैन अंसारी कांग्रेस (आई) के टिकट पर चुनाव जीते थे। मुस्लिम वोटरों की अधिकता वाली डुमरियागंज लोकसभा सीट पर वर्ष 1980 व 1984 में काजी जलील अब्बासी कांग्रेस के टिकट पर तो वर्ष 2004 में मो. मुकीम बसपा के टिकट पर चुनाव जीतने में कामयाब हुए थे। वर्ष 2004 के बाद यहां से कोई मुस्लिम उम्मीदवार चुनाव नहीं जीत सका।

पिछले लोकसभा चुनाव में बसपा के दो मुस्लिम प्रत्याशी दो सीट से दूसरा स्थान प्राप्त करने में कामयाब हुए थे। देवरिया से बसपा के नियाज अहमद व डुमरियागंज से बसपा के मो. मुकीम चुनाव लड़े थे। डुमरियागंज एक ऐसी सीट है कि यहां से मुस्लिम उम्मीदवार के जीतने की काफी संभावना है। यहां 20 प्रतिशत से अधिक मुस्लिम वोटर हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में इस क्षेत्र की शोहरतगढ़, इटवा व डुमरियागंज विस सीट से बसपा के तीन मुस्लिम उम्मीदवार बहुत कम वोटों के अंतर से हार गए थे। संतकबीरनगर में भी 20 प्रतिशत से अधिक मुस्लिम वोटर है। यहां मुस्लिम वोट पाने की सपा-बसपा-कांग्रेस में होड़ है।

दोनों मंडलों की 9 लोकसभा सीट वाली 45 विधानसभा में एक भी मुस्लिम विधायक नहीं है। पिछले विधानसभा चुनाव में देवरिया जिले की रामपुर कारखाना विस सीट से सपा की गजाला लारी 9,987 वोट से हार कर जीत की हैट्रिक लगाने से चूक गयीं थीं। वहीं पथरदेवा विस सीट से सपा के शाकिर अली 42,997 वोट से हार कर दूसरे स्थान पर रहे थे। कुशीनगर जिले की पडरौना विस सीट से बसपा के जावेद इकबाल 40,532 वोट से हार कर दूसरे स्थान पर रहे थे। गोरखपुर जिले की पिपराइच विस सीट से बसपा के आफताब आलम ‘गुड्डू’ मात्र 12,809 वोट से चुनाव हार गए थे।

संतकबीर नगर जिले की खलीलाबाद विस सीट से बसपा के मशहूर आलम चौधरी 16,037 वोट से चुनाव हारे थे। सिद्धार्थनगर जिले की डुमरियागंज विस सीट से बसपा की सैय्यदा खातून मात्र 171 वोट से चुनाव हार गयी थीं। यहां का परिणाम सबसे ज्यादा चौंकाने वाला था। वहीं इटवा विस से बसपा के अरशद खुर्शीद भी मात्र 10,208 वोट से हार गए थे। शोहरतगढ़ से बसपा के मो. जमील भी मात्र 22,124 वोट से चुनाव हारे थे।

उप्र विधानसभा का चुनावी इतिहास बताता है कि दोनों मंडलों में कभी 4 से ज्यादा मुस्लिम उम्मीदवार विधायक नहीं बन पाए हैं। वर्ष 2007 के विधानसभा चुनाव में डुमिरयागंज से बसपा के तौफीक अहमद, मेंहदावल से सपा के अबुल कलाम व सलेमपुर से सपा की गजाला लारी चुनाव जीतने में कामयाब हुई थीं। वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में डुमिरयागंज से पीस पार्टी के मलिक कमाल युसुफ, खलीलाबाद से पीस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष डा. अयूब, देवरिया के पथरदेवा से सपा के शकिर अली व रामपुर कारखाना से सपा की गजाला लारी ने जीत हासिल की थीं।

इस लोकसभा चुनाव में सपा व बसपा साथ-साथ हैं। नौ सीटों पर दोनों मिलकर दमदार प्रदर्शन करने में सक्षम हैं। अब सिर्फ कांग्रेस से मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट मिलने की उम्मीद है। सपा-बसपा का गठबंधन गोरखपुर-बस्ती मंडल की नौ लोकसभा सीट गोरखपुर, बांसगांव (सुरक्षित), महराजगंज, देवरिया, कुशीनगर, सलेमपुर, डुमरियागंज, बस्ती, संतकबीरनगर पर जबरदस्त प्रभाव डालेगा। पिछले लोकसभा चुनाव में बसपा सलेमपुर, डुमरियागंज, संतकबीरनगर, महराजगंज, देवरिया व बांसगांव में दूसरे नम्बर पर रही थी। सपा-बसपा को रालोद व निषाद पार्टी का भी सहयोग है। जातिगत आंकड़े भी सपा-बसपा के साथ हैं।

वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने सभी नौ सीटों पर जीत हासिल की थी। दोनों मंडलों में भाजपा के कब्जे में लोकसभा की आठ व सपा के कब्जे में एक सीट है। वर्ष 2009 लोकसभा में बसपा ने जीती सलेमपुर, बस्ती, संतकबीरनगर और देवरिया सीट। भाजपा ने जीती गोरखपुर व बांसगांव (सु) सीट। कांग्रेस ने जीती महराजगंज, कुशीनगर व डुमरियागंज सीट।

वहीं वर्ष 2004 लोकसभा में कांग्रेस ने बांसगांव (सु), सपा ने सलेमपुर, देवरिया, बसपा ने डुमरियागंज, बस्ती, खलीलाबाद और भाजपा ने महराजगंज और गोरखपुर लोकसभा सीट जीती।

कुल मिलाकर बसपा की नौ सीटों पर हमेशा अच्छी पकड़ रही है। अब तो सपा, रालोद व निषाद पार्टी का साथ भी है। अबकी दोनों मंडलों में उलटफेर की पूरी संभावना है। शायद मुस्लिम उम्मीदवार जीतने में भी कामयाब हो जाए और चौदह साल का वनवास खत्म हो जाए।

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