पर्यावरण

खतरनाक है पानी का निजीकरण और बाजारीकरण : राजेंद्र सिंह

गोरखपुर। जल पुरुष के नाम से ख्यात, प्रसिद्ध पर्यावरण कार्यकर्ता राजेंद्र सिंह ने मंगलवार को प्रेस क्लब सभागार गोरखपुर में आयोजित जन संवाद कार्यक्रम में पानी के निजीकरण और बाजारीकरण को लेकर गंभीर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि आज तमाम देशी-विदेशी कंपनियां लोगों के अधिकार छीन कर इसे निजी हाथों में ले जा रही हैं। यह भारत के लिए सबसे खतरनाक है, हमें पानी का निजीकरण व बाजारीकरण नहीं चाहिए।

उन्होंने कहा हमारी लड़ाई यही है कि हमें पानी का निजीकरण व बाजारीकरण नहीं चाहिए, हमें इसका सामुदायिकरण चाहिए। हमें इसका सर्वसम्मति से निराकरण चाहिए। हर हाल में पानी का निजीकरण रोका जाना चाहिए, नहीं तो यह हम सबकेे लिए खतरनाक होगा।

श्री सिंह जिले के बेलीपार क्षेत्र के करंजही गांव में राप्ती नदी की धारा मोड़ने के खिलाफ चल रहे आंदोलन के तहत आयोजित महापंचायत में आये हुए थे। उन्होंने यूपी सरकार द्वारा राप्ती नदी के डायवर्जन प्रोजेक्ट की निंदा करतें हुए स्थानीय लोगों के विरोध की सरहना की। उन्होंने कहा कि सात मीटर गहरे प्रवाह वाली राप्ती की धारा को मोड़ना किसी भी लिहाज से उचित नहीं है। नदी के वास्तविक प्रवाह को रोकने का मतलब है बाढ़ और सूखे को विस्तार देना है। इसके अलावा पारिस्थितिकी और पर्यावरण पर पड़ने वाला असर गंभीर सवाल पैदा करते हैं।

उन्होंने कहा कि संविधान के मुताबिक नदी और कोई भी जल संरचना, उनकी जमीन उन्हीं के लिए होती होती है। उनके साथ छेड़छाड़ करना राज्य के भी अधिकार क्षेत्र में नहीं है। उन्होंने सरकार चेताया कि नदी के प्रवाह को बदलना उस इलाके का विनाश है। वह लालची विकास के नारे देकर विनाश का कार्य न करे।

जल पुरुष ने कहा ने कहा कि आज नदियों पर संकट है। नदियों की जमीन पर अतिक्रमण हो रहा है। नदियों में प्रदूषण हो रहा है। नदियों के जल का शोषण हो रहा है। भारत के लगभग सब नदियों के जमीन पर कब्जा कर बड़े लोग बड़े-बड़े रिवर-व्यू डेवलेपमेंट के प्रोजेक्ट चला रहे हैं। उन्होंने कहा कि हमारी सबसे बड़ी लड़ाई पानी के निजीकरण को लेकर है। हम इसका सामुदायिकरण करना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि हम चाहते हैं कि देश की नदियां शुद्ध सदानीरा होकर बहें। उन्होंने कहा कि धरती का पेट खाली हो गया है, हम चाहते हैं कि धरती का पेट शुद्ध निर्मल जल से भरा रहे।

श्री सिंह ने गंगा की सफाई पर असंतोष जाहिर करते हुए कहा कि पिछले पांच साल में गंगा की सेहत और खराब हुई है। गंगा की अविरलता के लिए कोई काम नहीं हुआ है। उन्होंने प्रदेश सरकार से अपनी बात सुनने की अपील की, साथ ही यह भी कहा कि उनकी बात को अनसुना किया जाना सरकार को भारी पड़ेगा। उन्होंने कहा कि पर्यावरण का सवाल साझे भविष्य का सवाल है। यह सवाल केवल आज का सवाल नहीं है, वह आज का भी है, कल का भी है और आने वाले भविष्य का भी है। उन्होंने इस बात पर हैरानी जाहिर की कि किसी भी राजनीतिक पार्टी ने अपने घोषणा पत्र में पर्यावरण प्रकृति के सवाल नहीं उठाए।

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