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बदलाव के वाहक : एक युवा जिसने मुसहर बस्ती में शिक्षा की अलख जगा दी

कुशीनगर जिले में मुसहर सबसे गरीब समुदाय के रूप में चिन्हित हैं और वे शैक्षिक, सामाजिक, आर्थिक हर पैमाने पर पिछड़े हुए हैं. मुसहर चूहे खाने वाले समुदाय के रूप जाने जाते हैं. वह एससी में आते हैं. मुसहरों में शिक्षा का स्तर बहुत कमजोर है क्योंकि उनकी पूरी जिंदगी दो जून की रोटी के इंतजाम के संघर्ष में ही बीत जाती है. मूलतः वे खेतिहर मजदूर हैं. उनके पास खेती की जमीन बिलकुल भी नहीं है. वे सामाजिक रूप से भेदभाव के भी शिकार है.

कुशीनगर जिले में मुसहरों के 100 टोलों में से विशुनपुरा ब्लाक अकबरपुर भी है. वाड़ी नदी के किनारे बसे इस छोटे से टोले में 40 घर हैं. वाड़ी नदी अब एक नाले का रूप ले चुकी है और इसमें बरसात के वक्त ही पानी रहता है. शेष समय लोग इसके प्रवाह क्षेत्र में खेती भी करने लगे हैं.

उपर से अकबरपुर टोला कुशीनगर जिले के दूसरे मुसहर टोलों जैसा ही दिखता है. कच्चे घर और काम के अभाव में घर बैठे स्त्री-पुरूष. युवा कम ही दिखते हैं क्योंकि वे आजीविका की तलाश में परदेश (शहर) चले गए हैं.

लेकिन दोपहर तीन बजे के आस-पास स्कूल से झुंड में लौटते बच्चे इस गांव में बदलाव की नई बयार से परिचित कराते हैं. पता चला कि ये बच्चे गांव में स्थित प्राईमरी स्कूल से पढ़कर लौट रहे हैं. आम तौर पर मुसहर गांवों में नंग धडंग इधर-उधर घूमते मिलते हैं लेकिन स्कूल से लौट रहे सभी बच्चे साफ-सुथरे स्कूल ड्रेस में हैं और वे आपके हर सवाल का जवाब मुस्तैदी से देते हैं.

गांव में यह बदलाव एक युवा मुसहर राजेश कुमार की बदौलत आया है. राजेश कुमार सामुदायिक कल्याण एवं विकास संस्थान का रेमेडियल सेंटर चलाते हैं जहाँ बच्चों को स्कूल जाने के लिए प्रेरित किया जाता है और उन्हें पढाया भी जाता है. यह सेंटर जुलाई 2018 से गांव में चल रहा है.

राजेश कुमार  न सिर्फ अपने गांव बल्कि कुशीनगर जिले के पूरे मुसहर समुदाय में उन गिने-चुने युवकों में हैं जो ग्रेजुएट हैं. वह इस वक्त समाजशास्त्र से एमए की पढ़ाई कर रहे हैं. उन्होंने बाबू तहसीलदार शाही महाविद्यालय सिंगहा में एडमिशन लिया है.

राजेश कुमार ने नेहरू इंटर कालेज मंसाछापर से हाईस्कूल, समाज कल्याण कालेज खेसिया से इंटरमीडिएट और वद्रीनारायण कालेज गायघाट से बीए किया. उनके घर में माता-पिता के अलावा दो बड़े भाई और तीन बहनें हैं. दोनों बड़े भाई दिल्ली में मजदूरी करते है. तीन बहनों में से दो की शादी हो गई हैं. भाई-बहनों में कोई पांच तक तो कोई आठ तक ही पढ़ पाया. सबसे छोटा भाई नौ में पढ़ता है.

उनकी पढ़ाई में दोनों बड़े भाइयों ने काफी मदद की है. वे उन्हें पढ़ाई का खर्च भेजते हैं. खराब आर्थिक हालात के बावजूद उनका जोर है कि राजेश खूब पढ़ें और अपने सपनों का पूरा करे.

राजेश रेमेडियल सेंटर से जुड़ने के पहले से मुसहर बस्ती में शिक्षा का अलख जगाने का काम कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि आज से आठ-दस वर्ष पहले मुसहर बस्ती का कोई बच्चा स्कूल नहीं जाता था जबकि प्राईमरी स्कूल बगल में ही है. यह देख उन्हें पीड़ा होती थी. उन्होंने घर-घर जाकर मुसहरों से अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिए प्रेरित किया. किसी ने उनकी बात पर ध्यान नहीं दिया लेकिन वह अपने प्रयास में लगे रहे. उन्होंने स्कूल के अध्यापकों को मुसहर बस्ती में बुलाया और उनसे भी मुसहरों से बात करायी.  काफी प्रयास के बाद 15 बच्चों का स्कूल में एडमिशन हुआ.

यह वर्ष 2010 की बात है.  उस समय वह खुद नौवीं के छात्र थे. एडमिशन के बावजूद बच्चे नियमित रूप से स्कूल नहीं जाते थे. यह देख राजेश कुमार रोज सुबह उठकर घर-घर जाकर सभी बच्चों को तैयार कराकर अपने साथ स्कूल ले जाने लगे. इससे बच्चों का स्कूल जाना नियमित हो गया. यही नहीं उन्होंने शाम को गांव में बच्चों की पाठशाला लगानी शुरू कर दी ताकि बच्चों का मन पढ़ाई में लगा रहे.

लेकिन जल्द ही नई दिक्कतें शुरू हो गईं. स्कूल में सिर्फ दो शिक्षक थे और वे भी नियमित रूप से नहीं आते थे. जब शिक्षक स्कूल नहीं आते तो बच्चे भी घर चले आते. यह देख उन्होंने स्कूल के दोनों शिक्षकों से बात की और अनुरोध किया कि वे उन्हें यहां पढ़ाने दें. दोनों शिक्षक मान गए. यह वर्ष 2016 की बात है. तबसे राजेश कुमार सरकारी प्राईमरी स्कूल में बिना नागा किए रोज पढ़ाने जाते हैं. इस कार्य के लिए उन्हें कोई पैसा नहीं मिलता है.

राजेश की दिनचर्या सुबह सभी बच्चों को तैयार कराकर इकट्ठा करने और साथ में स्कूल ले जाने से शुरू होती थी. वह स्कूल में पढ़ाते थे और स्कूल बंद होने पर बच्चों के साथ ही लौटते थे. फिर शाम को अपने घर पर पाठशाला लगाते थे.

निरंतर प्रयास से अब बच्चे नियमित हो गए हैं और उन्हें अब रोज घर-घर जाकर स्कूूल जाने के लिए कहने की जरूरत नहीं होती है.

उनके प्रयास से इस वक्त मुसहर टोले के 60 बच्चे प्राईमरी स्कूल में पढ रहे हैं. दो बच्चे-दिनेश व संजय नवीं कक्षा में नेहरू इंटर कालेज मंसाछापर में पढ़ रहे हैं. सुनैना, सुमन, सुनीता, बृजेश छठवीं में पढ़ रहे हैं. मुन्द्रिका प्रसाद की बेटी सपना ने चौथी के बाद पढ़ाई छोड़ दी थी. अब वह भी स्कूल जा रही है.

गांव में पांचवीं तक सरकारी प्राईमरी स्कूल है. इसके बाद बच्चे मठिया लाल विहारी में पढ़ने जाते हैं. यहां आठवीं तक पढाई होती है. गांव से तीन-चार किलोमीटर के दायरे में जूनियर हाईस्कूल से इंटरमीडिएट तक के शिक्षण संस्थान है.

राजेश जीवन भर शिक्षक ही बने रहना चाहते हैं. वह बीटीसी करना चाहते हैं ताकि वह किसी स्कूल में शिक्षक हो सकें. वह कहते हैं कि मुसहरों में शिक्षा और स्वच्छता के प्रति जागरूकता की कमी है. यदि उनमें जागरूकता होती तो उन्हें इतनी मेहनत नहीं करनी पड़ती अब स्थिति बदली है लेकिन गरीबी उन्हें आगे बढ़ने से रोक रही है.

वह जानते हैं कि मुसहर बस्ती में बदलाव की इस बयार की निरंतरता जरूरी है. वह कहते हैं कि दिनेश और संजय उनके काम में हाथ बंटा रहे हैं. उनके बाद वे दोनों उनके काम को आग बढाएंगे.

कक्षा एक में पढ़ने वाला सुधीर ए, बी, सी, डी पढ़कर सुनाता है और पूछने पर धड़ल्ले से ए फार एप्पल, बी फार व्वाय, सी फार कैट बोलता है. उसकी मां दुर्गावती उसे खुशी से निहार रही है. वह बोलती है कि राजेश ने गांव को बदल दिया लेकिन उन्हें इस परिश्रम और प्रतिबद्धता का पुरस्कार कब मिलेगा ? आखिर वह कब तक फ्री में सरकारी स्कूल में पढ़ाते रहेंगे ? क्या उनको वहां नौकरी नहीं मिल सकती ?

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