स्वास्थ्य

देवरिया में घर घर तलाशे जायेंगे टीबी के बीमार

देवरिया, टीबी (क्षय रोग) के खात्मे की ओर कदम बढ़ा रही सरकार नए रोगियों को खोजकर उनका उपचार शुरू करा रही है. क्षय रोग पर नियंत्रण पाने के लिए अब घर-घर सर्वे कर टीबी के रोगियों की पहचान की जाएगी. जिले में सर्वे के लिए 105  प्रशिक्षित टीमें भी गठित कर दी गई हैं. इस बार अभियान की शुरुआत दस जून से होगी और यह दस दिन तक चलेगा.

स्वास्थ्य विभाग की 105 टीमें दस जून से तलाशी अभियान में निकलेंगी

जिला कार्यक्रम समन्वयक देवेंद्र प्रताप सिंह ने बताया कि टीबी की बीमारी एक से दूसरे व्यक्ति तक फैलती है. कई बार रोगियों को स्वयं पता नहीं होता कि वह टीबी की जकड़ में है. ऐसे में वह स्वयं तो नुकसान झेलता ही है, साथ ही अन्य लोगों में भी इस बीमारी का संक्रमण फैला देता है. ऐसे ही छिपे हुए रोगियों को खोजने के लिए दस जून से दस दिन का अभियान शुरू किया जाएगा. स्थान पहले ही चिह्नित कर लिए गए हैं. इनमें घनी आबादी वाले क्षेत्र शामिल किए गए हैं. घर-घर जाकर संदिग्ध मरीजों की जांच की जाएगी. उन्होंने कहा कि अभियान को सफल बनाने की तैयारी की जा रही है. इसके लिए 105  प्रशिक्षित टीमें तैयार की गई हैं. जिसमे 315 सदस्य व 25 सुपरवाईजर लगाए गए हैं  जो टीबी के मरीजों की तलाश करेंगे. अगर कोई संदिग्ध रोगी पाया जाता है, तो उसकी नि:शुल्क जांच कराई जाएगी. सरकार द्वारा उसका संपूर्ण नि:शुल्क उपचार करवाया जाएगा. टीबी के मरीजों को 500 रुपये प्रतिमाह पोषण भत्ता दिया जा रहा है. यह भत्ता मरीजों को अच्छे खानपान के लिए दिया जाता है. टीबी के लक्षण के बारे में बताते हुए मेडिकल ऑफिसर डॉ संदीप कुमार ने बताया कि लंबे समय तक खांसी और बलगम आना, भूख कम लगना, शरीर कमजोर हो जाना, बार-बार या लगातार बुखार आना,  सांस लेने में परेशानी होना,  मुंह से खून आना टीवी के लक्षण हैं. यह रोग खांसने व छीकने से फैलता है. रोगी खांसते व छींकते समय मुंह पर रूमाल व साफ कपड़ा लगाएं.

इलाज के बाद हुए स्वस्थ

भुजौली कालोनी निवासी मीना (बदला हुआ नाम) बताती हैं की वह टीबी से ग्रसित थीं. पिछले अभियान के दौरान विभाग द्वारा 6 माह तक दवा की खुराक देकर इलाज कराया गया. जिसके बाद अब वह स्वस्थ हैं. वहीँ सिंधी मिल कालोनी के रमन (बदला हुआ नाम ) भी जिला अस्पताल में इलाज कराकर स्वस्थ हैं.

जाँच में मिले रोगियों का होगा बेहतर इलाज

जिला क्षय रोग अधिकारी डॉ. बी झा ने बताया कि अभियान के क्रम में टीम 10 जून से क्षेत्र में उतरेगी. टीबी को जड़ से समाप्त करने के संकल्प के साथ अभियान को गति दी जाएगी. हर घर तक टीम जाएगी, जहां टीबी के लक्षण वाले रोगी मिलेंगे उनकी जांच कराकर उनका बेहतर इलाज किया जाएगा.

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माँ के दूध के साथ दें पूरक आहार, स्वस्थ जीवन का बनेगा आधार

देवरिया, बच्चे के शारीरिक और मानसिक विकास के लिए शुरू के 1000 दिन यानि गर्भकाल के 270 दिन और बच्चे के जन्म के दो साल (730 दिन) तक का समय बहुत ही महत्वपूर्ण होता है. इस दौरान पोषण का खास ख्याल रखना बहुत ही जरूरी होता है क्योंकि इस दौरान हुआ स्वास्थ्यगत नुकसान पूरे जीवन चक्र को प्रभावित कर सकता है. माँ और बच्चे को सही पोषण उपलब्ध कराएं तो बच्चे की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ेगी और बच्चा स्वस्थ जीवन जी सकेगा.

-बच्चों के शुरूआती हजार दिन महत्वपूर्ण

-गर्भकाल के दौरान न करें लापरवाही, जीवन को कर सकता है प्रभावित

बच्चे के सही पोषण के बारे में जागरूकता के लिए ही आंगनवाड़ी केन्द्रों बचपन दिवस पर 6 माह की आयु पूरी किए गए बच्चों का अन्नप्राशन किया जाता है , उक्त माह में पड़ने वाले बच्चों का जन्म दिवस मनाया जाता है तथा माँ व परिवार वालों को पोषण,स्वच्छता एवं पुष्टाहार आदि के बारे में परामर्श दिया जाता है. वहीँ आंगनवाड़ी केन्द्रों पर अन्नप्राशन हर माह की 20 तारीख को मनाया जाता है. इस कार्यक्रम को आयोजित करने का मुख्य उद्देश्य होता है  बच्चे को समय से पूरक आहार की शुरुआत करना क्यूंकि 6 माह तक बच्चा सिर्फ माँ का दूध पीता है.  इस अवसर पर माँ व परिवार को माँ के दूध के साथ अर्द्ध ठोस व ठोस आहार के बारे में जागरूक किया जाता है. इसके साथ ही इस दिन आंगनवाड़ी कार्यकर्ता चार रंग के खाद्य पदार्थों (पीला, हरा, लाल और सफ़ेद ) को बच्चों को खिलाने, स्थानीय स्तर पर उपलब्ध मौसमी फल व सब्जियों के सेवन, पौष्टिक पदार्थ जैसे गुड़, सहजन चना आंवले के बारे में परामर्श दिया जाता है. साथ  अनुपूरक पोषाहार जैसे- लड्डू प्रीमिक्स, नमकीन एवं मीठी दलिया से बन ने वाले स्वादिष्ट व्यंजनों के बारे में जानकारी दी जाती है  एवं उनका प्रदर्शन किया जाता है.

जब बच्चा 6 माह अर्थात 180 दिन का हो जाता है तब स्तनपान शिशु की पोषण संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं होता है . इस समय बच्चा तीव्रता से बढ़ता है और उसे अतिरिक्त पोषण की आवश्यकता होती है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार नवजात शिशु को स्तनपान के साथ-साथ 6 माह की आयु पूरी होने के बाद पूरक आहार शुरू कर देना चाहिए.

आंगनवाड़ी कार्यकर्ता रानी मिश्रा बताती हैं कि वे और आशा घर भ्रमण कर यह सुनिश्चित करती हैं कि बचपन दिवस व अन्नप्राशन दिवस पर दिए गए संदेशो को व्यवहार में लाया जा रहा है या नहीं वे उन्हें प्रेरित भी करती है ताकि मातृ एवं शिशु म्रत्यु दर मैं कमी लायी जा सके तथा स्वास्थ्य को बेहतर बनाया जा सके.

रंजना  (आशा) बताती हैं कि वह अपने क्षेत्र की महिलाओं को केवल स्तनपान व पूरक आहार के बारे में बताती हैं तथा घरों में जाकर यह भी देखती हैं  कि वे सलाह पर अमल कर रहीं हैं या नहीं.

पोषण पुनर्वास केंद्र के प्रभारी व बाल रोग विषेशज्ञ डॉ आरके श्रीवास्तव  बताते हैं कि स्तनपान के साथ-साथ 6-8 माह की आयु के बच्चों को 250-250 मिली की आधी-आधी कटोरी अर्द्धठोस आहार, दिन में 2 बार देना चाहिए. 9-11  माह के बच्चे को स्तनपान के साथ-साथ 250-250 मिली की आधी-आधी कटोरी दिन में तीन बार देनी चाहिए .11-23 माह के बच्चे को भी स्तनपान के साथ 250-250 मिली  मिली की पूरी कटोरी दिन में तीन बार देनी चाहिये और साथ में 1-2 बार नाश्ता भी खिलाएँ। बच्चे को  तरल आहार न देकर अर्द्ध ठोस पदार्थ देने चाहिए. भोजन में चतुरंगी आहार (लाल, सफ़ेद, हरा व पीला) जैसे गाढ़ी दाल, अनाज, हरी पत्तेदार सब्जियाँ स्थानीय मौसमी फल और दूध व दूध से बने उत्पादों को बच्चों को खिलाना चाहिए .इनमें भोजन में पाये जाने वाले आवश्यक तत्व जरूर होने चाहिए, जैसे-  : कार्बोहाइड्रेट, वसा, प्रोटीन, विटामिन, खनिज पदार्थ, रेशे औरपानी उपस्थित हों.

 

क्या कहते हैं आंकड़े ?

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 के अनुसार, उत्तर प्रदेश में 6-23 माह के 5.3%बच्चों को ही पर्याप्त आहार मिल पाता है,  5 वर्ष तक के 46.3% बच्चे ऐसे हैं जिनकी लंबाई, उनकी आयु के अनुपात में कम है, 17.9% बच्चे ऐसे हैं जिनका वजन उनकी लंबाई के अनुपात में कम है तथा 39.5% बच्चे ऐसे हैं जिनका वजन उनकी आयु के अनुपात में कम है, वहीं 5 वर्ष तक के 63.2% बच्चों में खून की कमी पायी गयी |

रैपिड सर्वे ऑफ चिल्ड्रेन(2013-14) के आंकड़े दर्शाते हैं कि सही खान-पान के अभाव में प्रदेश के 50.4% बच्चे अविकिसित, 10% कमजोर व 34.3% बच्चे कम वजन के रह जाते हैं |

 

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