आमजन के लिए निराशाजनक है 20 लाख करोड़ का पैकेज

देवरिया. सामाजिक कार्यकर्ता एवं समान शिक्षा आंदोलन के नेता डॉक्टर चतुरानन ओझा ने 20 लाख करोड़ के पैकेज की घोषणा को आमजन के लिए निराशाजनक बताया है.

एक बयान में उन्होंने कहा कि सूक्ष्म मध्यम एवं लघु उद्योगों के केंद्रीय मंत्री एवं देवरिया के पूर्व सांसद कलराज मिश्र जी पूरे देश की कौन कहे अपने संसदीय क्षेत्र देवरिया में भी लघु उद्योगों की कोई रोशनी नहीं जला पाए. उनसे उम्मीद लगाए यहां के स्थानीय उद्यमियों एवं नौजवानों को भारी निराशा की स्थिति से गुजरना पड़ा.

उन्होंने कहा कि 1991 में लागू की गई नई आर्थिक नीतियों एवं गैट के प्रस्ताव के चलते लघु उद्योगों के लिए संरक्षित वस्तुओं के उत्पादन को भी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए खोल दिया गया था. इस संरक्षित क्षेत्र में बड़े पूंजी के निवेश ने लघु उद्योगों को पूरी तरह नष्ट कर दिया. इन क्षेत्रों में रही सही कसर अटल बिहारी बाजपेई के प्रधानमंत्री काल में छोटे उत्पादों से संबंधित 1400 वस्तुओं पर से आयात शुल्क हटाकर पूरी कर दी गई. इन बड़ी पूंजी के हितपोषक नीतियों के चलते लघु उद्योग पूरी तरह मर गए.
डॉ ओझा ने कहा कि आज पुनः इन्हीं लघु उद्योगों के नाम पर इस संकट के घड़ी में मोदी सरकार उम्मीदों के पुल बांध रही है, लेकिन दुखद है कि इस काम में भी वह बहुत ही चालाकी दिखाने और साजिश करने से बाज नहीं आ रही है।

उन्होंने कहा कि संरक्षित क्षेत्रों में बहुराष्ट्रीय कंपनियों के निवेश की इजाजत रहते हुए लघु उद्योगों का विकास न संभव था और न संभव है। प्रधानमंत्री द्वारा घोषित और वित्त मंत्री द्वारा उद्घोषित 20 लाख करोड़ के बजट में भी इन सूक्ष्म लघु एवं मध्यम उद्योगों का विकास संभव नहीं है। वस्तुओं के चयन को लघु सूक्ष्म एवं मध्यम उद्योगों के क्षेत्र से हटाकर 10 करोड़ ,20 करोड़ एवं 200 करोड़ के धन को आधार बनाना चालाकी भरा कदम है। बहुत ही छोटे पैमाने के स्थानीय उत्पादन के पारंपरिक क्षेत्र में भी बड़ी बहुराष्ट्रीय पूंजी निवेश की छूट बरकरार है। और बड़बोलापन और कारपोरेट के हित की चिंता इस घोषणा के मूल में है। करोना के नाम पर जनता के ऊपर लाकडाउन की महान विपदा थोपने के बाद भी मोदी सरकार अपनी कपटनीति से बाज नहीं आ रही है। यह बहुत ही दुखद है।  आज जरूरत है निजीकरण ,उदारीकरण और वैश्वीकरण की नीतियों को पूरी तरह खत्म कर संरक्षणवादी और समाजवादी आर्थिक संरचना निर्मित करने की जिसमें यह सरकार समर्थ नहीं है।