साहित्य - संस्कृति

सावित्रीबाई फुले का संघर्ष भारतीय समाज के नवनिर्माण का संघर्ष था : डॉ. रामायन राम

अग्रेसर ( अमेठी ) में  सावित्रीबाई फुले पुस्तकालय उद्घाटन और पहला सावित्रीबाई फुले व्याख्यान

 गीतेश सिंह

3 जनवरी 2018 की सर्द सुबह देश के विभिन्न हिस्सों से जुटे साहित्यकार, लेखक, बुद्धिजीवी, शिक्षक सुल्तानपुर से लगे रामगंज बाजार के पास स्थित गाँव अग्रेसर में सावित्रीबाई फुले के जन्म दिन के अवसर पर ‘सावित्रीबाई फुले पुस्तकालय’ के उद्घाटन के साक्षी बने । पुस्तकालय का उद्घाटन प्रेमचंद, रेणु और श्रीलाल शुक्ल की परंपरा के वाहक और वारिस, ग्रामीण जीवन के यथार्थ के सजग चितेरे कथाकार शिवमूर्ति ने किया । इस पुस्तकालय का निर्माण युवा लेखिका और शिक्षिका ममता सिंह ने अपने मित्रों, परिवार और स्थानीय लोगों की सहायता से किया है और वही इसका संयोजन, संचालन करेंगी ।

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उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए कथाकार शिवमूर्ति ने अपने बचपन की यादें साझा कीं । उन्होंने बताया कि किस तरह उन्हें अपने बचपन में एक मित्र के यहाँ किताबें पढ़ने को मिलती थीं, जिससे उनके भीतर पढ़ने की जिज्ञासा और लालसा पैदा हुई । शिवमूर्ति जी ने कहा कि जिस प्रकार हमारे पारिवारिक वारिस होते हैं ठीक उसी प्रकार हमारे लेखकीय साहित्यिक वारिस भी होते हैं । अगर मैं कहानीकार के रूप में अपने को प्रेमचंद, रेणु और संजीव का वारिस मानूं तो ममता के रूप में हमें हमारा साहित्यिक वारिस मिल गया है जो हमारे लिए बहुत गौरव की बात है । सावित्री बाई फुले के स्त्री शिक्षा और समाज में दिए योगदान को याद करते हुए शिवमूर्ति ने बताया कि जब सावित्रीबाई ने स्त्रियों के लिए विद्यालय खोलने का निर्णय लिया तो लोगों ने उन्हें अनेक प्रकार से तंग किया, विद्यालय जाते समय उनके ऊपर छतों पर से कूड़ा फेंका जाता था, किंतु वे अपने संकल्प पर अडिग रहीं और भारत की पहली महिला शिक्षिका के रूप में जानी गईं ।

शिवमूर्ति जी ने पुस्तकालय को आधुनिक, डिजिटल बनाने की आवश्यकता पर भी बल दिया ।

वरिष्ठ कथाकार शिवमूर्ति
वरिष्ठ कथाकार शिवमूर्ति

वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. रामदेव शुक्ल ने बेबी हालदार की कहानी के ज़रिए बताया कि पढ़ने और लिखने के अवसर मनुष्य को किस तरह बदल देते हैं । घरों में चौका बर्तन करने वाली  एक स्त्री को  लिखने पढ़ने का अवसर मिला और आज वह अंतरराष्ट्रीय ख्याति की लेखिका हैं । ‘आलो आंधारि’ उनकी चर्चित पुस्तक है | उनके बच्चे बहुत गर्व से कहते हैं कि उनकी माँ ऑथर हैं ।

दिल्ली से आईं लेखिका और शिक्षिका मृदुला शुक्ला ने आज के समाज में स्त्रियों की भयानक दुर्दशा और शोषण के ज़रिए सावित्री बाई फुले के संघर्षों के महत्व को याद किया । आज आधुनिक कहा जाने वाला हमारा समाज स्त्रियों को एक खास तरह की सामंती और पितृसत्तात्मक सोच के दायरे से बाहर निकल कर नहीं देख पाता तो डेढ़ सौ साल पहले के हमारे रूढ़िवादी समाज में स्त्रियों के लिए विद्यालय खोलने और स्त्री शिक्षा के लिए काम करने का निर्णय कितना चुनौतीपूर्ण रहा होगा, इसकी कल्पना की जा सकती है । मृदुला जी ने सावित्रीबाई फुले को इस रूप में भी याद किया कि वे न होतीं तो शायद हमारी स्त्रियों को इस तरह के पढ़ने के मौके न मिल पाते ।

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पहले सत्र की अध्यक्षता युग तेवर पत्रिका के संपादक श्री कमल नयन पाण्डेय ने किया । कमल नयन जी ने अपने वक्तव्य में बच्चों, स्त्रियों, युवाओं, किसानों, कामकाजी महिलाओं सभी के लिए पुस्तकें रखने का सुझाव दिया | संचालन गीतेश ने तथा धन्यवाद ज्ञापन ममता सिंह ने किया । अनेक शुभचिंतकों प्रो. राजेन्द्र कुमार, श्रीमती मीना राय, सिद्दीकी साहब आदि ने पुस्तकालय के लिए पुस्तकें भेंट की तथा शिवमूर्ति जी ने भविष्य में महत्वपूर्ण पुस्तकों, पत्रिकाओं के रूप में पुस्तकालय का सहयोग करते रहने का आश्वासन दिया | इस अवसर पर बड़ी संख्या में बच्चे, युवा, स्त्रियाँ तथा स्थानीय ग्रामवासी मौजूद रहे |

 सावित्रीबाई फुले का संघर्ष भारतीय समाज के नवनिर्माण का संघर्ष था : डॉ. रामायन राम

डॉ रामायन राम
डॉ रामायन राम

इस मौके पर झांसी से आए युवा आलोचक, जसम उ.प्र. के राज्य सचिव डॉ. रामायन राम ने पहला सावित्रीबाई फुले व्याख्यान दिया । अपने सजग और चेतना से लैस वक्तव्य में रामायन ने न सिर्फ सावित्रीबाई के स्त्री शिक्षा में योगदान को याद किया बल्कि हमारे समाज के लिए सावित्रीबाई के संपूर्ण योगदान को रेखांकित किया। सावित्रीबाई फुले जब स्त्री शिक्षा के लिए निकलीं तो उनका विरोध सिर्फ रूढ़ विचार से ही नहीं बल्कि शारीरिक हमलों के द्वारा भी किया गया । सावित्री बाई फुले ने पूना में विधवा गर्भवती स्त्रियों की प्रसूति के लिए आश्रम का निर्माण कराया तथा अपने जीवन काल में लगभग पाँच हजार ऐसी स्त्रियों को प्रसूति का अवसर उपलब्ध कराया । उन्होंने पूना में नाइयों की एक ऐतिहासिक हड़ताल कराई जिसमें शहर के नाइयों ने विधवा स्त्रियों का मुंडन करने से इन्कार कर दिया ।

रामायन ने इस बात की ओर ध्यान दिलाया कि हमारे समाज के वे तत्व जो जाति के भेदभाव और शोषण को और सघन बनाना चाहते थे वे जानते थे कि सामंतवाद और स्त्री की यौनिकता पर नियंत्रण उनका प्रमुख हथियार होगा । यही कारण है कि सावित्रीबाई के प्रयासों का इतना भयंकर विरोध हुआ ।

 कोरेगांव में दलितों पर हुए ताजा हमले को याद करते हुए रामायन ने कहा कि आज की सामंती और साम्प्रदायिक ताकतें नया इतिहास गढ़ने का काम कर रही हैं और इसमें सोशल मीडिया पर झूठ और नफ़रत का जहर फैलाया जा रहा है जिसके प्रतिरोध के लिए हमें किताबों की दुनिया में जाना होगा । यह पुस्तकालय इस लिहाज से भी एक महत्त्वपूर्ण पहल है ।

अंत में रामायन राम ने सावित्रीबाई फुले की मौत को भी एक महान और प्रेरक मौत की तरह याद किया । जब पूना में प्लेग की महामारी फैली थी तो प्लेग रोगियों की सेवा करते हुए वे बीमार हुईं जो उनकी मौत का सबब बना, किंतु वे अपने अंतिम समय तक रोगियों की सेवा में लगी रहीं । सावित्रीबाई फुले का अभियान केवल शिक्षा के लिए नहीं था | वह भारतीय समाज के नवनिर्माण का आन्दोलन था | शिक्षा से शुरू करके उन्होंने स्त्री मुक्ति तक का सफर तय किया जो जाति उन्मूलन की लड़ाई से जुड़ा, जिसे बाद में अम्बेडकर ने हिन्दू कोड बिल के जरिए उठाया | लोकतंत्र,समता,बराबरी अचानक से नहीं आते हैं | वे समाज के भीतर के आतंरिक संघर्षों और विचार को लेकर लोगों के संघर्ष से आता है | भारतीय समाज एक जटिल समाज है, इसमें आधुनिकता के एक-एक कदम के लिए संघर्ष करना पड़ा है | सावित्री बाई फुले ने ऐसे ही समाज के भीतर स्त्री शिक्षा और विधवा पुनर्वास के लिए संघर्ष किया | यह सिर्फ स्त्री शिक्षा के लिए चलने वाला आन्दोलन नहीं था बल्कि समाज को भीतर से बदलने वाला, उसे जड़ से हिलाने वाला आन्दोलन/अभियान था | सावित्री बाई फुले के इस आन्दोलन को आज फिर से नए सिरे से शुरू करने का समय है जिसका एक रूप यह पुस्तकालय है |

सावित्रीबाई के नाम पर आयोजित यह व्याख्यान वार्षिक रूप में उनके जन्म दिन पर मनाने की योजना है ।

‘ कथा ’ का लोकार्पण

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तमाम ताम झाम से दूर कथा के 21वे अंक का लोकार्पण “सावित्री बाई फुले पुस्तकालय” अग्रेसर के उद्घाटन समारोह के दौरान  सादगी के साथ हुआ । कथा के संपादक दुर्गा सिंह, कथाकार शिवमूर्ति, प्रो. प्रणय कृष्ण, रामदेव शुक्ल और कमल नयन पाण्डेय ने पत्रिका का लोकार्पण किया । कथा का यह अंक अपनी सामग्री में बहुत समृद्ध और पठनीय है । पत्रिका का प्रकाशन कथाकार मार्कण्डेय की परंपरा को आगे बढ़ाने वाला है तथा सम्पादक दुर्गा सिंह से उम्मीद है कि इसे आगे भी जारी रखेंगे ।

रंगकर्मी, निर्देशक सफ़दर हाशमी की शहादत को याद किया गया

जनमत के संपादक के के पाण्डेय ने इस अवसर पर रंगकर्मी, निर्देशक सफ़दर हाशमी की शहादत को याद किया । सफ़दर को याद करते हुए के के पाण्डेय ने उनकी रंगकर्म के प्रति निष्ठा, राजनैतिक चेतना, किसान-मजदूरों के बीच उनके काम और उनकी लोकप्रियता का जिक्र किया तथा उनकी एक कविता का पाठ भी किया जो पुस्तकालय स्थापना के लिहाज से भी बहुत मौजूँ है-

किताबें करती हैं बातें

बीते जमानों की

दुनिया की, इंसानों की

आज की कल की

एक-एक पल की।

खुशियों की, गमों की

फूलों की, बमों की

जीत की, हार की

प्यार की, मार की।

सुनोगे नहीं क्या

किताबों की बातें?

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पुस्तकालय का एक हॉल होगा त्रिलोचन के नाम पर

पुस्तकालय से जुड़े हुए एक रीडिंग हॉल को सुल्तानपुर की धरती के महाकवि त्रिलोचन के नाम पर त्रिलोचन सभागार नाम दिया गया । ललित कला अकेडमी से पुरस्कृत चित्रकार श्री प्रभाकर राय द्वारा बनाई गई त्रिलोचन की पेंटिंग कथाकार शिवमूर्ति ने ममता सिंह को भेंट की जिसे हॉल में लगाया जाएगा ।

दूसरा सत्र रहा कविताओं के नाम

कार्यक्रम का दूसरा सत्र कविताओं के नाम रहा । इस सत्र में  कुछ महत्वपूर्ण लोगों ने अपने विचार भी साझा किए ।

दूसरे सत्र में के .के पांडे के संचालन में कविता पाठ हुआ जिसमें सर्वश्री ओमप्रकाश मिश्र ,प्रदीप कुमार सिंह ,डॉ. सी.बी.भारती,अनिल सिंह , बृजेश यादव,  मृदुला शुक्ल ,आशा राम जागरथ और बालेन्द्र परसाई ने भी अपने पुस्तकालय अनुभवों को व्यक्त करते हुए शुभकामनाएँ दी और कविता पाठ किया | इस गरिमामय आयोजन में मध्यप्रदेश के पिपरिया से एकलव्य के गोपाल राठी और भोपाल से बालेन्द्र परसाई ने शिरकत की | गोपाल राठी ने अपने विचार साझा करते हुए पाठकों की गिरती संख्या और पढ़ने के प्रति अरुचि पर चिंता जाहिर की और इस विपरीत समय में इस प्रयास की सराहना की और अपनी शुभकामनायें प्रकट की | कार्यक्रम में ममता सिंह की अर्मेनियाई मित्र  लूसी ने ने  अपने हिंदी भाषा के प्रति प्रेम को व्यक्त किया,अनुराग सिंह ने इस पूरे कार्यक्रम को अपने सपने के पूरा होने की शुरुआत के रूप में रेखांकित किया |

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इस कार्यक्रम में सम्भावना कला मंच, गाजीपुर  के राजकुमार और उनकी टीम ने शानदार कविता पोस्टर  तैयार किये और प्रदर्शनी लगायी जिसकी सभी ने भूरि-भूरि प्रशंसा की | कार्यक्रम में उपस्थित अनेक मित्रों ने अपने यहाँ भी इस तरह की पहल का वादा किया और हम उम्मीद करते हैं कि इस अभियान का हम अन्य जगहों पर तेजी से प्रसार कर सकेंगे |

[author image=”https://mail.google.com/mail/u/0/?ui=2&ik=a47db0e4b3&view=att&th=160cb657215bd92e&attid=0.8&disp=safe&realattid=1588833102215512064-local7&zw” ]गीतेश सिंह शिक्षक हैं और जन संस्कृति मंच से जुड़े हैं [/author]

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