गोरखपुर लोकसभा उपचुनाव 2018समाचार

गुलाम नबी ने आज़ादी के बाद से हर चुनाव का रंग देखा है

आज़ादी के बाद से हुए हर चुनाव में किया है मतदान

बदलती सियासत से हैं निराश, बोले – अब कोई उम्मीदवार का किरदार नहीं देखता, मजहब और जाति-बिरादरी देखता है

गोरखपुर, 11 मार्च। आज़ादी के बाद से लोकसभा के 16 चुनाव हो चुके हैं. एक उपचुनाव भी हुआ है. ऊंचवां स्थित आइडियल मैरेज हाउस निवासी 95 वर्षीय हाजी गुलाम नबी खां ऐसे शख्स हैं जिन्होंने न सिर्फ इन सभी चुनावों को देखा है बल्कि हर चुनाव में मतदान किया है.

कांपते हाथ, ढ़लती उम्र आज भी उन्हें मतदान करने में बाधा नहीं डाल सकती. हाजी गुलाम नबी खां का 17 लोगों का भरा-पूरा परिवार है. उनके घर में 13 लोग मतदाता है। सब एक साथ मतदान करने मतदान केंद्र पर जाते है.

गुलाम नबी न सिर्फ चुनाव के बल्कि आजादी से पहले व आजादी के बाद की हालात, द्वितीय विश्व युद्ध की परिस्थितयों को अपने स्मरण में समेटे हुए है. उन्होंने इमरजेंसी भी देखी है.

हाजी गुलाम अली.2

उन्होंने प्रत्येक लोकसभा चुनाव, विधानसभा चुनाव, विधान परिषद चुनाव व नगर निगम चुनाव में बिना नागा मतदान किया और बेहतर शहरी का फर्ज अदा किया.  इन्होंने गोरखनाथ मंदिर के महंत दिग्विजयनाथ, अवैद्यनाथ, योगी आदित्यनाथ का सियासी सफर भी देखा है. कांग्रेस, बीजेपी, सपा, बसपा, जनता दल, हिन्दू महासभा, भारतीय लोकदल सहित तमाम पार्टियों का सियासी सफर भी देखा है. सियासत का हर उतार-चढ़ाव इनकी नजरों से गुजरा है.

इस लोकसभा उपचुनाव के प्रति भी वह उत्साहित है और सपरिवार मतदान कर रहे हैं.  हालांकि सियासत के बदलते रूख से चिंतित नजर आते है और कहते है सियासत का मिजाज बदल गया है. अब सियासत पर मजहब, जाति-पाति हावी हो रहा है. जनता के विकास तो मुद्दा रह ही नहीं गया है. अब नफरत की सियासत होती है. पहले का चुनाव उम्मीदवार की योग्यता पर लड़ा जाता था. आज उम्मीदवार की योग्यता से ज्यादा पार्टी देखी जाती है. उम्मीदवार की जाति-बिरादरी देखी जाती है. अब कोई उम्मीदवार का किरदार नहीं देखता है. सियासत पर धनबल, जातिबल हावी हो रहा है। यह देश के विकास के लिए ठीक नहीं है.

गुलाम नबी खां की कसौटी पर जो उम्मीदवार खरा उतरता है उसे ही वह वोट करते है.

मूलत: सिकरीगंज के रहने वाले गुलाम नबी सात बार हज भी कर चुके है. इन्होंने 3 बार हज का सफर पानी के जहाज से व 4 बार हवाई जहाज से तय किया. वर्ष 2005 में बिना व्हीलचेयर के हज के तमाम अरकान अदा कर चुके हैं. वर्ष 2006 में अंतिम हज किया.
इन्होंने अपनी उम्र शिक्षा की अलख जगाने में गुजारी. सिकरीगंज के मान्यता प्राप्त मदरसे में शिक्षण कार्य किया और राष्ट्रपति के हाथों उत्कृष्ट शिक्षक का पुरस्कार भी प्राप्त किया. इस वक्त इनकी चौथी पीढ़ी चल रही हैं। इनके पोते मौलाना हाफिज अयाज अहमद ने बताया कि दादा बहुत इबादत गुजार है। इल्म व अमल में हमेशा तल्लीन रहते है. सियासी व समाजी सोच भी उम्दा है. इनसे काफी कुछ सीखने को मिलता है.

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