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31 जुलाई को हमेशा के लिए बंद हो जायेगा रेलवे प्रेस, कहाँ जायेंगे प्रेस कर्मचारी तय नहीं


अभी समायोजन की गाइड लाइन ही तय नहीं
रेलवे प्रेस को चालू रखने का रेलवे यूनियनों की मांग खारिज

अशोक चौधरी
गोरखपुर,30 जुलाई; 
रेलवे प्रेस की बंदी के बाद इसमे काम कर रहे 166 कर्मचारी और अधिकारी कहां जायेंगे़, यह अभी तक तय नहीं हो पाया है। सभी असमंजस में हैं. रेल मंत्रालय के आदेश के मुताबिक 31 जुलाई को प्रेस पर ताला लग जायेगा. आज रेलवे के महाप्रबंधक के साथ यूनियन पदाधिकारियों की बैठक में प्रेस को बंद न करने की मांग पर पूर्वोत्तर रेलवे के महाप्रबंधक ने हाथ खड़े कर दिये. यही आश्वासन मिल पाया कि प्रेस के कर्मचारियों का समायोजन उनकी योग्यता के अनुसार गोरखपुर में विभिन्न विभागों में करने का प्रयास किया जायेगा.

गोरखपुर समेत देश के अन्य रेलवे जोनों में स्थित 6 रेलवे प्रिंटिंग प्रेस बंद करने के निर्णय की घोषणा पिछले साल अक्टूबर माह में रेलमंत्री पीयूष गोयल ने की थी. साथ ही बंद किये गये प्रेस के छपाई के काम अन्य रेलवे प्रेस में कराने का आदेश जारी किया था.

पूर्वोत्तर रेलवे के बुक्स एंड फार्मस, मनी वैल्यू आइटम, ईएफटी, पास, पीटीओ और मैनुअल टिकट आदि की छपाई शकूरबस्ती, दिल्ली स्थित प्रेस से कराने को कहा गया. इसके बाद रेल प्रशासन ने गोरखपुर रेलवे प्रेस को छपाई के आर्डर देने बंद कर दिये. उधर शकूरबस्ती के रेलवे प्रेस ने कर्मचारियों की कमी का हवाला देकर छपाई का आर्डर लौटा दिया.

बंदी की घोषणा के बाद उसकी तारीख तय नहीं थी. यह तारीख इस साल जून के अंतिम सप्ताह में आई. जिसमे कहा गया कि 31 जुलाई को रेलवे प्रेस को पूर्ण रूप से बंद कर दिया जाय. इस आदेश के बाद रेल यूनियनों में हडकंप मची और उन्होंने महाप्रबंधक को ज्ञापन देने के साथ धरना प्रदर्शन शुरू कर दिया. पर इस बार यह सब कुछ भी काम नहीं आया.

रेल यूनियन के एक पदाधिकारी का कहना है कि यूपीए सरकार के समय में भी कुछ रेलवे प्रेस को बंद करने का आदेश जारी हुआ था. उस समय ममता बनर्जी रेल मंत्री थी. उनसे जब रेल यूनियनों के प्रतिनिधि मिले तो उन्होंने फौरन आदेश को वापस कराया और प्रेसों को और समुन्नत करने का आदेश दिया. पर इस बार तो जैसे लगता है कहीं कोई आवाज ही सुनने वाला नहीं है. सब कुछ दिल्ली केन्द्रित है. किसी अधिकारी के पास संतोषजनक जवाब नहीं है. यही वजह है कि अभी तक तय नहीं है कि रेलवे प्रेस के कर्मचारी और अधिकारी बंदी के बाद कहा समायोजित होंगे. प्रेस कर्मियों में भारी हताशा और नौकरी जाने का भय व्याप्त है. अधिकांश 50 साल से ऊपर के हैं. उन्हें डर है कि कहीं समायोजन के बजाय उनके सामने बीआरएस का प्लान न रख दिया जाय.

चल रहा पीएमओ का डंडा
यह चौकाने वाला तथ्य एन ई रेलवे मजदूर यूनियन के महामंत्री के एल गुप्त ने बताया. उनके मुताबिक 30 जून को महाप्रबंधक के साथ पीएनएम की बैठक में उन्होंने रेलवे प्रेस की बंदी का फैसला वापस लेने की मांग की. उन्होंने कर्मचारियों के भविष्य के साथ रेलवे के कार्यालयों में जरूरी बुक्स एंड फार्मस तथा अन्य जरूरी कागजातों की हो रही दिक्कतों का सवाल भी उठाया. साथ ही यह भी जानना चाहा कि जब शकूरबस्ती प्रेस ने आर्डर लेने से मना कर दिया है तो ऐसे में अपनी जरूरतों के मद्देनजर गोरखपुर रेलवे प्रेस को बंद करना कौन सी समझदारी है.

श्री गुप्त ने बताया की महाप्रबंधक ने मीटिंग में बताया कि प्रेस की बंदी के फैसले को रेलवे बोर्ड भी वापस नहीं ले सकता क्योंकि यह फैसला पीएमओ के आदेश पर लिया गया है. श्री गुप्त ने बताया कि रेलवे के बहुत से फैसले पीएमओ से ही हो रहे हैं. ऐसे में रेलवे बोर्ड महज एक ऐसे फैसलों को लागू करने वाला निकाय भर रह गयी है. ऐसा उच्चाधिकारियों की स्वीकोरोक्ति है.

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