समाचारसाहित्य - संस्कृति

“ चीन की झालर का बायकाट ये तो ठीक है, मूर्ति किस मुल्क से आई है ये बतलाइये ”

एक शाम डा0 अल्लामा इकबाल के नाम

गोरखपुर. उर्दू दिवस की पूर्व संध्या पर गुरुवार को ‘जश्न-ए-उर्दू मुशायरा’ के तत्वावधान मेें अदब की एक शाम डा0 अल्लमा इकबाल के नाम का आयोजन शहर के ‘जश्न महल’ निजामपुर में किया गया. देर रात चलने वाले इस मुशायरे में राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय मेहमान शायरों के अलावा शहर के शायर एवं कवियों ने अपने कलाम पेश किए.

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डा0 अजीज अहमद ने कहा कि डा0 अल्लामा इकबाल की शायरी बुलंदी के उस मुकाम पर पहुंच चुकी थी, जहां वह खालिक से कलाम करता है और उसके जवाब का स्वागत भी करता है.

विशिष्ट अतिथि अरशद जमाल सामानी ने कहा कि डा0 अल्लामा इकबाल की शायरी केवल की शायरी केवल गुल व बुलबुल या नाला ओ फरियाद तक सीमित नहीं है, उन्होंने इंसानियत को अपनी शायरी का मौंजू बनाया. डा0 रजनीकांत नवाब ने कहा कि डा0 अल्लामा इकबाल ने आपसी मतभेद को भुला कर एक होने और साथ रहने का संदेश दिया है. उनका तराना ‘‘ सारे जहां से अच्छा’’ वाकई सारे जहां से अच्छा है.

कार्यक्रम की अध्यक्षता मशहूर शायर डा0 कलीम कैसर ने की संचालन का आकाशवाणी के मो. फर्रूख जमाल ने किया. शायरों ने यह कलाम पढ़कर दाद पायीं.

डा0 कलीम कैसर

इस मकां में इक मकीं था इश्क था
जब यहां कोई नही था इश्क था,
दो सिरे मिल कर भी थे दोनो जुदा
तू कहीं था मै कहीं था इश्क था।

बी.आर. विपलवी

रगां बनाया गया इश्तेहार के काबिल
तब एक झूठ बना ऐतबार के काबिल,
बसंत ला दिया है प्लास्टिक के फूलों ने
कहां से लायें नजर, इस बहार के काबिल।

आचार्य मुकेश श्रीवास्तव

मस्जिद भी उन्हीं की है मंदिर भी उन्हीं का
हमसे से बहुत अच्छे हैं, ये उड़ने वाले परिंदे

नदीमुल्लाह अब्बासी नदीम

चीन की झालर का बायकाट ये तो ठीक है
मूर्ति किस मुल्क से आई है ये बतलाइये
कारनामों से है वाकिफ आपके दुनिया नदीम
जो दबे है राज उन राज़ों को मत खुलवाइए।

 

डा0 चारू शीला सिंह

भीड़ में उसकी नजर में उतरना अच्छा लगा
छुप के सबकी नजरों से फिर संवरना अच्छा लगा।

डा0 सुभाष यादव

छेवता देवी रोज मनावें, हमरे खातिर रोवें गावें,
डनकर नेहिया से बढ़ी कर, दवाई नाहि होई

अब्दुल्लाह जामी

हमेशा देता है छाव थके मुसाफिर को
ये एक पेड़ जो बूढ़ा दिखाई देता है।

कमालुद्दीन कमाल

कमाल अपनी फितरत में नफरत नहीं है,
मेरा बस चले सारी दूरी मिटा दूं।

जालिब नोमानी

परिंदे कर गये हिजरत दरख्तों की शाखें भी बेखबर है।
यहां आना हुआ बेकार, कुछ बाकी नहीं

इस अवसर सरदार जसपाल सिंह, एडवोकेट शमशाद आलम, हन्नान अंसारी, पूर्व मेयर डा0 सत्या पाण्डेय, अंचिता लाहिड़ी, प्रवीण श्रीवास्तव, सैयद इफ्राहीम, डा0 ताहिर अली सब्जपोश, काजी इब्राहीम, मौलाना वलीउल्लाह, डा0 दरख्शां, इम्तेयाज अब्बासी, इं. शम्स अनवर, मुनतसिर अब्बासी, नुसरत अब्बासी, इं. मिनातुल्लाह, अकरम खान, मो. जिकाउल्लाह, शाहीन शेख, सुधा मोदी सहित नगर के साहित्य प्रेमी एवं गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे।