पर्यावरण

नहाने की कौन कहे आचमन योग्य भी नहीं रहा बांसी नदी का पानी

नरेंद्र प्रताप शर्मा

पडरौना (कुशीनगर). बांसी नदी अब अपने अस्तित्व को बचाने के लिए संघर्षरत है। जिस नदी के बारे में यज कहा गया कि ‘ सौ काशी न एक बांसी ’, वह आज प्रदूषण की शिकार हो चुकी है. इसका पानी नहाने की कौन कहे आचमन योग्य भी नही रह गया है.

बांसी उत्तर प्रदेश के अंतिम छोर पर कुशीनगर जिले के पडरौना से लगभग 7 किमी उत्तर पूर्व में स्थित है. यहाँ कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर लगने वाले मेले में हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ जुटती है.
कहते हैं कि विवाहोपरांत त्रेता युग में जब भगवान श्रीराम जनकपुर से लौट रहे थे  तो बारात ने नारायणी नदी पार कर यहीं विश्राम किया था. पानी की कमी को देखते हुए श्री राम की इच्छा से नारायणी नदी से एक श्रोत फुट पड़ा जिसे वांसी नदी के नाम से जाना जाता है. इस नदी में स्नान किये वाकायदा उन घाटों को आज भी उनके नामों से याद किया जाता है. आज भी जहाँ राम ने स्नान किया उसे रामघाट, जहाँ सीता ने स्नान किया उसे  सीता घाट व लक्षमण घाट आदि नामो से पुकारा जाता है. इतना ही नही  जहाँ देवियां ठहरी उस गांव का नाम देवीपुर,  जहाँ तीन लोक के देवता रुके उसे त्रिलोकपुर जहा सिंघा वाले रुके उस जगह का नामकरण सिंघपट्टी,  जहाँ घोड़े वाले रुके उसे घोड़ाहवा आदि नामों से आज भी उन गांवों की पहचान होती है.
यह नदी कटाई भरपुरवा के बेलवानिया के पास से निकल कर चिरईहवा, अरन्हवा, देवीपुर, घोड़ाहवा, त्रिलोकपुर, चैती मणिकौरा होते हुए बांसी से आगे चलकर बिहार के गोपालगंज के समीप पुनः नारायणी में मिल जाती है.
वर्तमान की स्थिति देख कोई भी यह कहने की स्थिति में नही होगा कि कभी यह एक भरी पूरी जीवंत नदी हुआ करती होगी जिसके किनारे जीवन का विकास हुआ होगा. कभी वेगवती बह रही इस नदी ने अपना रौद्र रूप दिखाया तो इसे बाँधने के प्रयास के तहत कटाई भरपुरवा के कोठी टोला के समीप एक रेगुलेटर बना दिया गया. यह रेगुलेटर नदी के लिए अभिशाप साबित हुआ. रही सही कसर नारायणी ने अपना तट छोड़ कर किया. वर्तमान में स्थिति यह कि इसमें नारायणी का जल सामान्य दिनों में नही आ पाता जिसका फायदा उठा स्थानीय लोगो ने नदी के अस्तित्व पर ही संकट खड़ा कर दिया है. नदी कई जगह नाले में तब्दील हो गई है. कई जगह तो सिर्फ इसके निशान ही बचे हैं। अब इसे एक अदद भगीरथ की तलाश है जो उसे पुनः पुनर्जीवित कर सके।
कार्तिक पूर्णिमा पर लगता है विशाल मेला
इस नदी के किनारे रामघाट पर कार्तिक पूर्णिमा के दिन लगने वाले मेले में उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों से लगायत बिहार व पड़ोसी देश नेपाल से हजारों की संख्या में श्रद्धालुजन आते हैं. मेले में गृहोपयोगी वस्तुओं की काफी विक्री होती है जिस वजह से दूर-दूर के दुकानदार भी अपनी दुकानें लेकर मेले में सप्ताह पूर्व ही पहुँच जाते हैं.

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