व्यंग्य

चैनलों के प्रहसन पर एक प्रहसन

अखबारों और टीवी चैनलों के प्रतिनिधि बैठे हुए हैं

ए टीवी का प्रतिनिधि : लगता है सडानी, मम्बानी, सिडला ग्रुप ने यहां ए से जेड तक सभी चैनलों को बुला लिया है. कई समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के संपादक भी छूटे नहीं है. सबको यहां बुलाने का कोई खास मकसद है क्या ?

बी टीवी का प्रतिनिधि : जरूर कोई गंभीर बात है, वरना सबको बुलाकर बैठक नहीं की जाती. लो,  वे  लोग आ गए. अब पता चल जाएगा.

सडानी, सडानी, मम्बानी, सिडला, माटा आते हैं.

सडानी :  महानुभावों !  आप सबको हमने एक जरूरी काम के लिए बुलाया है. उम्मीद है कि आप हमें निराश नहीं करेंगे.

सब एक साथ : हमारे लिए क्या आदेश है ?

मम्बानी : अरे बताते हैं . उतावले मत हो जाइए. बात यह है कि हम देख रहे हैं कि विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं, टीवी चैनलों में हमारे ऊपर बहस होने लगी है. हमारे कारोबार पर सवाल उठाये जा रहे हैं. इसे रोकना जरूरी है. बहस का विषय भारत के उद्योगपति, उनके कारोबार, उनका विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियों से रिश्ते, ये सब चीजें बहस में नहीं आनी चाहिए.

डी चैनल का प्रतिनिधि : मगर सर, जनता तो आप लोगों में दिलचस्पी ले रही है. लोग तो चाहते हैं कि आप लोगों के कारोबार पर चर्चा हो.

सिडला : इसीलिए तो आप सबको बुलाया है. आप लोगों की काबिलियत यही है कि आप लोगों का ध्यान दूसरी तरफ कर दें. नकली मुद्दे खड़े कर उस पर नकली चर्चा चलाएं. राजनीतिक पार्टियों से बात हो चुकी है. वे लोग आए दिन अपनी हरकतों से आपको नए-नए मुद्दे मुहैया कराते रहेंगे.

नया उजाला का संपादक : नकली मुद्दे ? सर क्या आप उदाहरण देकर बात साफ करेंगे .

मम्बानी : अरे ! मान लीजिये पंजा पार्टी के एक नेता को देख कर कमल पार्टी के एक कार्यकर्ता ने ठहाका लगा दिया. आप लोग इस पर बहस चलाइए कि किसी को देखकर ठहाका लगाना उसका अपमान करना है या नहीं ? इस पर खूब ठोक ठाक के अपनी दलील पेश करने वालों को बुलाइए. इसी तरह कई मुद्दे चला सकते हैं या नहीं ?

सब एक साथ : समझ गए सर .

माटा : तब फ़ौरन शुरू हो जाइये . ध्यान रहे बहस में हम और हमारे कारोबार नहीं आने पायें .

मीटिंग समाप्त हो जाती है. कुछ दिन बाद.

एच टीवी एंकर : हाँ ! तो आज का विषय है कि किसी को कबूतर या लंगूर कहना उसका अपमान है या नहीं. पंजा पार्टी के नेता को कमल पार्टी के नेता द्वारा कबूतर कहा गया और पंजा पार्टी के एक कार्यकर्ता ने कमल पार्टी के नेता को लंगूर कहा.  तो क्या दोनों ने एक दूसरे का अपमान किया या नहीं. हमारे साथ पंजा पार्टी के प्रवक्ता, कमल पार्टी के प्रवक्ता, साइकिल पार्टी के प्रवक्ता और हाथी पार्टी के प्रवक्ता मौजूद हैं. सबसे पहले कमल पार्टी के प्रवक्ता से हम पूछते हैं कि क्या आपके कार्यकर्ता ने पंजा पार्टी के नेता को कबूतर कह करउसका अपमान किया है या नहीं .

कमल पार्टी का प्रवक्ता : देखिए.  वर्षों से कबूतर संदेश ले जाने का काम करते रहे हैं. यह पक्षी हमारा पुराना डाकिया यानी पोस्टमैन है. क्या चिट्ठी ले जाना कोई अपमानजनक काम है जो पंजा पार्टी को बुरा लगा ?  दरअसल ये लोग आम डाकिए को कुछ समझते ही नहीं है हैं.

एंकर : पंजा पार्टी के प्रवक्ता कुछ कहना चाहेंगे ?

पंजा पार्टी का प्रवक्ता : देखिए. एक तो इन्होंने उल्टा-सीधा बयान दिया फिर उसके बचाव में उल्टी-सीधी दलील दे रहे हैं. क्या खाली चिट्ठी पहुंचाने से डाकिया कबूतर हो जाता है ? अपमान तो सारे डाक विभाग का अभी-अभी इन्होंने किया है.

कमल पार्टी का प्रवक्ता : देखिए आप गलत बोल रहे हैं .

पंजा पार्टी का प्रवक्ता : नहीं ! आप गलत बोल रहे हैं .

दोनों में तू-तू मैं-मैं होने लगती है

एंकर :  रुकिए . यहां लेते हैं छोटा सा ब्रेक. ब्रेक के बाद जल्दी लौटेंगे.

टीवी स्क्रीन पर विज्ञापन आने लगते हैं-मेरे साबुन में नींबू , अदरक, चीनी, प्याज, आचार है.  मुंह में भी चला जाए तो मजा आ जाएगा. नहाने का नहाना, त्वचा की सफाई और मुंह में स्वाद भी. थ्री इन वन.  मेरी बाइक पेट्रोल सूंघकर उड़ जाती है.

विज्ञापन के बाद एंकर : हां . तो बहस ‘ कबूतर ‘ कहने पर चल रही थी. हम इसके साथ ‘ लंगूर ‘ को भी जोड़ लेते हैं. क्या किसी को लंगूर कहना उसका अपमान है ?

पंजा पार्टी का प्रवक्ता : देखिए. यहां मैं यह कहना चाहता हूं कि लंगूर बहुत तेजी से एक पेड़ से दूसरे पेड़ तक छलांग लगाता है. वह जमीन पर भी तेज दौड़ता है. इतने फुर्तीले पशु से तुलना में अपमान कहाँ है ?

कमल पार्टी का प्रवक्ता : देखिये. यहां आप रंग बदल रहे हैं. कोई कबूतर बोले तो अपमान मगर लंगूर बोले तो अपमान नहीं . यह कैसी बात है ?

साइकिल पार्टी का प्रवक्ता : अब तक मैं सबकी बात सुन रहा था. मैं तो कहूंगा कि इनके नेता लंगूर और कबूतर जैसी खासियत भी नहीं रखते हैं. अपमान तो लंगूर और कबूतर का हुआ है.

कमल और पंजा पार्टी प्रवक्ता : अरे-अरे. आप तो हम सबका अपमान कर रहे हैं.

हाथी पार्टी का प्रवक्ता : मुझे भी कुछ कहना कुछ कहना है. असली बात तो यह है कि इन सबकी आदत ही अपमान करने की रही है. सैकड़ों वर्षो से करते आ रहे हैं.

एंकर  : इस बहस को यहीं समाप्त करते हैं. आप सबका शुक्रिया.