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शिक्षा मित्र, अनुदेशक और शिक्षा प्रेरक बोले-केन्द्र और प्रदेश सरकार ने हमें छला

गोरखपुर। प्राथमिक विद्यालयों में पढ़ाने वाले 1,37,000 शिक्षा मित्र, जूनियर हाईस्कूल में शारीरिक शिक्षा, कला विषय का अध्यापन करने वाले 40,000 अनुदेशक और गांवों में साक्षरता मिशन का अलख जगाने वाले सवा लाख शिक्षा प्रेरक केन्द्र व प्रदेश सरकार से बहुत नाराज हैं। उनका कहना है कि उनके साथ मोदी-योगी सरकार ने छलावा किया है। उनकी मांगों को अनसुना किया और आंदोलन करने पर लाठियां बरसाईं। अब वे चुनाव में मतदान के जरिए अपने आक्रोश का प्रदर्शन करेंगे।

चलचित्र अभियान और गोरखपुर न्यूज लाइन ने एक मई को प्रेमचंद पार्क में शिक्षा मित्रों, अनुदेशकों और शिक्षा प्ररेकों से बातचीत की जिसे आप इस लिंक पर जाकर देख सकते हैं।

https://www.youtube.com/watch?v=765K7pcgnhk

समायोजन रद होने के बाद 1200 शिक्षा मित्रों की जान गई

शिक्षा मित्र अशोक चंद्रा, मनोज यादव, संतोष कुमार ने बताया कि 25 जुलाई 2.017 को सुप्रीम कोर्ट से समायोजन रद होने के बाद प्रदेश सरकार ने उनका वेतन 35-40 हजार के बजाय 10 हजार रूपए में फिक्स कर दिया। यह मानदेय भी उन्हें समय से नहीं मिल रहा है। अपने साथ हुए इस हादसे से सदमे और आत्महत्या से 1200 शिक्षा मि़त्रों या उनके परिजनों की मौत हो चुकी है। गोरखपुर जनपद में 11 शिक्षा मित्रों की मौत हो चुकी है।

शिक्षा मि़त्रों ने बताया कि 2014 के चुनाव में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि शिक्षा मि़त्रों की समस्याएं उनकी समस्याएं है। सत्ता में आने पर उनकी समस्याएं हल की जाएंगी लेकिन जब उनका समायोजन रद हुआ तो केन्द्र व प्रदेश सरकार ने उनकी कोई मदद नहीं की। उल्टे उनका मानदेय 10 हजार रूपया फिक्स कर दिया। यह मानदेय भी उन्हें समय से नहीं मिलता।

एक महिला शिक्षा मित्र ने कहा कि वह 18 वर्ष से प्राईमरी स्कूल में पढ़ा रही हैं। जब उनकी नियुक्ति हुई तक उन्हें 2250 रूपया मानदेय मिलता था। सहायक अध्यापक पद पर समायोजन होने पर उन्हें 40 हजार रूपए मिलने लगा। तब लगा कि जिंदगी पटरी पर आ गई लेकिन समयोजन रद होते ही सरकार ने उनका मानदेय 10 हजार रूपए कर दिया। आप बताईए कि इतने कम पैसे में हम कैसे गुजारा करें। उन्हेंने कहा कि जब हमसे पढ़ाने का काम लिया जात है तो हम योग्य हैं लेकिन जब सम्मानजनक वेतन देने की बात आती है तो हम अयोग्य हो जाते हैं ?

शिक्षा मित्रों ने कहा कि हमें शिक्षकों की नियुक्ति में वरीयता देने की बात की गई थी लेकिन जब 68500 और 69000 शिक्षकों की नियुक्ति का समय आया तो बार-बार कट आफ मेरिट में बदलाव कर एक षडयंत्र के तहत उन्हें बाहर कर दिया गया।

नौकरी भी खत्म की और 50 महीने का मानदेय भी नहीं दिया

वर्ष 2010-11 में साक्षर भारत मिशन के तहत प्रदेश में सवा लाख शिक्षा प्रेरकों की नियुक्ति हुई। इनको गांवों में 15 वर्ष से उपर निरक्षर व्यक्तियों को साक्षर बनाने की जिम्मेदारी दी गई। आठ वर्ष तक यह योजना चली लेकिन अचानक 31 मार्च 2018 को इन सभी प्रेरकों की संविदा खत्म कर दी गई।

शिक्षा प्रेरक मनोज कुमार ने बताया कि उन्हें सिर्फ दो हजार रूपए मानदेय मिलता था। यह बहुत कम था फिर भी वे कार्य कर रहे थे लेकिन अब तो उनकी नौकरी ही खत्म कर दी गई। उन्हें कहीं दूसरे जगह समायोजित भी नहीं किया गया। यही नहीं पिछले 50 महीने का मानदेय भी बकाया है। उन्होंने कहा कि जब उन्होंने अपनी मांगों को लेकर विधानसभा के सामने प्रदर्शन किया तो उनके उपर बेरहमी से लाठीचार्ज किया गया।

क्या सीएम, पीएम, सांसद, विधायक 8770 रूपए मानदेय में काम करेंगे ?

एक जुलाई 2013 को प्रदेश के 13769 स्कूलों में शारीरिक शिक्षा, कला का अध्यापन करने के लिए 41,307 अनुदेशकों की नियुक्ति की गई। उस समय उन्हें सात हजार रूपए मानदेय दिया जाता था। यह छठवें वेतनमान के अनुसार न्यूनतम मानदेय था।

अनुदेशक बालमुकुंद निषाद ने कहा कि अनुदेशकों की मांग थी कि उनका मानदेय बहुत कम है, उसे बढाया जाए। पिछले वर्ष 27 मार्च 2017 को प्रदेश सरकार ने अनुदेशकों का मानदेय बढ़ाकर 17 हजार करने की घोषणा की लेकिन इस घोषणा पर आज तक अमल नहीं हो पाया है हालांकि लोकसभा चुनाव में इसका ढिंढोरा पीटा जा रहा है। अनुदेशकों ने कहा कि मुख्यमंत्री ने इटावा, भदोही, हाथरस की रैली में कहा कि अनुदेशकों का मानदेय बढ़ा दिया गया है लेकिन उन्हें अभी भी 8770 रूपए ही मिल रहा है।

अनुदेशक संघ के अध्यक्ष विक्रम सिंह ने कहा कि वह मानदेय के मुद्दे पर 39 बार मुख्यमंत्री से मिल चुके हैं। दो बार प्रधानमंत्री को पत्र लिख चुके हैं फिर भी उन्हें बढ़ा मानदेय नहीं दिया जा रहा है। बहुत ही कम मानदेय के कारण अनुदेशक बदतर हालात में जी रहे हैं। अवसाद में 11 अनुदेशकों की मौत हो चुकी है। अभी चार महीने से मानदेय भी नहीं मिला है। मेरा सवाल है कि क्या सीएम, पीएम, सांसद, विधायक 8770 रूपए वेतन में काम करना स्वीकार करेंगे ? यदि वह इतना वेतन ले तो वे भी अपना मानदेय बढ़ाने की मांग नहीं करेंगे लेकिन यदि सांसद, विधायक डेढ़ से तीन लाख वेतन पाएं और तमाम सुविधाएं पाएं तो हमें अपने अधिकार से क्यों वंचित किया जा रहा है।

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