विचार

‘जबरा पे जोर न चले तs निबरा कसर निकारे के हइये हs’

बात धरती पर बढ़ते प्रदूषण को लेकर है। बात देश दुनिया में विलासी जीवन के संशाधनों से गैसीय उत्सर्जन व औद्योगिक कचरे से लेकर किसानों के पराली जलाने की है। बात जबरा से निबरा तक की प्रदूषण के कारकों में भागीदारी की है।

बरसों से जलवायु परिवर्तन की हो-हल्ला में समाधान की तलाश जारी है। देश दुनिया के बड़े-बड़े महानगरों में बड़ी-बड़ी बैठकें और बड़े-बड़े वादे। लेकिन धंधा और सुख-सुविधा की चाहत में बड़े व अमीर देश अपने से छोटे व गरीब देश पर दोष मढ़ भाग निकले। मामला संज्ञान में है पर मरहला भारी है।

देश में विश्वगुरु जैसा हुंकार है। उधर देश की राजधानी का दम फूला जा रहा है। अब हुंकार के प्रसार में यह तो बाधक है ही। वैसे भी यहां तमाम सुख-सुविधा, उद्योग और औद्योगिक घराने तो ईश्वरीय नेमत हैं। सो इनके निमित्त उपजे तमाम कारक तो प्रसाद तुल्य होंगेे ही। ब्रह्मांडगुरु (ट्रंप) ने ताना भी मार दिया कि लास ऐंजिलिस में भारत से गंदगी आ रही है तो विश्वगुरु को अपने मान का ख्याल रखना ही होगा।

समाधान के लिहाज से सबकुछ तो यहां की प्राचीनता में छिपा है। जैसे गाय, गोबर, हवन…। ओह, हवन ही तो पर्यावरण का सुरक्षा कवच था। मतलब पृथ्वी शान्ति: अंतरिक्ष शान्ति: वनस्पतय: शांति: जहां किसानों के घी, तिल, जौ आदि से आहुति होती थी। अब ये पराली क्यों जला रहे हैं ? अपनी प्राचीनता में कार्य-कारण का अद्भुत समाधान। अब ऐसे समाधान हेतु त्वरित राजाज्ञा जारी होना लाज़िमी ही है।

दिवाली से गांव पर ही था। इस बार बारिश के अभाव में धान की फसल काफी कमजोर रही। शायद यज्ञ आहूति के अभाव का ही यह इंद्र कोप था। दिवाली तक धान की फसल कटकर अनाज घर में आ जाते थे। इस बार दिवाली बाद तक फसल खेत में खड़ी थी। वैसे भी फसल काटकर घर की साफ-सफाई वाले त्यौहार पर लोग तेल-घी का दीप जलाना छोड़ ही चुके हैं। चाइनीज झालरों की इस साजिश पर इंद्र कोप जायज भी है।

किसान दैव कोप तो झेल ही रहे थे अब राजकोप भी उन्हीं के हिस्से। पराली पर फरमान देश, प्रदेश से जिला, तहसील, थाना और गांव तक पहुंच ही गया। इधर खेती के सीजन का सबसे जद्दोजहद भरा महीना। यानि, धान की कटाई और रबी की बुआई एक साथ। जहां व्यवस्था को लेकर शारीरक, मानसिक और माली हालत पर युद्ध स्तर की तैयारी। वहीं कंबाइन मशीनों पर तहसीलदार, थाना और ग्राम सचिव स्तर पर नाकेबंदी।

बहरहाल घालमेल, नफा-नुकसान के तालमेल से निबरा किसानों ने भी इस प्रदूषण का समाधान निकाल ही लिया। वैसे पराली पर सक्रियता को लेकर उनके प्रदूषण संबंधी ज्ञान बोध का दायरा भा बढ़ा। गांव में कहते सुना गया- जबरा पे जोर न चले तs निबरा कसर निकारे के हइये हs। हां, लगे हाथ कुछ किसान पराली का लंकादहन कर ही लिए। शायद भक्ति और आस्था की प्रेरणा में बहकर। जब राजा रामलीला पर लहालोट है तब दास भी तो हनुमान लीला कर ही सकता है।

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