वरिष्ठ गजलकार वीरेंद्र हमदम नहीं रहे

गोरखपुर. शहर के वरिष्ठ गजलकार एवं प्रगतिशील लेखक संघ, गोरखपुर के पूर्व अध्यक्ष वीरेन्द्र कुमार ‘हमदम’ का 31 मार्च की रत 10 बजे निधन हो गया. वह 75 वर्ष के थे. वह कई दिन से बीमार थे और बीआरडी मेडिकल कालेज में भर्ती थे. आज सुबह राजघाट में राप्ती नदी के तट पर उनका अंतिम संस्कार हुआ.

लाकडाऊन की वजह से उनके चाहने वाले तमाम साहित्यकार, साहित्य प्रेमी उनकी अंतिम यात्रा में शरीक नहीं हो सके.

वीरेंद्र कुमार हमदम सिंचाई विभाग में अभियंता थे. अत्यंत सरल स्वभाव के हमदम गोरखपुर के साहित्यिक कार्यक्रमों में बड़े उत्साह के साथ शामिल होते थे.

गोरखपुर विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रो. अनिल राय ने कहा कि हजार के आस-पास गजलें लिख चुके हमदम जी के पास अबतक उनका कोई संकलन नहीं है. पूछने पर कहते हैं कि कभी इसके लिए न सोचा , न कोशिश की .यह भी कहते कि सब कुछ जो लिख दिया जाय , वह साहित्य नहीं होता . मैं सुनकर दंग रह जाता था कि जब वह बताते थे कि कहने के लिए जरूर मेरे पास हजार गजलें होंगी, पर चुनूंगा तो पचास भी न निकलेंगी . समझ में नहीं आता कि इस शायर की ऐसी दुर्लभ संजीदगी और ईमानदारी को सलाम करूँ या आज के दौर में अप्रासंगिक होते जा रहे चयन के इस विवेक और संयम- भाव को बेवकूफी कहकर चुप रह जाऊं.

वरिष्ठ कवि प्रमोद कुमार ने बताया कि हमदम जी ग़ज़ल लेखन में छह दशक से सक्रिय थे. उनकी रचनाएँ हिंदी और उर्दू दोनों ही में सराही जाती रही हैं लेकिन अभी तक उनका कोई स्वतंत्र संग्रह  प्रकाशित नही हो सका था. फिर भी उनकी रचनाओं की तथा इस बहाने उनके रचनात्मक व्यक्तित्व की चर्चा स्तरीय पत्रिकाओं , पुस्तकों आदि में प्रमुखता से होती रही है.

उनके निधन पर प्रगतिशील लेखक संघ, जनवादी लेखक संघ, जन संस्कृति मंच आदि ने शोक प्रकट किया है.

हमदम जी के घनिष्ठ मित्र अनिल कुमार श्रीवास्तव ने उनको याद करते हुए उनकी एक गजल को उफेसबुक वाल पर पोस्ट की है.

 

https://www.facebook.com/anil.srivastava.5454/videos/2803746536318049/?t=0