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अनुच्छेद 370 विश्वास का एक पुल था : खैरुल बशर

गोरखपुर के खैरुल बशर जम्मू और श्रीनगर में चलाते हैं ‘द सिविल्स आईएएस एकडेमी ‘

गोरखपुर। लतीफनगर कालोनी पादरी बाजार के रहने वाले खैरुल बशर जम्मू और श्रीनगर में ‘द सिविल्स आईएएस एकडेमी ‘ चलाते हैं. जम्मू से दूरभाष पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर में इस वक्त हालात बेहतर नहीं है। अनिश्चित काल के लिए स्कूल, कॉलेज आदि बंद है। मैं जल्द यहां से निकल रहा हूं। श्रीनगर तो पूरी तरह से बंद है। मेरा पोस्टपेड मोबाइल काम कर रहा है। बाकी लैंडलाइन तक बंद है। श्रीनगर में पोस्टेड मेरे एक छात्र रहे शब्बीर अहमद खान ने बताया कि श्रीनगर पूरी तरह बंद है। लोकल केबल, मोबाइल, लैंडलाइन, इंटरनेट नहीं चल रहा है। धीरे-धीरे कश्मीरियों तक बात पहुंच रही है कि उनके साथ हुआ क्या है। मेरे ख्याल में जो भी हुआ है उसमें संवैधानिक प्रकिया का पालन नहीं किया गया।

श्री बशर ने गोरखपुर से जम्मू-कश्मीर का सफर दस साल पहले शुरु किया। उन्होंने वहां पर 2009 में ‘द सिविल्स आईएएस एकडेमी खोली’। पहली ब्रांच जम्मू में खोली तो दूसरी श्रीनगर के जवाहर कालोनी में 2012 में। उनका दावा है कि तब से लेकर अब तक सैकड़ों कश्मीरियों को जम्मू-कश्मीर प्रशासनिक सेवा में पहुंचाने में उनकी संस्था ने अहम रोल अदा किया। इसमें कश्मीरी पंडित, मुस्लिम, हिन्दू, सिख छात्र शामिल हैं। जम्मू-कश्मीर में क्यों खोली द सिविल्स आईएएस एकेडमी तो उनका जवाब था कि जम्मू-कश्मीर के यूथ को प्रशासनिक सेवाओं में भागीदारी दिला कर देश की मुख्य धारा मे शामिल किया जाए। देश की योजनातर्गत प्रक्रिया मे उनके शामिल होने से भारत की समृद्ध विरासत को उन्हें नजदीक से समझने का मौका मिले। अखिल भारतीय सेवाओं में शामिल होने से भारत के विभिन्न भागों मे उनकी नियुक्ति से सांस्कृतिक आदान-प्रदान हो।

जम्मू से दूरभाष पर बात करते हुए उन्होंने बताया कि उन्हें जम्मू-कश्मीर में कभी नहीं लगा कि वह बाहरी हैं। बल्कि जम्मू-कश्मीर दूसरे प्रदेशों के लोग व्यवसायी वहां होटल चला रहे हैं। पॉवर सेक्टर में निवेश कर रहे हैं। यहां विकास का हर काम हो रहा है। सिक्योरिटी व खुशनुमा माहौल है लेकिन जम्मू-कश्मीर में इस वक्त हालात बेहतर नहीं है।

उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 370 विश्वास का एक पुल था। उस पुल को तोड़ने से पहले कश्मीरियों को विश्वास में लेना चाहिए था। फैसला सही है। हमारे अखंड भारत की परिकल्पना है लेकिन भारत जैसे लोकतांत्रिक देश के लिए यह तरीका मुनासिब नहीं है। अनुच्छेद खत्म होने से कश्मीरियों के विश्वास बहाली में काफी वक्त लगेगा और उनके विश्वास को कायम करना हमारे लिए मुश्किल होगा। कश्मीरी वहां के मुद्दे, व्यक्तिगत पहचान व अलग पहचान के प्रति बहुत गंभीर होते हैं और मुझे लगता है कि वह अपनी पहचान के साथ समझौता नहीं करेंगे। आने वाला वक्त ही बतायेगा कि हालात कैसे होंगे। बेहतर हालात की फिलहाल कोई उम्मीद नहीं है।

श्री बशर ने कहा कि जम्मू-कश्मीर की ज्यादातर अवाम व मेन स्ट्रीम लीडर भारतीय संविधान पर काफी भरोसा करते थे। उन पर इसका काफी गहरा असर पड़ेगा।

मूलत: पैना गांव जिला देवरिया के रहने वाले खैरुल जम्मू में किराये का फ्लैट लेकर रहते हैं। जल्द वह जम्मू से नई दिल्ली पहुंचने वाले हैं उसके बाद गोरखपुर आ जायेंगे।