साहित्य - संस्कृति

हिन्दू- मुस्लिम संस्कृति के सेतु थे फ़िराक़ः विभूति नारायण राय

प्रलेस के जिला सम्मेलन में फ़िराक़ गोरखपुरी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर विमर्श

कार्यकारिणी का आंशिक पुनर्गठनः कलीमुल हक अध्यक्ष और वीरेन्द्र मिश्र दीपक मीडिया सचिव बनाए गए
–आर्य हरीश के तीन काव्य संग्रहों का लोकार्पण भी हुआ

गोरखपुर.  अज़ीम शायर फ़िराक़ गोरखपुरी की पुण्यतिथि पर 25 अगस्त को प्रगतिशील लेखक संघ, गोरखपुर (प्रलेस) के तत्त्वावधान में आयोजित विचार गोष्ठी में समसामयिक संदर्भों में फ़िराक़ के साहित्यिक अवदानों की प्रासंगिकता को काफी शिद्द्त से याद किया गया।

कार्यक्रम शुरु होने से पहले अंबेडकरनगर प्रलेस के महासचिव आर्य हरीश की तीन काव्यकृतियों- ग़ज़ल संग्रह ‘अम्न की ख़ातिर’, गीत संग्रह ‘सपने उधार के’ एवं नयी कविता संग्रह ‘काठ हुई दुनिया’ का लोकार्पण हुआ।

विचार गोष्ठी से पहले (जिला सम्मेलन में) प्रलेस गोरखपुर के महासचिव ने अपने तीन वर्ष के क्रियाकलापों की विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत किया। इसी क्रम में सांगठनिक दायित्वों को और बेहतर ढंग से निभाने के लिए कार्यकारिणी में आंशिक बदलाव करने का प्रस्ताव रखा, जिसे सदस्यों ने करतल ध्वनि से स्वागत करते हुए पास कर दिया। आंशिक बदलाव के रूप में श्री कलीमुल हक संगठन के नये अध्यक्ष एवं वीरेन्द्र मिश्र दीपक सचिव (मीडिया) बनाये गये। आखिर में पर्यवेक्षक डा. रघुवंश मणि त्रिपाठी ने सभी पदाधिकारियों के नामों की घोषणा की, जिस पर साधारण सभा ने ताली बजाकर अपनी मुहर लगा दी।

आंशिक पुनर्गठन के बाद प्रलेस जिला इकाई के जो पदाधिकारी घोषित हुए उनमें सर्वश्री कलीमुल हक- अध्यक्ष, श्रीमती अंजू शर्मा उपाध्यक्ष, भरत शर्मा महासचिव, धर्मेन्द्र त्रिपाठी, अजीत सिंह एवं रवीन्द्र मोहन त्रिपाठी सचिव तथा वीरेन्द्र मिश्र दीपक सचिव (मीडिया) हैं।

फ़िराक़ पर आयोजित विमर्श में मुख्य अतिथि सुप्रसिद्ध साहित्यकार एवं महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय वर्धा के पूर्व कुलपति विभूति नारायण राय ने कहा कि फ़िराक़ हिन्दू- मुस्लिम संस्कृतियों के सेतु थे। उन्होंने अपनी लेखनी से गंगा-जमुनी तहजीब की जो विरासत सौंपी, उस पर देशवासियों को नाज़ है। गोरखपुर विश्वविद्यालय हिन्दी विभाग के अध्यक्ष प्रो. अनिल राय ने कहा कि जनसंस्कृति के ऊपर धनसंस्कृति के निरंतर बढ़ रहे भयावह खतरों के मद्देनज़र लेखकों की जिम्मेदारी ज्यादा बढ़ गयी है। लेखकों, कवियों एवं कलाकारों को ही आगे आकर लड़ाई लड़नी होगी। फ़िराक़ के लेखन में उनके समय के खिलाफ जो प्रतिरोध दिखाई देता है, वह आज के लेखकों को राह दिखाने के काबिल है।

डा. रघुवंश मणि त्रिपाठी ने आज के दौर में फ़िराक़ की प्रासंगिकता को रेखांकित करते हुए उपस्थित लेखकों/ रचनाकारों से फ़िराक़ को खूब पढ़ने और समझने का आग्रह किया। फ़िराक़ एकेडमी के संस्थापक अनिल कुमार श्रीवास्तव के उद्बोधन में इस अज़ीम शायर की विरासत को संजोने की छटपटाहट दिखी। विचार गोष्ठी के अध्यक्ष डा. रवीन्द्र श्रीवास्तव ‘जुगानी’ ने फ़िराक़ के व्यक्तित्व के अनछुए पहलुओं पर प्रकाश डाला।

आयोजन के तीसरे सत्र में हुई काव्य गोष्ठी में वीरेन्द्र हमदम, सच्चिदानंद पांडेय, चन्द्रेश्वर परवाना, प्रमोद कुमार, वेद प्रकाश, आर्य हरीश कोशलपुरी, वीरेन्द्र मिश्र दीपक, आसिफ सईद धर्मेन्द्र त्रिपाठी, खुर्शीद आलम कुरैशी, बहार गोरखपुरी, नंद कुमार त्रिपाठी, विनोद निर्भय, प्रतिभा गुप्ता, धर्मेन्द्र श्रीवास्तव समेत कई अन्य रचनाकारों ने अपनी रचनाओं का पाठ किया।

कार्यक्रम का संचालन वरिष्ठ साहित्यकार महेश अश्क ने किया। कार्यक्रम में प्रमुख रूप से जसम के मनोज कुमार सिंह, अशोक चौधरी, आनंद कुमार पाण्डेय, कहानीकार मदन मोहन, केशव पाठक सृजन, अजीत सिंह, कुमार अभिनीत, श्रीमती हेमलता ओझा, सुजीत सोनू समेत दो दर्जन अन्य लोग उपस्थित थे।

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