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अजय कुमार लल्लू: आंदोलनों में तपे युवा नेता को कांग्रेस की नैया खेने की जिम्मेदारी

गोरखपुर। कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद अजय कुमार लल्लू लगातार सुर्खियों में बने हुए हैं। तमाम बड़े नेताओं को दरकिनार कर अजय कुमार लल्लू को कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष बनाने जाने को राजनीतिक हलके में आश्चर्य से देखा जा रहा है। सवाल पूछा जा रहा है कि आखिर 40 वर्ष के इस नौजवान नेता में क्या खासियत है कि वह यूपी में डूबती जा रही कांग्रेस को उबार लेगा ?

अजय कुमार लल्लू कुशीनगर जिले के तमकुही विधानसभा क्षेत्र के विधायक हैं। इस विधानसभा से वह लगातार दूसरी बार विधायक चुने गए हैं। उनकी पहचान एक संघर्षशील नेता की है। वह सादगी के साथ रहते हैं और आम लोगों से जुड़े रहते हैं।

श्री लल्लू ने अपना राजनीतिक कैरियर छात्र नेता के रूप में शुरू किया। वह सेवरही स्थित किसान डिग्री कालेज के छात्र संघ के महामंत्री और अध्यक्ष रहे। वर्ष 2007 में उन्होने पहली बार सेवरही विधानसभा से निर्दल चुनाव लड़ा लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। इसके बाद वह 2012 में कांग्रेस से तमकुही से चुनाव लड़े और विधायक बने। यह विधानसभा परिसीमन के बाद तमकुही के नाम से हो गई थी। श्री लल्लू 2017 के चुनाव में दुबारा विधायक चुने गए।


वह वैश्य विरादरी से आते है। अत्यन्त साधारण परिवार से आने वाले अजय कुमार लल्लू का दो दशक का राजनीतिक जीवन संघर्षों से भरा रहा है। छात्र राजनीति से लेकर विधानसभा क्षेत्र की राजनीति में वह हमेशा आम लोगों की आवाज बने। बिजली, पानी, नदी कटान, बाढ़, पुलिस उत्पीड़न, गरीबों के भूमि अधिकार को लेकर उन्होंने लम्बा संघर्ष किया। इस संघर्ष के दौरान वह दर्जनों बार जेल गए और पुलिस की लाठी खाई। उनके खिलाफ पुलिस ने अनगिनत मुकदमे दर्ज किए लेकिन वह कभी डिगे नहीं।

कांग्रेस विधानमंडल दल के नेता के रूप में वह विधानसभा में काफी मुखर रहे और योगी सरकार को लगातार घेरने का काम किया। कानून व्यवस्था, बाढ़, गन्ना व आलू किसानों की समस्या, इंसेफेलाइटिस आदि मुद्दों को उन्होंने सदन में उठाया। कांग्रेस का पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभारी रहते हुए उन्होंने सोनभद्र के उभ्भा गांव में आदिवासियों के नरसंहार, सहारनपुर में छात्रा के यौन शोषण के मुद्दे को लेकर हुए आंदोलन का भी उन्होंने नेतृत्व किया।

अजय कुमार लल्लू ने सफल छात्र नेता रहे हैं। वह 20 वर्ष की उम्र में 1998-1999 में किसान डिग्री कालेज सेवरही के महामंत्री बने। अगले ही वर्ष 1999-2000 में वह अध्यक्ष चुने गए। इसी कालेज से उन्होंने राजनीति विज्ञान से एमए किया। छात्र जीवन में ही कई बड़े आंदोलन किये।

वर्ष 2006 की एक घटना से उन्हें काफी शोहरत मिली। वर्ष 2006 में विशुनपुरा के थानेदार रामबली राय ने एक छात्र की बुरी तरह पिटाई कर दी जिससे उसका हाथ टूट गया। लल्लू छात्र की पिटाई के खिलाफ थाने के सामने दो दर्जन युवाओं के साथ धरने पर बैठ गए। इसे थानेदार खफा हो गया और उसने धरने पर लाठी चार्ज करा दिया। लल्लू और उनके एक साथी सुनील को पुलिस ने बुरी तरह पीटा और गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। लल्लू की पिटाई और गिरफ्तारी से दुदही कस्बे में उबाल आ गया। दो दिन तक दुदही कस्बा बंद रहा।

जेल से छूटने के बाद लल्लू लखनऊ डीजीपी कार्यालय के सामने धरने पर बैठ गए। आखिरकार थानेदार रामबली राय निलम्बित हुए और उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई।

उन्होंने दूसरा बड़ा आंदोलन खैरहवाँ गांव को राजस्व गांव का दर्जा दिलाने और वहां के बाशिंदों को भूमि का हक दिलाने के लिए किया। इस गांव के लोगों ने आजादी के आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया था। नाराज अंग्रेजी हुकूमत ने गांव में आग लगा दिया था। आजादी का काफी वर्षों बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इस गांव के पांच स्वततंत्रा संग्राम सेनानियों को दिल्ली बुलाकर सम्मानित किया।

वर्ष 2014 में वन विभाग ने गांव वालों को जंगल की जमीन पर बसे होने का आरोप लगाते हुए उन्हें गांव खाली करने का आदेश दिया। परेशान गांव वालों की मदद के लिए लल्लू खड़े हुए और ग्रामीणों को संगठित कर खैरहवाँ से जिला मुख्यालय पडरौना तक पैदल मार्च किया। तत्कालीन डीएम लल्लू और गांव वालों के संघर्ष से बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने खैरहवाँ गांव को राजस्व गांव घोषित किया और वहाँ के सभी वाशिंदों को उनकी जमीन का मालिकाना हक दिया।

लल्लू की जिंदगी में एक ऐसा वक्त भी आया जब उन्हें दिल्ली जाकर मजदूरी करनी पड़ी। लल्लू बहुत गरीब परिवार के हैं। उनके दो भाई दिल्ली में प्राइवेट नौकरी करते हैं। एक भाई देवरिया जिले में नमक बेचने का काम करते हैं। लल्लू पर भी दबाव था कि वह कोई छोटा-मोटा रोजगार करें या दिल्ली जाकर कोई नौकरी ढूढें। छात्र राजनीति में आंदोलनों के दौरान उन पर आधा दर्जन से अधिक केस दर्ज हो गए थे। घर वाले परेशान थे और चाहते थे कि वह सेवरही छोड़ दें। ये वर्ष 2007 की बात है। लल्लू दिल्ली चले गए और वहां मजदूरी करने लगे लेकिन वह ज्यादा दिन तक टिक नहीं सके। इधर तमकुही क्षेत्र से लोग उनको बराबर फोन कर जान समस्याओं के बारे में बताते और आंदोलन के लिए वापस आने का दबाव बनाते। आखिरकार लल्लू लौट आये।

उसी वक्त जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय एनएपीएम का राष्ट्रीय सम्मेलन कुशीनगर जिले के सिसवा महंथ गांव में आयोजित हुआ था। मेधा पाटेकर से लेकर देश के बड़े सामाजिक कार्यकर्ता आये हुए थे। सम्मेलन का आयोजक मैत्रेय परियोजना से प्रभावित किसानों के संगठन भूमि बचाओ संषर्ष समिति थी। लल्लू सम्मेलन में काफी सक्रिय रहे। सम्मेलन में ही उन्होंने कुशीनगर की राजनीति में पूरे दमखम से सक्रिय होने का निर्णय लिया। साथियों से बातचीत में निर्णय हुआ कि लल्लू सेवरही विधानसभा (अब तमकुही) से विधान सभा का चुनाव लड़े। लल्लू निर्दल चुनाव लड़ गए। उन्हें 2891 वोट मिले।

चुनाव में हार के बावजूद वह जन समस्याओं के लिए लड़ते रहे। उन्होंने पी वी राजगोपाल के संगठन राष्ट्रीय एकता परिषद से भी जुड़ कर कार्य किया। उन्होंने गरीबों, भूमिहीनों के भूमि अधिकार के लिए कई आंदोलन किये। भुखमरी से जूझ रहे मुसहरों की आवाज बुलंद करने के लिए भी आंदोलन किया।

वर्ष 2012 की विधानसभा चुनाव के पहले वह कांग्रेस में शामिल हो गए। सेवरही विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस काफी कमजोर स्थिति में थी। कांग्रेस ने उन्हें टिकट दे दिया। सेवरही में भाजपा के नंदकिशोर मिश्र और सपा के डॉ पीके राय की मजबूत पकड़ थी इसके बावजूद लल्लू सबको पछाड़ते हुए चुनाव जीत गए। उनकी जीत में युवाओं की बड़ी भूमिका थी। युवाओं ने उन्हें हाथों हाथ लिया और सभी जातीय समीकरण ध्वस्त कर दिया। विधायक रहते हुए भी वह न सिर्फ अपने विधानसभा में बल्कि कुशीनगर जिले में आंदोलनों की अग्रिम पंक्ति में रहे।

वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की आंधी भी लल्लू को डिगा नहीं सकी। इस बार उन्हें और अधिक मत ही नहीं मिले बल्कि जीत का अंतर भी बढ़ा। कुशीनगर जिले की छह सीटों में वह अकेले गैर भाजपाई विधायक बने।

लल्लू की खासियत आम लोगों में पूरी तरह घुल मिल जाने की है। वह अपने क्षेत्र के लोगों के सुख दुःख में हरदम साथ रहते हैं। उन्हें गरीब लोगों के आयोजनों में खाना परोसते और पत्तल उठाते हुए अक्सर देखा जाता है। लोग उन्हें जब चाहे फोन कर लेते हैं और बुला लेते हैं।

दो वर्ष पहले एक बड़े नाव से आ रहे लोग नारायणी नदी में फंस गए। नाव में लगे जनरेटर में डीजल खत्म हो गया था। बीच नदी में नाव रुक गई थी। रात का वक्त था। किसी ने लल्लू को फोन कर दिया। वह रात में ही डीजल लेकर नदी घाट पर पहुंच गए। वह एक छोटी नाव से डीजल लेकर बीच नदी में पहुंचे और सभी को सुरक्षित वापस ले आये।

लल्लू के विधानसभा क्षेत्र के सैकड़ों गांव नारायणी नदी के किनारे हैं। बाढ़ से बचाने के लिए ए पी तटबन्ध, अमवा खास तटबन्ध बनाया गया है। हाल के वर्षों में नदी कटान करते हुए तटबन्ध के पास आ गयी है। सरकार ग्रमीणों की मांग के बावजूद तटबन्ध को मजबूत करने के लिए ठोस काम नहीं कर रही है। उल्टे योगी सरकार ने वर्ष 2018 में एपी तटबन्ध के पास बालू खनन के चार पट्टे दे दिए। बाढ़ खंड के अधिशासी अभियंता ने भी बालू खनन के पट्टे देने का विरोध किया और सरकार को रिपोर्ट दी कि यदि बालू खनन हुआ तो तटबन्ध को हम बचा नहीं पाएंगे। अपने ही इंजीनियरों की रिपोर्ट को दर किनार कर प्रशासन ने फरवरी महीने में बालू खनन शुरू करा दिया।

लल्लू ने स्थानीय लोगों की मदद से बालू खनन को रुकवा दिया और तटबंध पर ही धरने पर बैठ गए। उनकी मांग थी कि बालू खनन का पट्टा रद किया जाय और तटबन्ध को मजबूत किया जाय और नदी कटान से प्रभावित परिवरों को पुनर्वासित कर मुआवजा दिया जाय। यह आंदोलन दो महीने से अधिक समय तक चला। इस दौरान उन्हें ठेकेदारों द्वारा प्रलोभन व धमकी भी दी गई लेकिन उन्हें न तो खरीदा जा सका न डराया जा सका। आखिरकार दमन के जरिये आंदोलन को कुचलने की कोशिश हुई। धरने के 64वें दिन 6 अप्रैल 2018 को भारी पुलिस बल लगाकर लल्लू और उनके एक दर्जन साथियों को गिरफ्तार कर लिया गया। कई गंभीर आरोपों में केस दर्ज कर लिए गया।

लल्लू की गिरफ्तारी के बावजूद आंदोलन नहीं रुका। अपने विधायक के जेल जाने के बाद ग्रामीणों ने आंदोलन जारी रखा। छह दिन बाद जेल से छूटने के बाद लल्लू फिर धरने पर बैठ गए। परिणाम यह हुआ कि पट्टे के बावजूद दो वर्ष तक सरकार नारायणी नदी से बालू नहीं निकाल पायी।

अजय कुमार लल्लू कुंवारे हैं। घर में सभी छोटे-बड़े भाइयों की शादी हो गई है। माता-पिता ने उन पर शादी के लिए काफी दबाव डाला लेकिन उन्होंने मना कर दिया।

वह पूर्वांचल के उन चंद नेताओं में है जो योगी आदित्यनाथ के राजनीतिक दबदबे के बीच उभरे हैं और उन्होंने अपनी पहचान बनाई है। पूर्वांचल की राजनीति में योगी आदित्यनाथ के उभार के बाद कई ताकतवर नेताओं की राजनीति धूमिल हुई है वहीं उनके बढ़ते कद के चलते न तो भाजपा में न विपक्ष में कोई नेता उभर सका है। विपक्ष की राजनीति करते हुए लल्लू ने आंदोलन की राजनीति से अपनी पहचान व कद बनाया है। देखना है कि वह अपनी संघर्ष की राजनीति के बदौलत कांग्रेस को यूपी में कितनी संजीवनी दे पाते हैं।

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