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बीआरडी मेडिकल कालेज प्रशासन-बच्चों की मौत में 50 फीसदी कमी लेकिन फीगर नहीं बतायेंगे

गोरखपुर। राजस्थान के कोटा के अस्पताल में एक महीने में 100 से अधिक बच्चों की मौत के बाद गोरखपुर का बीआरडी मेडिकल कालेज भी चर्चा में आ गया है । पूर्व मुष्यमंत्री अखिलेश यादव ने आरोप लगाया है कि बीआरडी मेडिकल कालेज में वर्ष 2019 में एक हजार से अधिक बच्चों की मौत हुई। उन्होंने समय आने पर मृत बच्चों की सूची भी देने की बात कही है। प्रदेश सरकार ने उनके आरोपों का खंडन किया है लेकिन यह नहीं बताया है कि एक वर्ष से कितने बच्चों की मौत हुई है। बीआरडी मेडिकल कालेज के प्रधानाचार्य और बाल रोग विभाग की अध्यक्ष ने भी बच्चों के मौत के आंकड़े बताने से इंकार कर दिया है। बाल रोग विभाग की अध्यक्ष ने कहा है कि बीआरडी में बच्चों की मौत में 50 फीसदी की कमी आई है लेकिन हम फीगर नहीं बताएंगेें।

यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री एवं समाजवादी पार्टी के राष्टीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने 3 दिसम्बर को लखनऊ  में हुई पत्रकार वार्ता में दावा किया कि गोरखपुर में एक वर्ष में एक हजार से अधिक बच्चों की मौत हुई है।  उन्होंने यह भी कहा कि अपने दावे के समर्थन में वह बच्चों की मौत की सूची जारी करेंगे। प्रदेश सरकार की ओर से इस दावे का तुरंत खंडन किया गया। उप मुख्यमंत्री दिनेश शर्मा ने कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री के आरोपों में कोई तथ्य नहीं है। गोरखपुर में इंसेफेलाइटिस खत्म हो गया है।

आरोप-प्रत्यारोप के बीच सचाई यह है कि बीआरडी मेडिकल कालेज में वर्ष 2019 में इंसेफेलाइटिस (जेई/एईएस) के 615 रोगी भर्ती हुए जिसमें 564 बच्चे व 51 वयस्क थे। इनमें 49 बच्चों 14 वयस्कों की मौत हुई है।

इसके अलावा बीआरडी मेडिकल कालेज में एक्यूट फेब्राइल इलनेस (एएफआई ) के 1600 से अधिक मरीज भर्ती हुए। इनमें से कितने की मौत हुई, इसका कोई आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। बीआरडी मेडिकल कालेज प्रशासन पर आरोप है कि उसने इंसेफेलाइटिस रोगियों की संख्या कम करने के लिए ही एक नई श्रेणी एक्यूट फेब्राइल इलनेस (एएफआई ) मेें मरीजों की भर्ती शुरू कर दी है। ऐसा पहली बार हुआ है। गैर आधिकारिक स्रोतों से मिली जानकारी के अनुसार एएफआई श्रेणी में भर्ती अधिकतर मरीजों के लक्षण जेई और एईएस के थे। इसके बावजूद उन्हें एईएस नम्बर आवंटित नहीं किया गया और न ही उनका इलाज जेई/एईएस की गाइड लाइन के मुताबिक हुआ। इस आरोप को इसलिए बल मिल रहा है क्योंकि एएफआई के 1800 केस में 300 जेई पाजिटिव पाए गए हैं।

इस बारे में गोरखपुर न्यूज लाइन ने एक विस्तृत 9  नवम्बर 2019 को प्रकाशित की थी जिसे इस  लिंक पर पढ़ा जा सकता है।

 

http://gorakhpurnewsline.com/did-brd-medical-college-hide-the-actual-number-of-encephalitis-patients/

बीआरडी मेडिकल कालेज में बच्चों की भर्ती व मृत्यु के विवरण तीन श्रेणियों में रखे जाते हैं। नवजात शिशुओं की भर्ती व मृत्यु का विवरण एनआईसीयू में दर्ज किया जाता है तो पीआईसीयू में इंसेफेलाइटिस व अन्य बीमारियों के कारण भर्ती हुए बच्चों का विवरण तैयार किया जाता है। पीआईसीयू में इंसेफेलाइटिस से बीमार बच्चों का विवरण अलग से तैयार किया जाता है।

इंसेफेलाइटिस से 49 बच्चों की मौत की जानकारी को मिल गई है लेकिन पीआईसीयू और एनआईसीयू में बच्चों की मौत की आधिकारिक जानकारी नहीं मिल सकी है लेकिर बीआरडी मेडिकल कालेज के सूत्र बता रहे हैं यहां की भी कहानी राजस्थान के कोटा, गुजरात के राजकोट और झारखंड के रिम्स की तरह ही है। फर्क इतना है कि इन अस्पतालों में बच्चों की मृत्यु के विवरण सरकार और अस्पताल दे रहे हैं जबकि यूपी सरकार और बीआरडी प्रशासन ये जानकारी देने को तैयार नहीं है।

बीआरडी मेडिकल कालेज एनआईसीयू और पीआईसीयू में भर्ती हुए बच्चों व इलाज के दौरान मृत बच्चों की जानकारी देने से मना कर रहा है। गोरखपुर न्यूज लाइन ने जब इस बावत बीआरडी मेडिकल कालेज के प्रधानाचार्य प्रो गणेश कुमार से पूछा तो उन्होंने सिर्फ यही कहा कि ‘ उन्हीं से पूछिए जिन्होंने बच्चों की मौत की संख्या बतायी है। मेरे पास ऐसी कोई फीगर नहीं है। मुझे ये आंकड़े याद भी नहीं हैं। ’

यही सवाल बीआरडी मेडिकल कालेज के बाल रोग विभाग की अध्यक्ष प्रो अनीता मेहता से पूछा गया तो उनका जवाब था कि कोटा में बच्चों की मौत की घटना के कारण बीआरडी के बारे में पूछा जा रहा है। शासन को विवरण भेज दिया गया है। हम आपको इसका विवरण नहीं बता सकते क्योंकि सरकार से इसके लिए साफ-साफ आदेश हैं। यह जरूर है कि बच्चों की मौत में बहुत-बहुत कमी आई है। एनआईसीयू और पीआईसीयू में बच्चों की मौत में 40 से 50 फीसदी की कमी आई है लेकिन संख्या नहीं बता सकती। ’

आक्सीजन कांड के बाद बच्चों की मौत के बारे में नहीं दी जा रही आधिकारिक जानकारी

बीआरडी मेडिकल कालेज इंसेफेलाइटिस जेई/एईएस से बच्चों की मौत के साथ-साथ बड़ी संख्या में नवजात शिशुओं की मौत की वजह से चर्चा मंे आता रहा है। वर्ष 2017 के 10 अगस्त को आक्सीजन की कमी से 48 घंटे में 34 बच्चों की मौत के बाद यह मेडिकल कालेज अन्तर्राष्टीय सुर्खियों में रहा और इस घटना के कारण प्रदेश सरकार की बहुत फजीहत हुई।

आक्सीजन कांड के बाद यह तथ्य सामने आए थे कि बीआरडी मेडिकल कालेज में पर्याप्त बेड, वेंटीलेटर व अन्य उपकरणों की कमी थी। लिक्विड आक्सीजन की आपूर्ति का समय से भुगतान नहीं होता था। इंसेफेलाइटिस वार्ड सहित बाल रोग विभाग में संविदा पर कार्यरत चिकित्सकों, कर्मचारियों, नर्सों को समय से वेतन नहीं मिलता था।

इस घटना के बाद प्रदेश सरकार ने बीआरडी मेडिकल कालेज के बाल रोग विभाग में संसाधान बढ़ाए। बाल रोग विभाग में 100 बेड के इंसेफेलाइटिस वार्ड के अलावा 100 बेड और बढ़ाए गए। वेंटीलेटर की भी संख्या बढायी गयी। वर्तमान समय में पीआईसीयू (पीडियाट्रिक इंटेसिव केयर यूनिट ) में 48 वेंटीलेटर सहित 54 बेड और एनआईसीयू (नियोनेटल इंटेंसिव केयर यूनिट ) में 30 वेंटीलेटर सहित 80 बेड उपलब्ध हैं।

बाल रोग विभाग में सुविधाएं तो बढायीं गयीं लेकिन इंसेफेलाइटिस व अन्य रोगों से बच्चों व शिशुओं की होने वाली मौतों के बारे में जानकारी देने वाली बुलेटिन बंद कर दी गई। आक्सीजन कांड के बाद बीआरडी मेडिकल कालेज प्रशासन द्वारा यह कहा गया कि मौतों के आंकड़ों को मीडिया बढ़ा-चढ़ा कर प्रस्तुत करता है, इसलिए अब यह जानकारी जिला सूचना कार्यालय से जारी की जाएगी। जिला सूचना कार्यालय अगस्त से अक्टूबर 2017 तक इंसेफेलाइटिस से बच्चों की मौत की जानकारी मीडिया को देता रहा लेकिन इसके बाद उसने भी सूचना देनी बंद कर दी। कारण पूछने पर यही बताया गया कि ऐसा उनसे कहा गया है।

यही नहीं मीडिया को सूचना देने के आरोप में कुछ कर्मचारियों का तबादला भी कर दिया गया और दूसरे कर्मचारियों, चिकित्सकों को हिदायत दी गई कि वे मीडिया से कोई जानकारी साझा नहीं करें ।

अक्टूबर 2017 के बाद से बीआरडी मेडिकल कालेज, जिला प्रशासन या स्वास्थ्य विभाग इंसेफेलाइटिस व अन्य रोगो से बच्चों की मौत की आधिकारिक सूचना मीडिया को नहीं देता हैं । पूछने पर गोल-मोल जवाब दिया जाता है या फोन काट दिया जाता है। कभी-कभी उपर के आदेश से सूचना देने की मनाही की बात कही जाती है। इस बीच प्रदेश सरकार, स्वास्थ्य विभाग, बीआरडी मेडिकल कालेज द्वारा कई बार दावा किया गया कि इंसेफेलाइटिस से बच्चों की मौत में भारी कमी आ गई है और एक तरह से यह खत्म हो गया है। यह दावा करते समय कभी भी विगत वर्षों व वर्तमान वर्ष के आंकड़े नहीं दिए गए। यही कारण है कि बीआरडी मेडिकल कालेज व अन्य अस्पतालों में इंसेफेलाइटिस व अन्य रोगों स बच्चों की मौत के आंकड़े सूत्रों के जरिए मीडिया में आए हैं और बीआरडी कालेज की ओर से इसकी कोई पुष्टि या खंडन नहीं किया गया है।

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