पत्नी और दो बच्चों संग मोपेड से दिल्ली से चले सिद्धार्थनगर के कामगार की रास्ते में मौत

गोरखपुर/सिद्धार्थनगर। दिल्ली से पत्नी और दो बच्चों संग मोपेड से चले सिद्धार्थनगर के कामगार की रस्ते में हाथरस के पास सिकन्दराऊ में मौत हो गयी. यह युवक दिल्ली में सेल्स मैं का काम करता था. वह मुख के कैंसर से पीड़ित था. विनोद तिवारी नाम के 30 वर्षीय इस युवक का शव आज बंसी के बड़हरा गांव पहुंचा। आज जब उसकी अर्थी उठी तो परिवारीजनों के चीत्कार से लोगों के कलेजे कांप गए। विनोद के मासूम बच्चे अपने बाबा से पूछ रहे थे मेरे पापा कहां गए ? बच्चों के सवालों का जवाब बाबा तो नहीं दे सके पर उनकी आंखों से आंसुओं का सैलाब जरूर उमड़ पड़ा। वहां मौजूद लोगों के लिए भी यह मंजर झकझोर देने वाला था।

सिद्धार्थनगर जिले के बांसी क्षेत्र के बडहरा गांव निवासी विनोद तिवारी (30) पुत्र राममिलन तिवारी दिल्ली के नवीन बिहार कॉलोनी में किराए पर कमरा लेकर रहते थे. उनके साथ पत्नी सविता (28 ), पुत्र विवेक (10), विराट (5) व दो छोटे भाई गोलू तिवारी व संदीप तिवारी भी रहते थे. विनोद के माता-पिता व बड़े भाई कामता तिवारी गांव पर रहते हैं। मुँह के कैंसर से पीड़ित विनोद दिल्ली में कई साल से सेल्समैन का काम करता था। देश में लॉकडाउन के बाद काम धंधा बंद हुआ और जब भूख व दुश्वारियों से परिवारीजनों की जान पर बन आई तो वह पत्नी व बच्चों के साथ शुक्रवार रात मोपेड से दिल्ली से बांसी के लिए चल दिया। एक दुसरे मोपेड में उसके दोनों भाई भी थे. शनिवार दोपहर लगभग साढ़े बारह बजे हाथरस जिले के सिकंदराराऊ पहुंचने के बाद सभी ने वहां चल रहे एक लंगर में खाना खाया। विनोद ने सिर्फ चाय पी। अभी वे लोग आगे बढ़ने की तैयारी कर ही रहे थे कि तभी विनोद अचानक गिर पड़ा।

उसके दोनों भाईयों ने स्थानीय लोगों के मदद से एम्बुलेंस बुलाने की कोशिश की. एम्बुलेंस एक घंटे बाद पहुंचा। तब तक उसकी मौत हो चुकी थी. यह सब कुछ हाईवे पर हुआ और पत्नी सविता और दोनों बच्चों ने अपनी आंखों से मौत का यह मंजर देखा। कोई वाहन न मिलने के कारण चार घंटे तक विनोद का शव सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर पड़ा रहा. पत्नी और भाइयों के पास इतने पैसे भी नहीं थे कि वे कोई वहां कर शव को गांव ला सके. स्थानीय लोगों ने चंदा कर 15 हजार जुटाए और एक पिकप की व्यवस्था की. सभी लोग पिकअप से रातभर सफर कर रविवार सुबह 7.50  बजे विनोद का शव लेकर गांव पहुंचे।

वाहन घर के सामने दरवाजे पर जैसे ही रुका परिवारीजनों में कोहराम मच गया। उनका विलाप सुन सभी हर किसी का कलेजा फट रहा था। परिवारीजन शवयात्रा की तैयारी कर निकल रहे थे। अर्थी उठाकर अभी कंधे पर भी नहीं रखी थी कि विनोद की पत्नी सावित्री पति के शव से लिपटकर दहाड़ें मारकर रोने लगी। उसे रोता देख बुजुर्ग से लेकर बच्चों की भी आंखें बरसने लगीं। सविता की चीत्कार हर किसी का कलेजा चीर रही थी। चाह कर भी उसे न तो कोई दिलासा दे पा रहा था और न अपने आंसू रोक पा रहा था।

करीब नौ बजे अंतिम यात्रा निकली। शवयात्रा में गांव के अंदर तो काफी भीड़ रही पर जैसे ही गांव के बाहर सड़क पर पहुंची, सिर्फ 25 लोग ही साथ दिखाई दिए। लॉकडाउन और प्रशासन की अपील का पालन करते हुए बाकी सारे लोग घरों को वापस हो लिए। अंतिम संस्कार के लिए गांव से शव को कंधे पर रखकर दो किलोमीटर दूर तिलौरा चौराहा तक ले जाया गया। वहां खड़ी ट्रैक्टर-ट्रॉली पर शव रखकर अंतिम संस्कार करने के लिए बांसी के राप्ती नदी तट पर ले जाया गया। करीब 10:30 बजे अंतिम संस्कार किया गया। विनोद के पिता राममिलन तिवारी ने मुखाग्नि दी।