किसान आंदोलन आगे बढ़ते हुए लोक युद्ध में तब्दील होगा : राघवेन्द्र दूबे ‘ भाऊ  ’

‘ किसान आंदोलन और भारतीय मीडिया’  पर सेमिनार और शायर सरवत जमाल के गजल संग्रह ‘ उजाला कहां गया ’ का लोकार्पण

गोरखपुर। विमर्श केंद्रित संस्था ‘आयाम’ के तत्वावधान में आज गोरखपुर जर्नलिस्ट एसोसिएशन(गोजए) के सभागार में दो सत्रों में आयोजित कार्यक्रम में ‘ किसान आंदोलन और भारतीय मीडिया ’ पर सेमिनार और शायर सरवत जमाल के गजल संग्रह ‘ उजाला कहां गया  ’ का लोकार्पण हुआ। ‘ किसान आंदोलन और भारतीय मीडिया ’ पर सेमिनार में वक्ताओं ने किसान आंदोलन के व्यापक चरित्र की विस्तार से चर्चा करते हुए समाज के सभी तबकों से इस आंदोलन से जुड़ने का आह्वान किया।

सरवत जमाल की शायरी झूठ की पहचान कराने वाली शायरी है: प्रो चितरंजन मिश्र

पहले सत्र में शायर सरवत जमाल के गजल संग्रह ‘ उजाला कहां गया ‘ का लोकार्पण गोरखपुर विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो चितरंजन मिश्र, साहित्यकार डॉ वेद प्रकाश पाण्डेय, प्रगतिशील लेखक संघ की गोरखपुर इकाई के अध्यक्ष कलीमुल हक और आयाम के संयोजक वरिष्ठ कवि देवेन्द्र आर्य ने किया।

लोकार्पण कार्यक्रम में कवि श्रीधर मिश्र ने कहा कि शायर सरवत जमाल एक सुपरिचित नाम हैं। उनकी शयरी उजाले के तलाश की शायरी है। जमाल की शायरी हरेक घर के लिए चराग की ख्वाहिश रखने वाली शायरी है। उनकी शायरी का लहजा बतकही का है। वे अपनी शायरी से उर्दू और हिंदी में पुल बनाते हैं। यदि उनके गजलों के मीटर को हटा दिया जाय तो वे मुक्त छ्न्द की कविता हो जाती हैं।

मुख्य वक्ता प्रो चितरंजन मिश्र ने कहा कि सरवत जमाल की शायरी में खेती किसानी, किसानों की आत्महत्या है। वे उसे उजाले को देखते हैं जो हमारे सपनों में है। शायरों-कवियों के सपने में है जिसे कुछ ताकतों ने हमसे छीन लिया है। सरवत जमाल हड़बड़़ी में नहीं हैं बल्कि वे निश्चिंतता से जमीन को पका कर नई फसल उगाते हैं। आज हमारे सब्र को तौला जा रहा है और मुसलसल झूठ बोला जा रहा है। यह झूठ जो मायावी है। सरवत जमाल की शायरी से इस झूठ की पहचान कराती है। उनका कटेंट कसा हुआ है और वहां कोई दुविधा नहीं है। हम ऐसे समय में हैं जो स्वाधीन भारत का सबसे बर्बर समय है। इसमें शासक वर्ग ने अपनी एक नई जनता बना ली है। शायर जो बात कह सकता है, उसे कोई सल्तनत नहीं बोल सकती। आज जब 10 वर्ष के पहले की कोई चीज काम की नहीं रह गई है जेकिन 500 वर्ष पहले की कविता हमारे बहुत काम की है।

साहित्यकार वेद प्रकाश पांडेय ने सरवत जमाल को जहीन शायर बताते हुए कहा कि उन्होंने जमाने की बात कहते हुए आज के समय की क्रूरता और सत्ता के तिलिस्म को अपने शायरी के केन्द्र में रखा है।

कलीमुल हक ने कहा कि सरवत जमाल निर्भीकता से अपनी बात रखते हैं जो बहुत महत्वपूर्ण है।

किसान आंदोलन आगे बढ़ते हुए लोक युद्ध में तब्दील होगा: राघवेन्द्र दूबे ‘ भाऊ  ’

कार्यक्रम के दूसरे सत्र में ” किसान आंदोलन और भारतीय मीडिया ” पर सेमिनार हुआ जिसमें वक्ताओं ने किसान आंदोलन के व्यापक चरित्र की विस्तार से चर्चा करते हुए समाज के सभी तबकों से इस आंदोलन से जुड़ने का आह्वान किया।

सेमिनार के प्रमुख वक्ता वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक राघवेन्द्र दुबे ‘ भाऊ ’ ने कहा कि आज समाज के गरीब, कमजोर वर्ग के उजाले को अपहृत कर लिया है। एक प्रतिशत वर्चस्वशाली लोगों ने हमारे हिस्से के उजाले को कैद कर लिया है।

उन्होंने भारतीय मीडिया के चरित्र का विश्लेषण करते हुए कहा कि आज पत्रकारों को पूंजी के स्रोज की की इज्जत करना सिखाया जाता है। जो इससे इनकार करते हैं उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है। उन्होंने कहा कि भारतीय मीडिया में किसान शुरू से हाशिए पर रहा है। चूंकि मीडिया की समृद्धि कार्पोरेट से आ रही है, इसलिए किसान, मजदूर और वंचित वर्ग के लिए वहां कोई जगह नहीं है। मीडिया का काम शासकों के प्रति शासितों में भरोसा पैदा करने का हो गया है।

किसान आंदोलन की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि आज खुदरा बाजार को दो कार्पोरेट घराने को दिया जा रहा है। खुदरा बाजार में भारतीय पूंजीपतियों के अलावा अंतरराष्टीय पूंजीपति भी घुस रहे हैं। मोदी सरकार आईएमएफ और कार्पोरेट पूंजी के दिखाये रास्ते पर बड़ी तेजी से बढ़ रही है। तीन कृषि कानून लाए जाने के पहले ही अडानी के गोदम बनने शुरू हो गए थे। इन कानूनों के जरिए यह स्थिति पैदा कर दी गई है कि किसान अपनी मर्जी से फसल नहीं उगा सकता है। आज समाज के हर वर्ग को उपभोक्ता बनाने की साजिश रची जा रही है। यदि खुदरा व्यापार में बड़े खिलाड़ी आएंगे तो गोरखपुर के साहबगंज की मंडी नहीं बचेगी।

उन्होंने कहा कि किसान आंदोलन को लेकर वैचरिक शुचिता पर बहस करने की जरूरत नहीं है। इस वक्त आग लगी है। इसलिए किसान आंदोलन के साथ सभी ताकतों को साथ आने की जरूरत हैै। आज वृहत्तर एकता का समय है। किसान केवल अपने लिए नहीं लड़ रहे हैं। वे मजदूरों के लिए, कमजोर, वंचित वर्ग के साथ-साथ मध्य वर्ग के लिए भी लड़ रहे हैं जिनकी खाद्य सुरक्षा इन कृषि कानूनों के चलते खतरे में पड़ गई है। किसान खेती-किसानी, अपनी जमीन बचाने के साथ-साथ पीडीएस सिस्टम को बचाने की भी लड़ाई लड़ रहे हैं जिससे देश के 80 करोड़ लोग जुड़े हुए हैं।

उन्होंने कहा कि किसानों का आंदोलन तीन कृषि कानूनों की वापसी तक सीमित नहीं रहेगा बल्कि यह बाजार अर्थव्यवस्था, पूंजी के वर्चस्व और पूंजीवादी लोकतंत्र के समूल नाश तक आगे बढ़ेगा। किसान आंदोलन आगे बढ़ते हुए लोक युद्ध में तब्दील होगा। आज किसानों के साथ खड़े न होना, अपने साथ खड़ा न होना है।

किसान नेता शिवाजी राय ने कहा कि हाल के वर्षों में 10 लाख हेक्टेयर जमीन कार्पाेरेट को दी गई है। अपने मनमाफिक भूमि अधिग्रहण कानून बनाने में कामयाब नहीं होने पर कार्पोरेट ने गुुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को देश का प्रधानमंत्री बनाने में पूरी ताकत लगा दी और वे इसमें कामयाब रहे। तीन कृषि कानूनों के माध्यम से किसानों की जमीन हड़पने की साजिश रची गयी है। आज प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कार्पोरेट की इच्छानुसार श्रम और कृषि कानूनों में बदलाव ला रहे हैं। उन्होंने कहा कि लड़ाई जटिल हैं और यह लड़ाई किसान-मजदूर की एका से मुकम्मल होगी। किसान आंदोलन में धीरे-धीरे समाज का हर तबका शामिल हो रहा है। यह लड़ाई अब कार्पोरेट की अंध भक्तों को सत्ता से बाहर कर ही सम्पूर्णता प्राप्त करेगा।

वरिष्ठ पत्रकार मनोज कुमार सिंह ने किसान आंदोलन में भारतीय मीडिया भूमिका की चर्चा करते हुए कहा कि मुख्य धारा की मीडिया किसान आदोलन को बदनाम करने, उसमें फूट डालने और उसे तोड़ देने के लिए सत्ता के टूलकिट की तरह काम कर रहा है। मीडिया का यह चरित्र नया नहीं है। इस तरह का काम उसने पहले भी किया है लेकिन अच्छी बात यह है कि जनता मीडिया के इस चरित्र को समझ गई है। मीडिया सत्ता की गोद में केवल खेल ही नहीं रहा है बल्कि अब जनता के खिलाफ लड़ रहा है।

युवा किसान आनंद राय ने किसान आंदोलन में शामिल होने के अपने अनुभव रखते हुए कहा कि किसान आंदोलन ने देश की जनता में अभूतपूर्व चेतना जगाने का काम किया है। हम जैसा भारत बनाने का सपना देखते हैं, वैसा भारत किसान आंदोलन में दिख रहा है जहां युवाओं, महिलाओं की बड़ी भागीदारी हैं और जहां धर्म, सम्प्रदाय, अमीरी-गरीबी की हर खाई मिट गई है। किसान आंदोलन भारत का भविष्य तय कर रहा और यह सुनिश्चित कर रहा है कि अब किसानों की आवाज को कोई दबा नहीं सकता।

किसान आंदोलन में भागीदारी के कारण गिरफतार किए गए सामाजिक कार्यकर्ता चतुरानन ओझा ने कहा कि सत्ता के दमन का डर अब खत्म हो गया है। हर जगह आंदोलन में भागीदारी बढ़ रही है। हमें इस आंदोलन को गांव-गांव तक पहुंचाना होगा। किसान आंदोलन ने इतिहास को करवट बदलने पर मजबूर कर दिया है।

सेमिनार की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ समाजवादी नेता फतेहबहादुर सिंह ने कहा कि किसान आंदोलन से मजदूरों को घनिष्ठ रूप से जुड़ने की जरूरत है क्योंकि उनके अस्तित्व पर भी संकट खड़ा हो गया है। किसान आंदोलन ने देश में एक नई उम्मीद पैदा की है।

सेमिनार के अंत में किसान आंदोलन में शहीद हुए किसानों को दो मिनट मौन रखकर श्रद्धांजलि दी गई।

दोनों सत्रों का संचालन आयाम के संयोजक वरिष्ठ कवि देवेंद्र आर्य ने किया।

कार्यक्रम में देवरिया से आए जर्नादन शाही, किसान व पंचायत आंदोलन से जुड़े ब्रजेन्द्र मणि त्रिपाठी, प्रो अशोक सक्सेना, रेल मजदूर संगठन से जुड़े मनोज मिश्र, जे एन शाह, श्रवण कुमार, अमोल, पत्रकार ओंकार सिंह, संस्कृति कर्मी राजराम चैधरी, अधिवक्ता त्रियुगी नारायण शाही, शिक्षक आनंद पांडेय, अजय सिंह , चक्रपाणि ओझा सहित बड़ी संख्या में लोग मौजूद थे।