‘ श्रीधर मिश्र की कविता प्रकाश के नाम पर फैलाये जा रहे अंधकार को सामने लाने वाली कविता है ’

गोरखपुर। कुशीनारा उच्च अध्ययन संस्थान के तत्वावधान ने आज शाम सेंट एंड्रूज कलेज में आयोजित एक कार्यक्रम में कवि श्रीधर मिश्र के कविता संग्रह ‘ छूट गया हूँ मैं ‘ का विमोचन हुआ। विमोचन वरिष्ठ आलोचक रघुवंश मणि, वरिष्ठ कवि डॉ अनिल सिंह, कवि-आलोचक विशाल श्रीवास्तव और गोरखपुर विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष प्रो अनिल कुमार राय ने किया।

इस मौके पर वक्ताओं का स्वागत करते हुए संस्थान के अध्यक्ष एवं गोरखपुर विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में प्रोफेसर राजेश मल्ल ने कहा कि श्रीधर मिश्र अपनी कविता में टूटते- दरकते समय को मारक तरीके से व्यक्त करते हैं। वे संवेदनशील कवि हैं और उनकी कविताएं हमारे समय की महत्वपूर्ण कविताएं हैं।
शिक्षक अजय सिंह ने श्रीधर मिश्र की ‘ पाकिस्तान की जरूरत’ कविता का उल्लेख करते हुए कहा कि उनकी कविताओं में 1990 के बाद की राजनीतिक आबोहवा दर्ज है।

कवि-आलोचक विशाल श्रीवास्तव ने श्रीधर मिश्र की कई कविताओं का उल्लेख करते हुए कहा कि उनकी कविताओं में मध्यमवर्गीय जीवन जीते हुए कवि की अपनी बात कहने की बेचैनी है। उनकी कविताओं में मध्यमवर्गीय यूटोपिया है, अतीतजीविता है,प्रतिबद्धता है, प्रेम है। उनकी कविताओं में बहुत मार्मिकता से यह दर्ज है कि उसे जहां जहां बोलना था वहां वह चुप रह गया । कवि की बेचैनी बड़े सवाल खड़े करती है। उनकी कविताओं में मध्यमवर्गीय जीवन का सन्त्रास, घुटन सशक्त रूप से अभिव्यक्त हुआ है।

‘ ईश्वर का जन्म ‘ कविता को बहुत अच्छी कविता बताते हुए उन्होंने कहा कि श्रीधर मिश्र में मानवीयता की आस्तिकता है, अपने साथ खड़ा होने का साहस है। उन्हें विश्वास है कि हथियारों के आगे भाषा खड़ी है। उन्हें शब्दों की ताकत में बहुत भरोसा है। वे अपनी छोटी कविताओं में ज्यादा मारक हैं। उनकी कविता के अर्थ संकेत बहुत घने हैं। वे कविता में राजनैतिक प्रतिबद्धताओं को ओझल नहीं होने देते है। भाषा के प्रति उनकी सजगता प्रभावित करती है।

डॉ अनिल कुमार सिंह ने कहा कि परम्परा के प्रति अनभिज्ञता श्रीधर मिश्र की कविता को महत्वपूर्ण बनाती है। उनकी कविता में समकालीन समाज, राजनीतिक समस्याएं बखूबी संबोधित हैं। उनकी चिंता के केंद्र में बाजार है। उनकी कविता में इस बाजार समय में अपने को बचा पाने की जद्दोजहद है। वे लोक प्रचलित मुहावरों का प्रयोग करते हैं। वे अपनी कविताओं में कई तरह की अर्थ व्यंजना करने में सफल हुए हैं। उन्होंने कहा कि बाजार, साम्प्रदायिकता के हमले ने हिंदी कविता को अंतर्मुखी बनाया है लेकिन श्रीधर लाऊड हैं। वे आसपास के परिवेश, समाज, घर-परिवार को देखने की अलग दृष्टि देते हैं जो सकरात्मक है।

वरिष्ठ आलोचक रघुवंश मणि ने कहा कि एक रचनाकार परम्परा से बहुत चीज अर्जित करता है लेकिन परम्परा में बहुत सी ऐसी चीजें भी हैं जो उसकी पैर की जंजीर भी बन जाती हैं। उन्होंने समकालीन कविता में एक ही तरह की कविता की चर्चा करते हुए कहा कि इसको देख कर लगता समकालीन कविता में एक तरह का विराम आ गया है, रुकावट आ गयी है लेकिन परम्परा के साथ साथ कवि का व्यक्तिगत भी महत्वपूर्ण होता जो उसे औरों से अलग करता है। श्रीधर मिश्र की कविता में बहुत कुछ नया है जो हमारे समय के कवियों से उन्हें अलगाता है। उनकी कविताएं हमारे चिंतन पर जमी धूल को हटाती हैं और हमें वहां ले जाती हैं जहां हम सामान्य तौर पर नहीं जाते हैं। उनकी कविता प्रकाश के नाम पर फैलाये जा रहे अंधकार को सामने लाने वाली कविता है। वे सोचने वाले कवि हैं। उनकी कविता संवेदना के रास्ते पर चल कर सच को तलाशती हैं। उनके यहां शब्दों और विम्बों के प्रयोग में नवीनता है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रो अनिल कुमार राय ने कहा कि संस्कृति विरोधी इस समय में यदि कोई रचता हुआ दिखाई दे रहा है तो वह बधाई का पात्र है। बर्बर समय में कविता संवेदना के स्तर पर हमें बहुत अलग स्तर पर प्रभावित करती है। हमारी संवेदना, जीवन, संस्कृति के साथ अविभाज्य रूप से जुड़ी है। कविता हमारी मनुष्यता को बचाने की कोशिश करती है। श्रीधर भाषा और शिल्प में बहुत अनुशासित हैं। गोरखपुर के रचना परिदृश्य की चर्चा करते हुए प्रो राय ने कहा कि श्रीधर जिस फॉर्म में लिख रहे हैं, उसमें कम लोग दिखते हैं । वे समकालीन कविता में प्रयोगशीलता, काव्य प्रतिभा, काव्य विवेक के बड़े परिदृश्य के नागरिक हैं। वे बड़े रचनाकार की संभावना से युक्त हैं। उन्होंने कहा कि श्रीधर मिश्र ने समकालीनता को आच्छादित किये हुए समय के प्रश्नों से अपने को अनुपस्थित नहीं किया है। स्थायी संवेदनाओं का तर्क देकर वे खुरदरे सवालों से भागते नहीं हैं । उनकी कविताओं में विषय, ज्ञान और संवेदना के बीच अपूर्व संतुलन है। वे कवि, आलोचक के साथ साथ शिक्षक राजनीति से लंबे समय से जुड़े हैं और इस दौरान वे वैचारिक विचलन, राजनीति के आकर्षण और प्रलोभनों के दुष्चक्र में नहीं फंसे। यही शक्ति उनके साहित्य में रूपांतरित होते दिखती है। उनमें जन कवि होने का सारा गुणधर्म है।

कार्यक्रम का संचालन कुशीनारा उच्च अध्ययन संस्थान के सचिव डॉ आनंद पाण्डेय ने किया। कार्यक्रम में श्रीधर मिश्र ने कविता संग्रह से कई कविताओं का पाठ किया।

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