एक शिक्षा मित्र का इस्तीफा और कई सवाल

कुशीनगर। शिक्षा मित्रों की समस्याओं का निस्तारण नहीं किए जाने से दुखी होकर शिक्षा मित्र एवं शिक्षा मित्रों के संगठन आदर्श समायोजित शिक्षक / शिक्षा मित्र वेलफेयर एसोसिएशन के जिलाध्यक्ष अखिलेश कुमार चतुर्वेदी ने इस्तीफा दे दिया है। उन्होंने संगठन के प्रांतीय पदाधिकारियों पर शिक्षा मित्रों के हितों के लिए संघर्ष का आरोप लगाते हुए संगठन भी छोड़ दी है। उनके साथ दो और पदाधिकारियों ने भी संगठन में अपने पद से इस्तीफा दे दिया है।

अखिलेश चतुर्वेदी कुशीनगर जिले के विशुनपुरा ब्लाक के प्राथमिक विद्यालय सिराहन चिरईहवा में तैनात थे। वह वर्ष 2001 में शिक्षा मित्र के रूप में चयनित हुए। उन्होंने कसया ब्लाक के सेमरी के प्राथमिक विद्यालय में शिक्षण कार्य शुरू किया। वर्ष 2014 में जब शिक्षा मि़त्रों का सहायक शिक्षक के पद पर समायोजन हुआ तो वे भी सहायक शिक्षक बन गए। उन्हें प्राथमिक विद्यालय सिसाइन चिरइंया में तैनात किया गया। सहायक शिक्षक होने के बाद उनका वेतन 10 हजार से बढ़ कर 36 हजार हो गया था।

सुप्रीम कोर्ट द्वारा शिक्षा मित्रों का सहायक शिक्षक के रूप में समायोजन रद किए जाने पर अखिलेश चतुर्वेदी भी फिर से शिक्षा मित्र बन गए। अब उन्हें 10 हजार रूपए मानदेय मिलने लगा।

प्रदेश सरकार ने बाद में आदेश जारी किया कि शिक्षा मित्रों को उनके मूल विद्यालय पर वापस कर दिया जाय। श्री चतुर्वेदी ने अपने संगठन की ओर से इस आदेश के बाद बेसिक शिक्षा विभाग के अधिकारियों पर दबाव डाला कि इस आदेश पर जल्द से जल्द से अमल हो लेकिन चार वर्ष के अथक प्रयास के बाद वह कुशीनगर जिले के करीब दो हजार शिक्षा मित्रों में से 1800 को ही मूल विद्यालय पर वापसी करा सके। करीब 300 शिक्षक अभी भी दूर-दराज के विद्यालयों में शिक्षण कार्य करने को मजबूर हैं। खुद उनका भी मूल विद्यालय में वापसी नहीं हो पायी।

अखिलेश चतुर्वेदी ने शिक्षा मि़त्रों की एक और समस्या को मजबूती से उठाया। शिक्षा मित्रों का समायोजन 25 जुलाई 2017 को रद हुआ था। सरकार ने आदेश दिया था कि शिक्षा मित्रों को जुलाई 2017 को पूरा वेतन सहायक शिक्षक के बतौर दिया जाय लेकिन उनके जिले में 25 दिन का ही वेतन शिक्षा मित्रों को दिया गया। शेष छह दिन का वेतन दिलाने के लिए वे लगातार आंदोनल-प्रदर्शन करते रहे। उन्होंने 26 नवम्बर 2019 को मूल विद्यालय में वापसी और छह दिन का बकाया वेतन दिलाने की मांग को लेकर आमरण अनशन भी किया। अनथक संघर्ष के बाद जिले के 13 ब्लाक के शिक्षा मित्रों को छह दिन का वेतन मिला लेकिन फाजिलनगर ब्लाक के लगभग डेढ सौ महिला शिक्षा मित्रों को अभी तक छह दिन का बकाया वेतन नहीं मिला है। आमरण अनशन के वक्त जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी ने आश्वासन दिया कि एक सप्ताह में शिक्षा मित्रों की सभी समस्याओं का समाधान हो जाएगा लेकिन अभी तक कुछ नहीं किया गया।

 

इन दो मांगों को लेकर शिक्षा अधिकारियों के अड़ियल रवैये से अखिलेश चतुर्वेदी बहुत दुखी हुए। साथ ही अपने संगठन के प्रांतीय पदाधिकारियों की चुप्पी ने उन्हें और तोड़ दिया। उन्होंने इस बाबत प्रदेश अध्यक्ष सहित अन्य पदाधिकारियों से बातचीत की लेकिन उन लोगों ने कोई तवज्जों नहीं दी। दुख अखिलेश ने 19 मार्च को जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी को पत्र देकर कहा कि यदि इन दो मांगों को 31 मार्च तक पूरा नहीं किया गया तो वे शिक्षा मि़त्र की नौकरी से इस्तीफा दे देंगे।
पूर्व की तरह अफसरों ने उनके पत्र पर कोई ध्यान नहीं दिया न ही उनसे बातचीत की। श्री चतुर्वेदी ने अपने संकल्प के अनुसार 31 मार्च को बीएसए आफिस में जाकर अपना इस्तीफा सौंप दिया। उन्होंने संगठन के जिलाध्यक्ष का पद भी छोड़ दिया है। उनके साथ संगठन के वरिष्ठ उपाध्यक्ष राम कुमार तिवारी और महमंत्री देवकांत यादव ने भी अपने पदों से इस्तीफा दे दिया है।

अपने इस्तीफे में अखिलेश चतुर्वेदी ने लिखा है कि शिक्षा मित्रों का शोषण हो रहा है और वे उनकी समस्याओं का समाधान नहीं करा पा रहे हैं। इस कारण अपमानित महसूस कर रहे हैं।

उन्होंने संगठन के प्रदेश अध्यक्ष को भेजे गए पत्र में कहा है कि वे शिक्षा मित्रों का साथ देने के बजाय अधिकारियों का साथ देते हैं। उन्होंने शिक्षा मित्रों को गुमराह किया है और उनके हक के लिए आंदोलन से दूर हो गए हैं। अवसाद और बीमारी से कई शिक्षा मित्रों की मौत हो गई लेकिन प्रदेश अध्यक्ष ने संवेदना तक प्रकट नहीं की।

श्री चतुर्वेदी ने गोरखपुर न्यूज लाइन से बातचीत करते हुए कहा कि शिक्षा मित्र गहरे अवसाद में जी रहे हैं। सहायक शिक्षक पद पर समायोजन रद हो जाने से वे टूट गए हैं। सरकार ने भी उनकी एक न सुनी। तमाम आंदोलन के बाद उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा की अध्यक्षता में एक कमेटी बनायी गयी जिसकी रिपोर्ट का आज तक पता नहीं चला। शिक्षा मित्रों को टेट परीक्षा उत्तीर्ण करने पर सहायक शिक्षक बनाने का अवसर दिया तो गया लेकिन बाद में सुपर टेट का एक बैरियर भी लगा दिया गया। मूल विद्यालय पर वापसी, बकाया वेतन का भुगतान, समय से वेतन मिलने की समस्या तो है ही। संगठन का नेतृत्व इन मुद्दों पर प्रभावी संघर्ष नही  कर पा है। वह डर प्रदेश सरकार से डर गया है। उन्होंने सवाल उठाया कि आखिर शिक्षा मित्रों के बकाया वेतन का पैसा कहां है जिसका भुगतान नहीं किया जा रहा है। जब इस बारे मंे स्पष्ट शासनादेश जारी हो चुका है तो किस कारण बकाया वेतन का पैसा रोका गया। शिक्षा मित्रों को उनके मूल विद्यालय पर तैनाती में क्या दिक्कत है ?

उन्होंने कहा कि वे जिला स्तर के पदाधिकारी थे। उन्होंने जिले स्तर पर शिक्षा मित्रों की समस्याओं का समाधान कराने के लिए पूरे दम से संघर्ष किया। इस दौरान उन्हें बेसिक शिक्षा विभाग केे अधिकारियों के संवेदनहीन रवैये से काफी दुख पहुंचा। इसी कारण उन्होंने इस्तीफा दे दिया। आज कल कौन अपनी नौकरी छोड़ता है लेकिन मैने शिक्षा मित्रों के मुद्दे पर चुप्पी के बनाए गए वातावरण में एक गूंज पैदा करने के लिए नौकरी छोड़ी है। नौकरी भले छोड़ दी है लेकिन संघर्ष करना नहीं छोडृूंगा। यदि मेरा इस्तीफा स्वीकार हो जाता है तो भी मै शिक्षा मित्रों के हक के लिए धरना-प्रदर्शन, आमरण अनशन का सिलसिला जारी रखूंगा।
उन्होंने कहा कि इस्तीफा दिए जाने के बाद से अब तक किसी भी अधिकारी ने उनसे कोई सम्पर्क नहीं किया है।

अखिलेश चतुर्वेदी का इस्तीफा प्रदेश के हजारों शिक्षा मित्रों की पीड़ा की अभिव्यक्ति है। श्री चतुर्वेदी ने अपने इस्तीफे के जरि शिक्षा मित्रों के संगठनों का खोखलापन भी उजागर किया है।

देखना है कि अखिलेश चतुर्वेदी का इस्तीफा सरकार के कानों तक कोई शोर पैदा कर पाता है कि नहीं।