‘ नो मैन्स लैंड ’ पर खुले असमान तले जीवन गुजार रहे हैं 300 नेपाली प्रवासी कामगार

 

सिद्धार्थनगर.

हम मज़दूरों को गांव हमारे भेज दो सरकार
सूना पड़ा घर दुआर।।
हम को न पता था कि ये दिन भी आएंगे
कोरोना के कारण घरों में सब छुप जाएंगे।।
हम तो पापी पेट के कारण झेल रहे हैं मार
सुना पड़ा घर दुआर।।

यह वेदना उन मज़दूरों की है जो फिलवक्त भारत नेपाल के ” नो मेंस लैंड ” पर फंसे हैं। इनकी तादाद करीब तीन सौ के पार है। नो मेंस लैंड अर्थात स्वामित्व विहीन भूमि इस पर किसी देश का स्वामित्व नही होता है यह दो देशों के बीच की खाली पड़ी ज़मीन होती है। भारत नेपाल सीमा के इस जगह को “दस ग़ज़ा “भी कहा जाता है। यही स्वामित्व विहीन भूमि फिलवक्त नेपाल अपने घर लौटने के इच्छुक सैकड़ों प्रवासी मज़दूरों का नया आशियाना है।

सिद्धार्थ नगर जिले की सीमा से सटे नाका ,शिवलवा,चाकल चौड़ा, गौरा, रंगपुर, मर्यादपुर,हरदौना, भिलमी, कृष्ण नगर आदि जगहों पर ये मज़दूर फंसे हुए हैं। हज़ारों मील का मुश्किल सफर तय करने के बाद भी अभी इनका सफर खत्म नही हुआ है। इन्हें नो मेंस लैंड पर रोक दिया गया है। इनकी तादाद करीब तीन सौ के पार हैं। नेपाल के ये प्रवासी मज़दूर भारत के विभिन्न शहरों में कोरोना महामारी के कारण उतपन्न तबाही की वजह से घर लौट रहे हैं।

यह मज़दूर खुले आसमान के नीचे रहने को विवश हैं।नो मेंस लैंड पर ही नेपाली प्रशासन ने अस्थायी रूप से रहने और भोजन आदि का प्रबंध तो कर दिया है।कुछ ने पेड़ो पर आशियाना बना लिया है तो कुछ ने झाड़ियों को चादर से घेर कर रहने का जुगाड़ कर लिया है। कुछ पेड़ के नीचे ही रहने को मजबूर हैं।बुधवार की रात ऐसे मज़दूरों पर भारी गुज़री और सुबह और बड़ी तबाही लेकर आई। आंधी और तेज़ तूफान की भी मार भी इन्हें झेलनी पड़ी।

कृष्ण नगर के मेयर रजत प्रताप शाह ने बताया कि भिलमी बॉर्डर पर खुले रुके मज़दूरों को खराब मौसम को देखते हुए एक स्थानीय स्कूल में शिफ्ट कर दिया गया है। कृष्णनगर बॉर्डर पर फंसे मज़दूरों को ठकुरापुर स्वास्थ्य चौकी पर स्थान्तरित किया गया है। श्री शाह ने बताया कि ऐसे प्रवासी मज़दूरों की संख्या हर रोज़ करीब सौ की तादाद में बढ़ रही है जो कि बड़ी चुनौती है।

उन्होंने कहा कि ये सभी कामगार नेपाल के दांग, वर्दियां,अर्घाखाँची, पियुठान आदि जिलों के रहने वाले हैं। सबसे पहली चुनौती इन्हें संवैधानिक रूप से नेपाल में प्रवेश कराने की है और फिर क्वारन्टीन कराकर इन्हें घर भेजना है। नेपाली प्रशाशन पूरी तरह से इसके लिए प्रयासरत है। श्री शाह ने कहा कि यह मुश्किल घड़ी है लेकिन हम पूरी तरह से इनके व्यवस्थापन के लिए प्रतिबद्ध हैं।