साहित्य - संस्कृति

जनतांत्रिक एवं सांस्कृतिक बहुलता के पक्ष में ‘हस्तक्षेप’ 28 दिसम्बर को

‘ आज़ाद वतन, आज़ाद ज़ुब़ां ’ पर सेमिनार
महाराष्ट्र की मशहूर संस्कृतिकर्मी शीतल साठे द्वारा जनगीतों की प्रस्तुति
 
लखनऊ, 23 दिसम्बर। जनतांत्रिक एवं सांस्कृतिक बहुलता के पक्ष में इस महीने की 28 तारीख को प्रगतिशील व जनवादी सांस्कृतिक व सामाजिक जन संगठनों की ओर से ‘ हस्तक्षेप ’ शीर्षक से एक दिवसीय कार्यक्रम लखनऊ में आयोजित किया जा रहा है। यह आयोजन गांधी भवन प्रेक्षागृह (शहीद स्मारक के सामने) में दो सत्रों में होगा। इसमें देशभर से जाने-माने साहित्यकार व बुद्धिजीवी हिस्सा लेंगे। विद्रोही जलसा, महाराष्ट्र  का सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजन का खास आकर्षण है।
 
‘हस्तक्षेप’ का पहला सत्र सेमिनार का है जिसका विषय है-‘ आजाद वतन, आजाद जुबां: परिप्रेक्ष्य – अभिव्यक्ति की आजादी, तर्क एवं विवेक की रक्षा ’। यह सत्र दिन के दो बजे शुरू होगा तथा शाम साढ़े पांच बजे तक चलेगा। इसके प्रमुख वक्ता मुरली मनोहर प्रसाद सिंह, मंगलेश डबराल,  गीता हरिहरन, वेजवाड़ा विल्सन, संजीव कुमार सहित स्थानीय लेखक, संस्कृतिकर्मी और बुद्धिजीवी होंगे। शाम छ बजे से विद्रोही जलसा, महाराष्ट्र की दलित कार्यकर्ता व मशहूर संस्कृतिकर्मी शीतल साठे व उनके समूह द्वारा जनगीतों की प्रस्तुति होगी। लखनऊ में जलसा की यह पहली प्रस्तुति होगी। 
 
‘हस्तक्षेप’ का आयोजन जनवादी लेखक संघ, प्रगतिशील लेखक संघ, भारतीय जन नाट्य संघ, जन संस्कृति मंच, कलम सांस्कृतिक मंच, साझी दुनिया, अमिट, उप्र राज्य कर्मचारी महासंध, अलग दुनिया, यूपी बैंक इम्पलाइज यूनियन, एटक, कार्ड, पीयूसीएल, महिला फेडरेशन, नीपा रंग मण्डली, एडवा जैसे संगठनों ने संयुक्त रूप से किया है।
 
आयोजन समिति की ओर से  जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि नरेन्द्र मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद शिक्षा एवं संस्कृति का बड़े पैमाने पर भगवाकरण, स्वायत्त संस्थाओं पर प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष हमले, इतिहास के विकृतीकरण की घटनाएं लगातार बढ़ती गई हैं। जनतांत्रिक अधिकारों, सांस्कृतिक बहुलता, सामाजिक न्याय, अभिव्यक्ति की आजादी तथा तर्क एवं विवेक पर क्रूरतम हमले हुए हैं। धार्मिक असहिष्णुता अपने चरम पर है। सवाल उठाने वालों को देशद्रोही साबित करने से लेकर उनकी नृशंस हत्याएं हुई हैं। इन घटनाओं के प्रतिरोध में पिछले दिनों लेखकों, कलाकारों, इतिहासकारों, वैज्ञानिकों आदि द्वारा पुरस्कार वापसी जैसा कदम उठाया गया। इस अभियान को आगे बढ़ाने के मकसद से लखनऊ में ‘हस्तक्षेप’ का आयोजन किया जा रहा  है। यह आयोजन इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि उत्तर प्रदेश भगवाकरण की प्रयोगस्थली बना हुआ है।

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