सत्ता लोलुपता नेपाल में राजनीतिक अस्थिरता की बड़ी वजह : रेखा यादव

साहित्यकार व जनता समाजवादी पार्टी की केंद्रीय सदस्य रेखा यादव अपने संघर्षों व जुझारूपन के लिए नेपाल के सियासत में एक अहम मुक़ाम रखती हैं।मधेशी समुदाय के हित के लिए उनका और उनकी पार्टी जसपा का संघर्ष अतुलनीय है।राजनीतिक व्यस्तताओं के बावजूद वो लिखने पढ़ने के लिए समय निकाल लेती हैं।हिंदी और नेपाली दोनों भाषाओं में दक्ष रेखा यादव की  दो कृतियाँ अब तक प्रकाशित हो चुकी हैं।नेपाली भाषा मे उपन्यास “आत्मजा”और हिंदी में कविता संग्रह “तुम बिन” प्रकाशित हो चुकी है। साहित्य,समाज,व नेपाली सियासत पर वरिष्ठ पत्रकार सग़ीर ए खाकसार ने उनसे लंबी बातचीत की है। प्रस्तुत है बातचीत के मुख्य अंश.

 

सवाल-फिलवक्त नेपाल के सियासी हालात कैसे हैं ?

जवाब-  नेपाल गहरे राजनैतिक संकट से गुज़र रहा है।राजनैतिक अस्थिरता जैसे नेपाल की नियति बन गयी है।पिछले कई दशकों से राजनैतिक स्थिरता की आस लगाये नेपाली जनता को हमेशा ही निराशा हाथ लगती है। प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली के संसद भंग किये जाने के फैसले को सर्वोच न्यायालय ने पलट कर ऐतिहासिक निर्णय दिया है।ओली का यह कदम असंवैधानिक था और लोकतंत्र विरोधी भी। संविधान में ऐसी कोई व्यवस्था नही थी कि मध्यविधि चुनाव नेपाल पर थोपा जाए। कोर्ट के फैसले के बाद प्रतिनिधि सभा एक बार पुनर्जीवित हो गयी है। उम्मीद की जानी चाहिए कि राजनैतिक अस्थितरता के बादल अब छट जाएंगे।

सवाल-नेपाल में राजनैतिक अस्थिरता का कारण क्या है ?

जवाब-नेपाल लंबे समय तक माओवाद की समस्या से जूझता रहा।उससे पहले राजशाही पूरी तरह से काबिज रही।लोकतंत्र बहाली के बाद कतिपय सियासी दलों की सत्ता लोलुपता ,राष्ट्रीय हितों पर व्यक्तिगत आकांक्षाओं का सर्वोपरि होना आदि राजनैतिक अस्थिरता के कारण रहे है। जनता में राजनैतिक चेतना का अभाव भी एक कारण है।नेपाल को राजनीतिक रूप से स्थिर ,गतिशील बनाये जाने की ज़रूरत है। नेपाली जनाकांक्षाओं  के अनुरुप नीति निर्धारण की आवश्यकता है।तभी देश आगे बढ़ेगा।

सवाल-मधेश  और मधेशी राजनीति की स्थिति कैसी है ?

जवाब-मधेश और मधेशियों के साथ नेपाल की सभी सियासी दलों का रवैया लगभग एक जैसा रहा है। मधेशियो की स्थिति ठीक नही है। शैक्षणिक,सामाजिक व राजनैतिक रूप से काफी पिछड़े हैं। सरकारी नौकरियों में मधेशियो की तादाद नगण्य है। मधेश के लोगों में पिछले  कुछ वर्षों में राजनैतिक चेतना ज़रूर आयी है लेकिन अपने अधिकारों के लिए अभी उन्हें लंबी लड़ाई लड़नी होगी।

सवाल-साहित्य और राजनीति में क्या अंतर्सम्बन्ध है ?

जवाब-साहित्य और राजनीति को लेकर लंबे समय से विमर्श होता रहा है।जैसा कि आप जानते हैं कि साहित्य समाज का दर्पण होता है ।साहित्य पूरे समाज से जुड़ा हुआ है जिसका एक अनिवार्य अंग राजनीति है।दोनो समाज से जुड़े हैं।साहित्य और राजनीति की दूरी अस्वाभविक है।

सवाल-अपने उपन्यास “आत्मजा “और काव्य संग्रह “तुम बिन” के बारे में कुछ बताइये?

जवाब-उपन्यास ‘ आत्मजा ‘ समाज मे व्याप्त असमानताओं ,रूढ़ियों,और विभेदों पर आधारित है। इसका क्षेत्र नेपाल के तराई का विराट नगर व भारत के कुछ हिस्सों तक फैला है। मेरे इस उपन्यास का उद्देश्य समाज को आधुनिक, प्रगतिशील व विवेकशील बनाना और एक आदर्श समाज की स्थापना करना है।

सवाल-नेपाल में लगातार राजनैतिक  अस्थिरता ,उठापटक के बीच राजतंत्र की मांग भी कभी कभी सुनाई पड़ती है,क्या राजतंत्र की वापसी संभव है ?

जवाब-नेपाल में लगातार राजनैतिक उठापठक से निश्चित रूप से नेपाली जनता को मायूसी होती है इस बात से कत्तई इनकार नहीं किया जासकता।लेकिन राजशाही अब बीते दिनों की बात है,लोकतंत्र के लिए नेपाली जनता ने लंबी लड़ाई लड़ी है वैश्विक स्तर पर लोकतंत्र के लिए आंदोलन हो रहे हैं। लोकतंत्र से बेहतर विकल्प जनता के लिए और कोई दूसरा नही हो सकता है। लोकतंत्र को मज़बूत बनाना होगा,जनता को भी राजनैतिक रूप से जागरूक करने की आवश्यकता है।सभी सियासी दलों को नेपाल के समग्र विकास के लिए एक बृहत कार्ययोजना बनाकर समर्पित भाव से काम करने की आवश्यकता है।