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नगर विधायक भी विन्ध्यवासिनी पार्क का नाम बदले जाने के खिलाफ, सीएम को पत्र लिखा

गोरखपुर. नगर विधायक डॉ राधा मोहन दस अग्रवाल ने भी विन्ध्यवासिनी पार्क का नाम बदले जाने का विरोध किया है. उन्होंने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर नाम-परिवर्तन को अपनी सहमति न देने तथा  नगर निगम भवन का नामकरण “स्व विन्द्यवासिनी वर्मा स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भवन”के रूप में किये जाने की मांग की है.

 नगर विधायक ने दो दिसम्बर को स्व विन्द्यवासिनी वर्मा जी के पौत्र प्रदीप रंजन वर्मा तथा प्रपौत्र एडवोकेट अमित विक्रम वर्मा से मुलाकात की थी. मुलाकात के बाद उन्होंने मुख्यमंत्री को पत्र लिखा और इस पत्र को अपने फेसबुक पेज पर साझा भी किया.

उल्लेखनीय है कि इसके पहले एमएलसी देवेन्द्र प्रताप सिंह भी पार्क का नाम बाले जाने का विरोध करते हुए मुख्यमंत्री को पत्र लिख चुके हैं. कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी ने भी इस मुद्दे पर विरोध जताया था. पार्क का नाम बाले जाने के खिलाफ नागरिक संगठन लगातार आन्दोलन कर रहे हैं.

इस पत्र में उन्होने लिखा है कि मोहद्दीपुर चौराहे पर स्थित राजकीय उद्यान के परिसर में स्थित पार्क का नाम बदले जाने से महानगर के नागरिकों के मन में इस प्रकरण को लेकर दुःख,असंतोष तथा आक्रोश व्याप्त हो रहा है. गोरखपुर प्रशासन की ओर से अज्ञानता में सम्भवतः कोई ऐसा पत्र शासन में भेजा गया है कि राजकीय उद्यान का नाम उद्यान विभाग के अभिलेखों में “व्ही पार्क” दर्ज है ,इसलिए एक आक्रान्ता का नाम बदल कर स्व हनुमान प्रसाद पोद्दार जैसे महानतम व्यक्तित्व के नाम पर करना उचित होगा.

भाई जी हनुमान प्रसाद पोद्दार जी एक महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे और गीता प्रेस जैसी महान अंतरराष्ट्रीय व्यापकता वाली संस्था के माध्यम से  हिन्दू धर्म और संस्कृति के प्रचार-प्रसार में उन्होंने देश में सबसे बडी भूमिका का निर्वहन किया है. इसमें कोई दो राय नहीं है कि उनके नाम को सम्मानित करके सम्पूर्ण मानवता अपने-आप को सम्मानित करेगी. लेकिन भाई जी जैसे व्यक्ति को ,जिन्होंने किसी समय तत्कालीन केन्द्रीय गृहमंत्री गोविन्द बल्लभ पंत द्वारा उन्हें भारत-रत्न दिये जाने तक के प्रस्ताव में अरूचि-प्रदर्शन कर दिया था , एक पार्क के नाम पर अनजाने में विवादों में ला देना कंही से उचित नहीं प्रतीत होता है.

नगर विधायक ने पत्र में लिखा है कि सारा विवाद इसलिए पैदा हुआ कि 1982 में स्थापित राजकीय उद्यान विभाग के अभिलेखों में सम्भवतः यह दर्ज नहीं था कि उक्त पार्क का नाम व्ही-पार्क से बदल कर पहले ही “विन्द्यवासिनी पार्क” किया जा चुका है और यंहा तक की पार्क के गेट पर “विन्द्यवासिनी पार्क” का नाम अंकित भी है. लोक-मत और जन-संवाद में यह “विन्द्यवासिनी पार्क” के रूप में ही जाना जाता है.

 स्व विन्द्यवासिनी वर्मा जी एक समर्पित स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे,जिन्होंने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, पं जवाहर लाल नेहरू तथा पुरुषोत्तमदास टण्डन के निकटम सहयोगी के रूप में काम किया, गोरखपुर में होमलीग रूल की स्थापना तथा असहयोग आंदोलन का नेतृत्व किया था. अंग्रेजी शासकों ने उन्हें जेल की सींखचों में बंद किया और अर्थदंड भी लगाये. इसी चक्कर में उनकी अलहलादपुर स्थित उनकी कोठी भी बिक गई. वर्ष 1937 में वे विधायक रहे और लम्बे समय तक गोरखपुर म्युनिसिपल बोर्ड के चेयरमैन भी रहे. नगरपालिका गोरखपुर का वर्तमान कार्यालय भी उन्ही के कार्यकाल में प्रारम्भ हुआ. शासन द्वारा प्रकाशित गोरखपुर के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की सूची में भी स्व. विन्द्यवासिनी वर्मा जी का नाम है तथा सूचनाओं के अनुसार इस मैदान के प्रांगण में स्थित टीले पर, स्व विन्द्यवासिनी वर्मा जी के निजी मेज पर चढकर महात्मा गांधी जी का भाषण हुआ था.

   इससे स्पष्ट है कि भाई जी हनुमान प्रसाद पोद्दार तथा स्व विन्द्यवासिनी वर्मा दोनों का ही देश की आजादी और विशेष रूप से गोरखपुर के नागरिकों के लिये विशेष स्थान है और दोनों में से किसी को भी अपमानित नहीं किया जा सकता है.

विधायक डॉ अग्रवाल ने मुख्यमंत्री से अनुरोध किया कि पार्क के नाम-परिवर्तन को अपनी सहमति न प्रदान करें. साथ ही उन्होंने मांग की है कि स्व विन्द्यवासिनी वर्मा जी के सिद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी होने के बावजूद उन्हें ऐसे सेनानियों को मिलने वाले किसी प्रकार के लाभ नहीं दिये गये,अतः भारत सरकार को इस अन्याय को दूर करने के लिए लिखा जाये तथा नगर निगम भवन का नामकरण “स्व विन्द्यवासिनी वर्मा स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भवन”के रूप में किया जाये.

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