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कोरोना से पत्रकार जीत बहादुर गुप्ता की मौत,समय से नहीं मिल पाया वेंटीलेटर और रेमिडिसिवर

महराजगंज। नौतनवा के युवा पत्रकार जीत बहादुर गुप्ता का आज सुबह कोरोना से निधन हो गया। वह गोरखपुर के फातिमा अस्पताल में भर्ती थे। श्री गुप्ता को इलाज के दौरान समय से न तो वेंटीलेटर बेड मिल पाया न रेमिडिसिवर इंजेक्शन। उनके निधन से पत्रकारों में शोक है।

आज उनका अंतिम संस्कार नौतनवा के दोमुहान घाट पर किया गया।  उनके 14 वर्षीय बेटे ने मुखाग्नि दी। जीतबहादुर अपने पीछे पत्नी, बेटा, बेटी और माता-पिता को छोड़ गए हैं।

50 वर्षीय जीतबहादुर गुप्ता ने गोरखपुर विश्वविद्यालय से मनोविज्ञान में परास्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद आजीविका के लिए नौतनवा में आटो स्पेयर की दुकान खोली। पत्रकारिता में उनकी रुचि थी।  वह ‘ हिन्दुस्तान ‘ में नौतनवा से संवाददाता के रूप में जुड़़ गए। जल्द ही उन्होंने एक अच्छे पत्रकार के रूप में अपनी पहचान बना ली। खुशमिजाज, मिलनसार जीत बहादुर गुप्ता सामाजिक कार्यों में भी बहुत सक्रिय रहते थे।

श्री गुुप्ता के एक सप्ताह पहले कोराना संक्रमित हुए थे। संक्रमण के कुछ दिन पहले उन्होंने कोविशील्ड वैक्सीन की पहली डोज ली थी।

उनका नौतनवा में इलाज चल रहा था। स्थिति में कोई सुधार होता न देख उनका इलाज कर रहे चिकित्सक ने वेंटलेटर व आक्सीजन सपोर्ट वाले अस्पताल में भर्ती कराने की सलाह दी। महराजगंज और गोरखपुर जिले में घंटों प्रयास के बावजूद किसी अस्पताल में जगह नहीं मिली। सोमवार की रात किसी तरह गोरखपुर के फातिमा अस्पताल में उन्हें जगह मिली। इस अस्पताल में वेंटीलेटर नहीं है लेकिर आक्सीजन सपोर्ट की व्यवस्था है।

मंगलवार की शाम चिकित्सकों ने परिजनों को रेमिडिसिवर के दो वायल इंजेक्शन की व्यवस्था करने को कहा। इंजेक्शन का एक वायल तो किसी तरह मिल गया लेकिन दूसरा वायल नहीं मिला। गोरखपुर में रेमिडिसिवर इंजेक्शन जिला आपदा कार्यालय में लाइन लगाकर टोकन प्राप्त करने के बाद मिल रहा है। इस व्यवस्था में लोग रात से ही जिला आपदा कार्यालय पर लाइन लगाने को मजबूर है। घंटो लाइन लगने के बाद टोकन मिल रहा है और उसके बाद रेमिडिसिवर इंजेक्शन। तमाम जरूरतमंदों को समय पर इंजेक्शन नहीं मिल पा रहा है।

इस व्यवस्था के शिकार जीत बहादुर गुप्ता भी हुए। उन्हें रात में वेंटीलेटर बेड की भी जरूरत हुई लेकिन वह नहीं मिल पाया। इंजेक्शन की दूसरी वायल भी नहीं मिल पायी। इंजेक्शन के लिए लखनऊ तक बात पहुंचाई गई। सभी प्रयास बेकार हो गए और आज सुबह उनका निधन हो गया। निधन के बाद जिलाधिकारी गोरखपुर का जीत बहादुर गुप्त के भाई सुभाष के पास फोन आया कि आकर इंजेक्शन ले लें। सुभाष का जवाब था कि लाश को इंजेक्शन नहीं लगता।