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नए खाद कारखाने की नींव में है आठ वर्षों की कोशिशें

उत्पादन शुरू होने में लग सकते हैं पांच वर्ष
गैस पाइप लाइन बिछाने का कार्य शुरूआती दौर में
पिछले महीने दिया गया है पाइप खरीदने का आर्डर

मनोज कुमार सिंह 

गोरखपुर, 18 जुलाई। आठ वर्षों की तमाम कोशिशों के बाद गोरखपुर के बंद खाद कारखाने के स्थान पर नए खाद कारखाने की नींव पड़ने जा रही है। यूपीए सरकार ने इस कारखाने को बीआईएफआर से बाहर निकाला ,  इसके कर्जे माफ किए और गैस पाइप लिने बिछाने का मार्ग प्रशस्त किया तो मोदी सरकार ने इसको चलाने के लिए सार्वजनिक उद्यमों को तैयार किया। यह भी अजब संयोग है कि भाजपा सरकार (2002) ने ही इस खाद कारखाने को बंद करने का अंतिम निर्णय लिया और अब उसी पार्टी की सरकार में 22 जुलाई को इसका शिलान्यास होने जा रहा है। शिलान्यास होने के बाद नए खाद कारखाने में उत्पादन शुरू होने में कम से कम पांच वर्ष लगने की उम्मीद है क्योंकि खाद कारखाने को गैस मुहैया कराने के लिए गैस पाइप लाइन बिछाने का काम अभी शुरूआती दौर में ही है।
गोरखपुर खाद कारखाना, भारतीय उर्वरक निगम लिमिटेड (एफसीआईएल) की देश की पांच यूनिटों में से एक है। इसकी स्थापना 20 अप्रैल 1968 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने किया था। तब से यह 1990 तक निर्बाध रूप से चला। 10 जून 1990 को एक दुर्घटना में मेघनाथ सिंह नाम के अधिकारी की मौत के बाद खाद कारखाना अस्थायी रूप से बंद क्या हुआ इसके बाद से इसका भोपू आज तक नहीं बजा। कारखाना बंद होने के बाद इसका मामला बीआईएफआर में चला गया। 18 जुलाई 2002 में तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने गोरखपुर खाद कारखाने को अंतिम रूप से बंद करने का निर्णय लिया और यहां कार्य करने वाले 2400 स्थायी कर्मचरियों को वालंट्री सेपेरेशन स्कीम के तहत हटा दिया गया। इसके नौ वर्ष बाद 1999 में बरौनी का खाद कारखाना बंद हुआ।
यह वही समय था जब नाफ्था आधारित यूरिया संयत्रों का हालत खस्ता हो रही थी क्योंकि इस तकनीक के जरिए यूरिया उत्पादन महंगा था और इसके बरक्स बाहर से यूरिया आयात करना सस्ता। यही कारण है कि सिर्फ गोरखपुर ही नहीं बल्कि एफसीआईएल के अन्य यूरिया कारखाने-सिंदरी, तलचर, रामागुंडम और कोरबा के साथ-साथ हिन्दुस्तान उर्वरक निगम लिमिटेड (एचएफसीएल) की दुर्गापुर, हल्दिया और बरौनी कारखाने भी बंद हो गए। सरकार विदेश से यूरिया आयात कर काम चलाने लगी और उसने इन कारखानों को पुनरूद्धार के लिए कोई प्रयास नहीं किया।

यूरिया आयात पर भारी विदेशी मुद्रा के खर्च ने सरकार को खाद कारखानों को पुनरूद्धार के लिए मजबूर किया

 गोरखपुर खाद कारखाने के बंद होने के दो दशक के अंदर ही स्थिति बदली और यूरिया आयात महंगा पड़ने लगा। इस वक्त देश को 320 एमएलटी यूरिया की जरूरत पड़ती है लेकिन देश में उत्पादन 245 एमएलटी ही है। शेष यूरिया दूसरे देशों से खरीदनी पड़ती है। ओमान से ही 20 लाख मीट्रिक टन यूरिया मंगाया जाता है। वर्ष 2009-10, 2010-2011, 2011-2012 में यूरिया आयात में क्रमशः 1212.65 मिलियन डालर, 1832.50 मिलियन डालर और 3222.48 मिलियन डालर विदेशी मुद्रा खर्च करनी पड़ी। इसके अलावा आयातित यूरिया को बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश पहुंचाने में परिवहन पर भी भारी धन खर्च करना पड़ता है। अभी इन प्रदेशों में यूरिया को कोई कारखाना नहीं है।
यूरिया आयात पर बढ़ते खर्च ने सरकार को चिंता में डाल दिया और जब इस पर मंथन शुरू हुआ तो यही समाधान निकल कर आया कि बंद पड़े यूरिया कारखानों को फिर से जीवित किया जाए।

यूपीए 1 और यूपीए 2 सरकार की पहल
यूपीए वन की सरकार ने इस दिशा में पहल करते हुए 30 अक्तूबर 2008 को कैबिनेट की मीटिंग में भारतीय उर्वरक निगम के सभी पांच कारखानों और हिन्दुस्तान उर्वरक निगम लिमिटेड के तीन कारखानों के पुनरूद्धार योजना की स्वीकृति दी। कैबिनेट ने सचिवों की अधिकार प्राप्त समिति (ईसीओएस) गठित की और उसे विस्तृत योजना बनाने को कहा। इस समिति ने जो प्रस्ताव दिया उसे अर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने 4 अगस्त 2010 को स्वीकार कर लिया। समिति ने सिफारिश की थी कि बंद कारखानों को चलाने के लिए इन पर कर्ज और ब्याज को माफ कर दिया जाए और इन्हें शुरू करने के लिए नए सिरे से धन उपलब्ध कराया जाए।
यूपीए 2 सरकार ने 10 मई 2013 को भारतीय उवर्रक निगम के गोरखपुर सहित सभी पांच कारखानों को चलाने की दिशा में एक बड़ा निर्णय लिया। सरकार ने इन कारखानों पर कर्ज और ब्याज के कुल 10,644 करोड़ रूपए माफ कर दिया। इससे गोरखपुर खाद कारखाना को बीआईएफरआर से बाहर निकालने में मदद मिली।
इसके पहले केन्द्र सरकार ने 2 जनवरी 2013 को यूरिया के क्षेत्र में नए निवेश को बढ़ावा देने के लिए नई निवेश नीति 2012 को भी लागू किया। इसका उद्देश्य देश को यूरिया के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाना था और इसके लिए जरूरी था कि बंद पड़े कारखानों को चलाया जाए।
गोरखपुर खाद कारखाने को चलाने के लिए जरूरी था कि इसको प्राकृतिक गैस की उपलब्धता हो। इसके लिए तथा देश के अन्य कारखानों तक प्राकृतिक गैस पहुंचाने के लिए केन्द्र सरकार ने इसी वर्ष जगदीशपुर -हल्दिया गैस पाइपलाइन बिछाने का भी ऐलान किया और इसके लिए सर्वे का कार्य शुरू कराया।
यूपीए 2 सरकार ने गोरखपुर खाद कारखाने को चलाने के लिए निजी क्षेत्र को आमंत्रित करने का निर्णय लिया था और इसके लिए टेंडर निकाला लेकिन निजी क्षेत्र ने रूचि नहीं दिखाई। इसके बाद इस पर चर्चा होने लगी कि कारखाने को चलाने के लिए सर्वाजनिक क्षेत्र के उद्यमों को जिम्मेदारी दी जाए।

मोदी सरकार की पहल
मोदी सरकार ने भी बरौनी और गोरखपुर के खाद कारखाने को चलाने के लिए ग्लोबल टेंडर के जरिए निजी क्षेत्र को आमंत्रित करने का निर्णय लिया। इसके लिए 27 अप्रैल 2015 को नीति आयोग की समिति गठित की गई। गोरखपुर खाद कारखाने के लिए 26 अगस्त 2015 को रिक्वेस्ट आफ क्वालिफिकेशन, 17 सितम्बर 2015 को इन्टेस्ट आफ एक्सप्रेशन और 8 सितम्बर को पूर्व बोली सम्मेलन आयोजित किया लेकिन इसके लिए सिर्फ एक आवदेक ही आने के कारण इसे रद करना पड़ा।
निजी क्षेत्र द्वारा अरूचि दिखाने पर कैबिनेट ने 13 जुलाई को निर्णय लिया कि सिंदरी, गोरखपुर और बरौनी यूरिया कारखाने को चलाने के लिए नेशनल थर्मल पावर कार्पोरेशन (एनटीपीसी), कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल), इंडियन आयल कार्पोरेशन लिमिटेड (आईओसीएल), एफसीआईएल /एचएफसीएल को जिम्मेदारी दी जाए जो विशेष प्रयोजन वाहन के अन्तर्गत नामांकन मार्ग के माध्यम से शुरू करेंगे।
इसके पहले मोदी सरकार ने 25 मई 2016 को बरौनी खाद कारखाने के पुनरूद्धार की मंजूरी देते हुए इस पर 1916.14 करोड़ रूपए का कर्ज और 7163.35 करोड़ के ब्याज को माफ करने का निर्णय लिया। इस कारखाने पर बिहार सरकार का बिजली मद में करोड़ो रूपए बकाया है जिसके लिए निर्णय हुआ है कि इसकी एश डाइक की 56 एकड़ भूमि बिहार सरकार को दे दी जाएगी।

जगदीशपुर-हल्दिया गैस पाइपलाइन
पहले यह गैस पाइपलाइन लगभगन 1700 किमी लम्बाई में बिछनी थी लेकिन मोदी सरकार ने इसको और विस्तारित करते हुए इसे 2050 किमी लम्बा कर दिया। अब इसे उद्योगपति गौतम अडानी के पोर्ट धामरा तक ले जाया जाएगा। गैस पाइप लाइन बिछाने की परियोजना 12 हजार करोड़ की है और इसे कई फेज में सम्पन्न होना है। पहले फेज में 3200 करोड़ की लागत से 755 मिमी लम्बी पाइप लाइन बिछाई जाएगी।

इस पाइप लाइन के जरिए फूलपुर-मानी, मानी-गोरखपुर, मानी-वाराणसी, मानी-दोभी, दोभी-सिलाव, सिलाव-पटना और सिलाव-बरौनी को जोड़ा जाएगा। इस गैस पाइनलाइन से न केवल बरौनी व गोरखपुर खाद कारखाने को प्राकृतिक गैस मिलेगी बल्कि यूपी, बिहार, झारखंड के दर्जनों शहरों के लोगों को पाइप लाइन के जरिए रसोई गैस मिल सकेगी।
पाइप लाइन के लिए गेल ने मार्च 2015 में सर्वे का काम पूरा किया गया। अभी 22 जून को गेल ने फूलपुर-दोभी खंड पर पाइप लाइन बिछाने के लिए 550 करोड़ की लागत से 341 किलोमीटर लाइन पाइप की खरीद का आदेश दिया है।

कारखाने का भोपू बजेगा लेकिन …………………….
जाहिर है कि अभी गैस पाइप लाइन बिछाने का काम शुरूआती दौर में है और खाद कारखाने का निर्माण यदि तयशुदा तीन वर्ष में हो जाए तो 2020 या उसके बाद ही नए खाद कारखाना से उत्पादन होने का भरोसा हो सकता है। नए खाद कारखाने की क्षमता 1.27 एमएमटीपीए की होगी और इसके लिए 6 हजार करोड़ निवेश करने की जरूरत होगी। गोरखपुर सहित तीनों कारखानों के शुरू करने के लिए कुल 18 हजार करोड़ रूपए निवेश करना होगा और इसमें 1200 प्रत्यक्ष और 4500 अप्रत्यक्ष रोजगार सृजित होंगे। पुराने खाद कारखाने में काम करने वाले 172 कर्मचारी आज भी खाद कारखाना परिसर के क्वार्टरों में रहते हैं। इनके आवास का कांट्रेक्ट हर 11 महीने पर रिन्यूवल होता है। नए खाद कारखाने में इन कर्मचारियों या उनके परिजनों के लिए कोई जगह मिल पाएगी या नहीं, कोई नहीं जानता। इन्हीं आवासों में खाद कारखाने के कर्मचारी रहे और कवि प्रमोद कुमार भी रहते हैं। उनकी एक कविता खाद कारखाने के फिर से शुरू होने की उम्मीद पर है-‘ हम प्यार कर रहे हैं / खिल उठा है हमारा चेहरा /बंद कारखाने का भोपू वर्षों बाद फिर बज रहा है/ स्वस्थ हो गई है मेरी मां/ हल-बैल फिर जा रहे हैं खेतों की ओर। ‘
खाद कारखाने का भोपू बजने का इंतजार कर रहे इन कर्मचारियेां के बारे में कोई बात नहीं हो रही है। कारखाने का भोपू बजने पर इन लोगों ने जो उम्मीदें पाल रखी थीं, शायद वह उम्मीदें ही रह जाएं।