समाचार

‘ विश्वनाथ राय के दिल में आजादी का तूफान और आंखों में देश को बनाने का सपना था ’

देवरिया। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी एवं पूर्व सांसद विश्वनाथ राय का जयंती समारोह उनके जन्म स्थान खुखुंदू में आज मनाया गया। इस मौके पर जुटे सामाजिक- राजनीतिक कार्यकर्ताओं , जन प्रतिनिधियों ने स्वाधीनता आंदोलन और बतौर सांसद देश के निर्माण में उनके अप्रितम योगदान को शिद्दत से याद किया।

कार्यक्रम के मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए डॉ असीम सत्यदेव ने स्वर्गीय विश्वनाथ राय से हुई मुलाकातों और उनके साथ किए गए कार्यों की चर्चा करते हुए कहा कि वे चाहते थे कि क्रांतिकारियों के वैचारिक पक्ष को विशेष रूप से सामने लाया जाए। उन्होंने कहा कि जो यथास्थिति वादी हैं, बदलाव नहीं चाहते वे रुकावट के रूप में सदैव मिलेंगे। परिवर्तन रोकने वाली शक्तियां आपको खतरनाक मानती रहेंगे लेकिन हमें समाजवाद, लोकतांत्रिक समाज के निर्माण के लिए सदैव तत्पर रहना होगा ।

उन्होंने कहा कि 10 दिसंबर स्वर्गीय विश्वनाथ राय का जन्म दिवस होने के साथ ही मानवाधिकार दिवस भी है। इस अवसर पर प्रश्न है कि जब सभी मानव अधिकार को स्वीकार करते हैं तो सभी को मानवीय जीवन क्यों नहीं मिल रहा है ? हमारे देश का अमीर दुनिया का सबसे बड़ा अमीर बन जाए इसके लिए श्रम विभाजन की चासनी में लपेट कर करोड़ों लोगों को वंचित रखा जाए ये नहीं चलने वाला है।

वरिष्ठ पत्रकार और जन संस्कृति मंच के महासचिव मनोज सिंह ने कहा कि आज जब इतिहास को बदलने की कोशिशें हो रही हैं, हम स्वर्गीय विश्वनाथ राय और उनकी क्रांतिकारी विरासत को याद कर रहे हैं। वे पूरे आठ साल जेल में रहे किंतु उन्होंने माफी नहीं मांगी। पूर्वी उत्तर प्रदेश में अट्ठारह सौ सत्तावन की लड़ाई सबसे अधिक समय तक लड़ी गई और सबसे अधिक कुर्बानियां दी गई। उसी विरासत से विश्वनाथ राय जी आते हैं। वे इलाहाबाद में हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन से जुड़े थे जिसका उद्देश्य था मानव द्वारा मानव का शोषण ना हो और किसान मजदूर का राज कायम किया जाए।

उन्होंने कहा कि 42वां संविधान संशोधन पर विश्वनाथ राय ने सदन में भगत सिंह के सपनों से उसे जोड़ा था। वह संसद में 80% बनाम 20% की बहस लगातार चलाते रहे।खेती पर आश्रित 71% लोग उनकी चिंता के केंद्र में हमेशा रहे और यह चिंता उनके द्वारा सदन में की गई बहसों में सर्वाधिक दिखाई देती है। उन्होंने कहा कि आज किसान आंदोलन की जीत स्वर्गीय विश्वनाथ राय को सबसे बड़ी श्रद्धांजलि है। सबसे पहले सदन में उन्होंने यह सवाल उठाया था कि गन्ना की तरह ही शेष फ़सलों का भी रेट निर्धारित किया जाना चाहिए। उन्होंने विश्वनाथ राय की 25 साल के संसदीय जीवन में सदन में की गई चर्चाओं की प्रकाशित 500 पृष्ठ की सामग्री का हवाला देते हुए कहा कि उन्होंने सभी कारखानों के राष्ट्रीयकरण की बात की थी। चीनी मिलों के प्रबंधन में किसानों की हिस्सेदारी की बात की थी। उन्होंने चीनी मिलों पर लगने वाले टैक्स का पैसा किसानों के हिट में लगाने की वकालत की थी। स्वर्गीय राय ने नेपाल, बांग्लादेश और पश्चिमी पाकिस्तान की सीमाओं पर सामाजिक-सांस्कृतिक केंद्र स्थापित करने की बात की जिससे कि आपसी सौहार्द स्थापित होगा। स्वर्गीय राय उस क्रांतिकारी संगठन के सदस्य रह चुके थे जिसने कहा था कि “यदि कोई सरकार जनता को उसके बुनियादी अधिकारों से वंचित रखती है तो जनता का कर्तव्य है कि वह उसे उखाड़ फेंके।”

किसान नेता शिवाजी राय ने कहा कि स्वर्गीय विश्वनाथ राय की पूरी जिंदगी समाज के लिए थी। उनका मानना था कि पूंजीवाद से दुनिया खुशहाल नहीं हो सकती।

अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में फतेह बहादुर सिंह ने कहा कि क्रांतिकारी होने की पहली शर्त है कि जो समाज में गलत है उसका गहरा एहसास हो। उनके दिल में आजादी का तूफान था, हाथों में मौत का फूल था और आंखों में देश को बनाने का सपना था। इसलिए वे क्रांतिकारी थे। उन्होंने सन् 62 में देवरिया में विश्वनाथ राय जी को जवाहरलाल नेहरू के साथ संबोधित करते हुए देखा था। उन्होंने कहा कि आज की बढ़ती असमानता के खिलाफ लड़ाई ही उनकी लड़ाई को आगे बढ़ाने की पहली शर्त है।

इस अवसर पर क्रांतिकारी विश्वनाथ राय के सुपुत्र कर्नल प्रमोद शर्मा ने मुख्य रूप से दो प्रस्ताव रखे। पहला प्रस्ताव कि कुशीनगर के बारे में स्वर्गीय विश्वनाथ राय ने संसद में सैकड़ों प्रश्न किए। वहां के महात्मा बुद्ध के परिनिर्वाण स्थल एवं गन्ना मिल किसानों एवं पानी की समस्या को लेकर निर्णायक लड़ाई लड़ी थी। अतः वहां बनने वाले हवाई अड्डे का नाम स्वर्गीय विश्वनाथ राय के नाम से रखा जाए। उन्होंने भटनी चीनी मिल चालू कराने का दूसरा प्रस्ताव भी रखा क्योंकि चीनी मिल चलने से यहां के किसानों को ठोस आमदनी होती थी। जिससे वह बेटी की शादी करने से लेकर बच्चे को पढ़ाने तक की जिम्मेदारियों का निर्वहन कर पाते थे।

इस अवसर पर वरिष्ठ कवि और गीतकार भूषण त्यागी ने “आलोक नहीं मिटने वाला” गीत प्रस्तुत कर श्रद्धांजलि दी।

इस अवसर पर क्षेत्र के वरिष्ठ श्रमिकों को कंबल देकर सम्मानित किया गया।  जयंती समारोह में उपस्थित सभी वक्ताओं ने संसद में उनके द्वारा की गई बहसों की पुस्तक और “राष्ट्रीयता से अंतरराष्ट्रीयता” पुस्तक के प्रकाशन के लिए कर्नल प्रमोद शर्मा को धन्यवाद दिया और उसे ऐतिहासिक दस्तावेज के रूप में स्वीकार किया।

कार्यक्रम को कामरेड राम किशोर वर्मा, जनार्दन प्रसाद शाही, रविंद्र मणि त्रिपाठी ,दीपक दीक्षित ,मोहन प्रसाद ,अभय कुशवाहा, सोहेल अंसारी ,कलेक्टर शर्मा ,शैलेंद्र दुबे, अजय राय पत्रकार ,विनय कुमार राय, सुभाष यादव ,एसबी आजाद, सुधांशु राय, आलोक राय प्राचार्य शिवाजी इंटर कॉलेज खुखुंदू ,रब्बुल करीम, जयराम प्रसाद ग्राम प्रधान खुखुंदू ,राजेश मणि त्रिपाठी, राकेश सिंह ,पूर्व जिला पंचायत सदस्य उपेंद्र भारती, रफीक लारी ,सर्वेश्वर ओझा, हंसराज प्रसाद आदि ने मुख्य रूप से विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम का संचालन ग्राम प्रधान दीनदयाल यादव ने किया।